Varuthini Ekadashi 2024: वरुथिनी एकादशी पर पूजा के दौरान जरूर करें ये काम, मनोवांछित फल की होगी प्राप्ति

वरुथिनी एकादशी पर भगवान भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन उनकी पूजा करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अगर आप भी भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो वरुथिनी एकादशी के दिन प्रभु की पूजा करें और विष्णु चालीसा का पाठ करें।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Publish:Wed, 24 Apr 2024 08:00 PM (IST) Updated:Wed, 24 Apr 2024 08:00 PM (IST)
Varuthini Ekadashi 2024: वरुथिनी एकादशी पर पूजा के दौरान जरूर करें ये काम, मनोवांछित फल की होगी प्राप्ति
Varuthini Ekadashi 2024: वरुथिनी एकादशी पर पूजा के दौरान जरूर करें ये काम, मनोवांछित फल की होगी प्राप्ति

HighLights

  • एकादशी व्रत माह में 2 बार किया जाता है।
  • एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है।
  • इस दिन पूजा के दौरान विष्णु चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Vishnu Chalisa: हर माह में एकादशी व्रत 2 बार किया जाता है। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में। वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष 04 मई को वरुथिनी एकादशी है। इस खास अवसर पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से श्री हरि प्रसन्न होते हैं और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। साथ ही इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। अगर आप भी भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो वरुथिनी एकादशी के दिन प्रभु की पूजा करें और विष्णु चालीसा का पाठ करें। तो आइए यहां पढ़ते हैं विष्णु चालीसा।

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।।विष्णु चालीसा का पाठ।।

''दोहा''

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।

कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।

प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।

तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥

शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।

सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।

सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥

पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।

करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।

भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥

आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।

धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।

देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।

शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।

मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥

असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।

हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।

तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।

हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।

गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥

हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।

देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥

चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।

जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।

करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।

सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।

पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥

सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।

निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥

॥ इति श्री विष्णु चालीसा

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