Kamada Ekadashi 2024: भगवान विष्णु की पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ, हर मनोकामना होगी पूरी

तुलसी माता की पूजा-अर्चना करने से भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। अतः हर घर में रोजाना तुलसी माता की पूजा की जाती है। वहीं संध्याकाल में तुलसी माता की आरती की जाती है। शास्त्रों में निहित है कि तुलसी माता की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि और शांति आती है। साथ ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

By Pravin KumarEdited By: Publish:Fri, 19 Apr 2024 08:00 AM (IST) Updated:Fri, 19 Apr 2024 08:00 AM (IST)
Kamada Ekadashi 2024: भगवान विष्णु की पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ, हर मनोकामना होगी पूरी
Kamada Ekadashi 2024: भगवान विष्णु की पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ

HighLights

  • जगत के पालनहार भगवान विष्णु को तुलसी माता अति प्रिय हैं।
  • तुलसी माता की पूजा-अर्चना करने से भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।
  • साधक एकादशी तिथि पर तुलसी माता की विशेष पूजा-उपासना करते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kamada Ekadashi 2024: जगत के पालनहार भगवान विष्णु को तुलसी माता अति प्रिय हैं। तुलसी माता की पूजा-अर्चना करने से भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। अतः हर घर में रोजाना तुलसी माता की पूजा की जाती है। वहीं, संध्याकाल में तुलसी माता की आरती की जाती है। शास्त्रों में निहित है कि तुलसी माता की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है। साथ ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनकी कृपा से सभी बिगड़े काम बनने लगते हैं। अतः साधक एकादशी तिथि पर तुलसी माता की विशेष पूजा करते हैं। अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो कामदा एकादशी तिथि पर विधि-विधान से तुलसी माता की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय तुलसी चालीसा का पाठ करें। वहीं, पूजा का समापन तुलसी आरती से करें।

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तुलसी चालीसा

श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय।

जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।

नमो नमो तुलसी महारानी,

महिमा अमित न जाय बखानी।

दियो विष्णु तुमको सनमाना,

जग में छायो सुयश महाना।।

विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि,

तिहूँ लोक की हो सुखखानी।

भगवत पूजा कर जो कोई,

बिना तुम्हारे सफल न होई।।

जिन घर तव नहिं होय निवासा,

उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।

करे सदा जो तव नित सुमिरन,

तेहिके काज होय सब पूरन।।

कातिक मास महात्म तुम्हारा,

ताको जानत सब संसारा।

तव पूजन जो करैं कुंवारी,

पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।

कर जो पूजन नितप्रति नारी,

सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।

वृद्धा नारी करै जो पूजन,

मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।

श्रद्धा से पूजै जो कोई,

भवनिधि से तर जावै सोई।

कथा भागवत यज्ञ करावै,

तुम बिन नहीं सफलता पावै।।

छायो तब प्रताप जगभारी,

ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।

तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन,

सकल काज सिधि होवै क्षण में।।

औषधि रूप आप हो माता,

सब जग में तव यश विख्याता,

देव रिषी मुनि औ तपधारी,

करत सदा तव जय जयकारी।।

वेद पुरानन तव यश गाया,

महिमा अगम पार नहिं पाया।

नमो नमो जै जै सुखकारनि,

नमो नमो जै दुखनिवारनि।।

नमो नमो सुखसम्पति देनी,

नमो नमो अघ काटन छेनी।

नमो नमो भक्तन दुःख हरनी,

नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।

नमो नमो भव पार उतारनि,

नमो नमो परलोक सुधारनि।

नमो नमो निज भक्त उबारनि,

नमो नमो जनकाज संवारनि।।

नमो नमो जय कुमति नशावनि,

नमो नमो सुख उपजावनि।

जयति जयति जय तुलसीमाई,

ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।

निजजन जानि मोहि अपनाओ,

बिगड़े कारज आप बनाओ।

करूँ विनय मैं मात तुम्हारी,

पूरण आशा करहु हमारी।।

शरण चरण कर जोरि मनाऊं,

निशदिन तेरे ही गुण गाऊं।

क्रहु मात यह अब मोपर दाया,

निर्मल होय सकल ममकाया।।

मंगू मात यह बर दीजै,

सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।

जनूं नहिं कुछ नेम अचारा,

छमहु मात अपराध हमारा।।

बरह मास करै जो पूजा,

ता सम जग में और न दूजा।

प्रथमहि गंगाजल मंगवावे,

फिर सुन्दर स्नान करावे।।

चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे,

धूप दीप नैवेद्य लगावे।

करे आचमन गंगा जल से,

ध्यान करे हृदय निर्मल से।।

पाठ करे फिर चालीसा की,

अस्तुति करे मात तुलसा की।

यह विधि पूजा करे हमेशा,

ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।

करै मास कार्तिक का साधन,

सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।

है यह कथा महा सुखदाई,

पढ़े सुने सो भव तर जाई।।

तुलसी मैया तुम कल्याणी,

तुम्हरी महिमा सब जग जानी।

भाव ना तुझे माँ नित नित ध्यावे,

गा गाकर मां तुझे रिझावे।।

यह श्रीतुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।

गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।

तुलसी जी की आरती

जय जय तुलसी माता, मैय्या जय तुलसी माता ।

सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता।।

सब योगों से ऊपर, सब रोगों से ऊपर।

रज से रक्ष करके, सबकी भव त्राता।

बटु पुत्री है श्यामा, सूर बल्ली है ग्राम्या।

विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे, सो नर तर जाता।

हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित।

पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता।

लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में।

मानव लोक तुम्हीं से, सुख-संपति पाता।

हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी।

प्रेम अजब है उनका, तुमसे कैसा नाता।

हमारी विपद हरो तुम, कृपा करो माता।

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