मेरा सुरक्षित घेरा

कहते हैं दूर के ढोल सुहावने होते हैं। ज़्ारूरी नहीं, जो शख्स दूर से भला दिखता हो, वह निजी जिंदगी में भी उतना ही उदार या सहृदय हो। किसी की पावन छवि टूटती है तो बुरा लगता है, मगर कहीं तसल्ली भी मिलती है कि एक भ्रम तो दूर हुआ...।

By Edited By: Publish:Thu, 23 Apr 2015 01:12 PM (IST) Updated:Thu, 23 Apr 2015 01:12 PM (IST)
मेरा सुरक्षित घेरा

कहते हैं दूर के ढोल सुहावने होते हैं। ज्ारूरी नहीं, जो शख्स दूर से भला दिखता हो, वह निजी जिंदगी में भी उतना ही उदार या सहृदय हो। किसी की पावन छवि टूटती है तो बुरा लगता है, मगर कहीं तसल्ली भी मिलती है कि एक भ्रम तो दूर हुआ...।

वह टीन एज वाली एक्साइटमेट महसूस कर रही है। एक अर्से बाद उसने ब्यूटी पार्लर जाकर अपनी मरम्मत कराई है! फेशियल से लेकर मेनीक्योर-पेडिक्योर तक सब। कभी लंबे रहे बाल, जो अब बेहद पतले हो गए थे... उन्हें भी नीचे से बित्ता भर कटवा लिया। बेटी पिंकू बारहवीं के बाद आजकल फुर्सत से इंजीनियरिंग की काउंसलिंग के इंतज्ाार में बैठी है। मम्मी के इस मेकओवर से ख्ाासी उत्साहित है कि चलो, रिनी दीदी की शादी के बहाने सही, मां ने कहा तो माना। कह-कह कर हार गई थी वह, 'मम्मी कभी तो फेशियल करा लिया करो। ज्ारा पैर तो देखो। एडिय़ां कितनी फट गई हैं, इन्हें घर पर तो साफ कर सकती हो। पता नहीं, आपको क्या हो गया है। जबसे मुंबई आए हैं, तबसे आप बहुत लापरवाह हो गई हैं। जलगांव में तो आप और पापा सुबह पांच बजे वॉक पर जाते थे, प्राणायाम और योग करते थे। हमारे स्कूल जाने के बाद आप आराम से पापा के लिए नाश्ता बनाती थीं, पापा भी लंच पर एक घंटे घर आ जाते थे। हमारा होमवर्क भी पापा ही कराते थे। मुंबई क्या शिफ्ट हुए कि रुटीन ही गडबडा गया...।'

...सचमुच मुंबई आकर जीवनशैली ज्य़ादा ही व्यस्त हो गई है। दोनों बच्चों के स्कूल के पास घर लेने से पति का बैंक काफी दूर पडता है। ये सुबह सात बजे घर से निकल जाते हैं लोकल पकडऩे। सुबह की सैर छूटी तो ये स्टेशन तक पैदल जाने लगे...मगर मेरी तो वॉक ही छूट गई। मेरी पूरी सुबह सबका टिफिन तैयार करने में ही बीत जाती है। इनके साथ चाय पीना तो मैं भूल ही गई। पूरे दिन जाने क्या करती रह जाती हूं अब।

दरअसल यही मुझे जबरन वॉक पर ले जाते थे। अपने साथ बैठा कर प्राणायाम करवाते। मुंबई आकर तो हालत यह है कि सुबह घर से निकलते हैं तो देर रात गए वापस लौटते हैं।

उधर पिंकू चिढती है कि मम्मी आजकल पापा पर इतनी डिपेंड हो गई हैं कि अकेले सामान लेने भी नीचे नहीं उतरतीं। पापा ही लौटते हुए घर की ज्ारूरतों के हिसाब से सामान, फल और सब्ज्ाी वगैरह ले आते हैं। मम्मी कितनी सुस्त होती जा रही हैं आजकल। लगता ही नहीं कि कभी अपने कॉलेज की टॉपर रही होंगी। घर-बच्चे....इसके अलावा इनकी दुनिया ही नहीं है। मगर रिनी दी की शादी की ख्ाबर ने तो मम्मी में नए सिरे से प्राणों का संचार कर दिया...। सोचते हुए पिंकू ने गहरी सांस ली और मम्मी को देखा, जो बॉक्स खोल कर बैठी थीं कि ड्राई क्लीनिंग के लिए कौन सी साडिय़ां दें। उसे देखते ही पूछ बैठीं,'पिंकू बता न, क्या पहनूं शादी में?

'मम्मा ये बॉक्स तो बंद ही कर दो। मेरे साथ चलो, दो-तीन साडिय़ां ख्ारीद लेते हैं। उसे पता था, मम्मी ने अर्से से शॉपिंग नहीं की है। घर में कोई शादी हो भी तो मम्मी ऐसे ही पुराने कपडे पहन कर चली जाती हंै।

'अरे, साडिय़ों की ज्ारूरत नहीं है पिंकू।

'मम्मी! कार्टून लगना है क्या? अब इतनी भारी साडिय़ां कौन पहनता है? पिंकू उसे ले ही गई शापिंग के लिए! अनिकेत को ख्ाुशी हुई कि चलो कहीं तो निकलीं उनकी पत्नी।

आईने में ख्ाुद को निहार कर वह दंग रह गई। क्या थोडी सी देखभाल इंसान को इतना बदल देती है? पर दूसरे ही पल उसके मन ने टहोका, क्यों कर रही हो यह सब? किसे दिखाने के लिए? माना कि 'वह भी होगा वहां, लेकिन अब तो दोनों अपनी-अपनी ज्िांदगी में आगे बढ चुके हैं।

'वो यानी साहिल। सागर जीजू का छोटा भाई और रिनी का चाचा। नीलिमा दीदी उससे पांच साल बडी थीं। उनकी शादी में तो वह छोटी ही थी। साहिल उससे एक-दो वर्ष बडा था। हंसमुख, स्मार्ट सा लडका...। दीदी का पूरा परिवार पढा-लिखा और सुसंस्कृत था। चार साल बाद साहिल ने पढाई ख्ात्म कर नौकरी जॉइन कर ली थी... पहली पोस्टिंग पर रायपुर आ गया था। दुर्ग से सिर्फ आधे-पौन घंटे का रास्ता। अकसर साहिल संडे की सुबह दुर्ग चला आता, दिन भर रहता और शाम को वापस रायपुर चला जाता। मम्मी बडे चाव से उस दिन नॉनवेज बनातीं...। वह कॉलेज में थी उन दिनों। अनजाने कब साहिल चुपके से दिल में घर कर गया, पता ही नहीं चला। फिर तो संडे का इंतज्ाार रहने लगा। किसी संडे नहीं आता तो वह उदास हो जाती। मम्मी को एक बार दीदी से कहते सुना उसने, 'साहिल तुम्हारा देवर न होता तो आंख बंद कर बिट्टी को ब्याह देती उससे... ऐसा हीरा लडका कहां मिलेगा! लेकिन एक ही घर में दो बहनों का ब्याह ठीक नहीं रहता...। दीदी ने भी इस रिश्ते को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

दो वर्ष बाद ही उसका विवाह हो गया। अनिकेत के चाचा जी का परिवार पडोस में ही रहता था। उन्हें वह इतनी पसंद आई कि अनिकेत के लिए मांग लिया उन्होंने। बैठे-बिठाए इतना अच्छा लडका मिल गया, सो पापा-मम्मी ने भी तुरंत हां कर दी। ससुराल में ही उसने साहिल के विवाह की ख्ाबर सुनी थी। बाद में जब दीदी मिली थी तो उन्होंने अपनी देवरानी की खूब तारीफ की थी, 'बडी प्यारी लडकी है... पता नहीं साहिल भैया के साथ कैसे रहेगी। उसे आश्चर्य हुआ था, दीदी भी न! साहिल की तो सब तारीफ करते हैं... ख्ाुद दीदी भी तो हमेशा कहती थीं कि साहिल भैया जैसा लडका मिलना मुश्किल है, बहुत ज्िाम्मेदार हैं, अम्मा-पापा पर जान देते हैं...।

वक्त अपनी गति से चलता रहा। पति, घर व बच्चों में डूबी वह भूल गई कि कभी साहिल के लिए दिल में कोमल भावनाएं उगी थीं। सचमुच वह पूरी गृहस्थन बनकर रह गई थी। हर वक्त दिमाग्ा में यही चलता कि आज खाने में ऐसा क्या बनाए जो पति और बच्चों को पसंद आए। घर को कैसे साफ-सुथरा और आरामदेह रखे...।

दीदी के घर सभी मेहमान आ चुके थे। दोनों ननदें, बडे जेठ....सभी परिवार सहित आ गए थे...। साहिल, उसकी बीवी और दोनों बच्चों से भी मिली वह। उसकी बीवी सचमुच प्यारी थी। शादी के वर्षों बाद भी उसके चेहरे पर बालसुलभ कोमलता बरकरार थी। सबसे मिलकर, खाना खाकर वह बेड पर पसरी आराम से दीदी से बातें कर रही थी कि अचानक किसी की ग्ाुस्से से दहाडती आवाज्ा से हडबडा गई।

'अरे दीदी...कौन है?

'साहिल भैया होंगे, दीदी ने बेरुख्ाी से कहा।

'ये हमेशा ऐसे ही चिल्लाते हैं क्या?

'घर में तो इनका यही लहज्ाा है...

दो दिन में ही उसने नोटिस कर लिया कि साहिल को बात-बात पर चिल्लाने की आदत है। परिवार का कोई भी व्यक्ति सीधे उसके सामने कोई बात कहने नहीं जाता। किसी को कुछ कहना हो तो साहिल की पत्नी को आगे करता। वह बेचारी दिन भर साहिल की झिडकियां सुनती और डबडबा आई आंखों को सबसे छुपाती। यह क्या बात हुई भला कि ज्िाम्मेदारी निभाने वालों को ख्ाराब व्यवहार करने की छूट मिल जाए? अनिकेत भी तो सारी पारिवारिक ज्िाम्मेदारियों का निर्वाह करते आए हैं। यहां तक कि उसके मायके का भी ख्ायाल रखते हैं वह। भाई-बहन सब अपनी समस्याओं के लिए अनिकेत की ओर देखते हैं। उसका जीवन तो पति के बिना एक इंच भी नहीं सरकता। मुंबई में लोकल से ऑफिस आने-जाने में ही तीन-चार घंटे लग जाते हैं, मगर अनिकेत घर में बाहर का कोई तनाव नहीं लाते।

उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही साहिल है, जो हरदम हंसता-मज्ााक करता और ऊर्जा से भरपूर रहता था। यह तो एक अलग ही व्यक्ति था, अपने आगे किसी की न सुनने वाला। न बडों का लिहाज्ा, न छोटों के प्रति प्यार! घर में उसके घुसते ही तनाव पसर जाता... सभी बेवजह के कामों में उलझ जाते। पता नहीं, इसके बीवी-बच्चे इसे कैसे झेलते होंगे।

किशोरावस्था की इस पागल चाह पर उसे अब कोफ्त हो रही थी। अनिकेत से साहिल का क्या मुकाबला! उसने देख लिया था कि साहिल की पत्नी अच्छे स्वभाव की स्त्री थी, पर साहिल उसे सबके सामने झिडक देता। क्या पत्नी का कोई स्वाभिमान नहीं होता?

दूसरी ओर अनिकेत हैं- शांत और संयत। वह स्वयं कितनी लापरवाह रही है। शादी होकर आई तो घरेलू ज्िाम्मेदारियों से अंजान थी। अनिकेत कई बार उसे प्रोटेक्ट करते थे, कभी ग्ालती होती तो हंस कर समझाते। कभी आहत होती तो प्यार से सांत्वना देते। उनका सूत्र है कि जीवन में हज्ाारों परेशानियां हैं, तनावग्रस्त होकर उनका सामना करने से अच्छा है, मुस्कराकर दो-दो हाथ करो।

उसे लगा, जाने कब से वह अनिकेत से दूर है...। अपने आसपास उन्हें महसूस करने के लिए उसका मन उतावला हो उठा। वह फोन ढूंढने लगी। एकाएक उसके होठों पर मुस्कान आ गई। उसके हर सामान का ख्ायाल अनिकेत ही रखते हैं। वह कहीं भी मोबाइल रख कर भूल जाती है, इसलिए यहां आते समय उन्होंने उसे गले में लटकाने वाला मोबाइल होल्डर लाकर दिया था। छोटी-छोटी बातें... जो दिखाती हैं कि अनिकेत को उसका कितना ख्ायाल है। उसने मोबाइल हाथ में लिया और अनिकेत का नंबर मिलाने लगी। दूसरी ओर से अनिकेत की आवाज्ा सुनते ही उसे लगा, मानो वह अपने सुरक्षित घेरे के अंदर पहुंच गई है।

सपना सिंह

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