कांटा

बच्चों की परवरिश में मां दिन-रात एक करती है। बच्चा छोटा हो तो उसका रोना तक बर्दाश्त नहीं कर पाती। उसकी सुरक्षा को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतती है। मगर ममता कई बार मां को वहमी बना देती है। वह दूसरों पर भरोसा नहीं कर पाती और इस क्रम में कई

By Edited By: Publish:Tue, 27 Jan 2015 02:21 PM (IST) Updated:Tue, 27 Jan 2015 02:21 PM (IST)
कांटा

बच्चों की परवरिश में मां दिन-रात एक करती है। बच्चा छोटा हो तो उसका रोना तक बर्दाश्त नहीं कर पाती। उसकी सुरक्षा को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतती है। मगर ममता कई बार मां को वहमी बना देती है। वह दूसरों पर भरोसा नहीं कर पाती और इस क्रम में कई गलतियां भी कर बैठती है।

चूल्हे से धुआं उठना लगभग बंद हो गया था। जली हुई लकडिय़ों पर सफेद राख ने कब्जा करना शुरू कर दिया था। इनकी तपिश धीरे-धीरे कम हो रही थी। चूल्हा बुझने लगा था। उसे अभी और जलना था। अभी तो किसी ने रात के खाने का स्वाद भी नहीं चखा था। चूल्हे के पिछले हिस्से में कडाही में रखी सब्जी एक बार गर्म होने के बाद दोबारा ठंडी होने लगी थी। चूल्हे के अगले हिस्से में रखा तवा लाल होने से रह गया था। रसोई में अभी कुछ ऐसा हुआ था, जो इस सर्दी में भी ठंड का एहसास नहीं होने दे रहा था।

मोहित और मितवा के मन में जो युद्ध चल रहा था, शायद उसी की गर्मी थी कि ठंड का एहसास नहीं हो रहा था। तीन साल के आदि को गोद में उठाए मोहित थपकी दिए जा रहा था, इस बात से बेख्ाबर कि आदि को नींद आ चुकी थी। वह गहरी सोच में डूबा जलती लकडिय़ों के ऊपर राख की परत चढते देख रहा था। मितवा नन्ही नैना को दूध पिला रही थी। नैना को नींद आ रही थी। अजीब सी ख्ाामोशी पसरी थी। थोडी देर पहले तक ऐसा नहीं था। कमरे में काफी शोर था।

शोर था एक साल की नैना और तीन साल के आदि की शरारतों का। नैना रसोई में रखी लकडी की अलमारी का सहारा लेकर खडी होने की कोशिश में बार-बार गिर रही थी। आदि खिलौनों में मस्त था। उसे अपनी खिलौना जेसीबी मशीन से बहुत प्यार था। वैसे तो ज्यादातर खिलौने टूट चुके थे। जिस दिन नया खिलौना आता, शाम तक उसका कोई न कोई हिस्सा टूट जाता था। गाडिय़ों में बारी पहले टायरों की आती, जानवरों में पूंछ की, हेलीकॉप्टर में पंखे की तो टेडी में आंखों की। बावजूद इसके वह टूटे खिलौने संभाल कर रखता था।

इस समय भी रसोई में खिलौने बिखरे थे। आदि एक-एक कर खिलौना उठाता, नैना भी खेलने की कोशिश करती। नन्ही नैना हर खिलौने को मुंह में डालती थी। आदि की नजर उस पर पडती तो वह उससे खिलौना छुडवा लेता। मोहित दोनों बच्चों की प्यार भरी अठखेलियों में मस्त था।

मितवा शाम के खाने की तैयारी कर रही थी। जैसे ही वह चूल्हे में जलाने के लिए लकडी लेकर रसोई में आई, मोहित चीखा, 'मितवा! कांटों वाली लकडिय़ां क्यों ले आईं?

'चूल्हे में कांटे जल जाएंगे, मितवा ने बीच में ही बोला।

'मगर बच्चों को कोई कांटा चुभ जाए तो?

'मैं देख तो रही हूं न...

मितवा जिद पर अड गई तो मोहित ने ज्यादा बोलना ठीक न समझा।

आग जला कर मितवा नैना को दूध पिलाने चूल्हे के एक तरफ बैठ गई। मोहित ने कडाही में सब्जी छौंक दी। जैसे ही चूल्हे में रोटियां सेंकने लायक आग हुई, मितवा ने मोहित को कडाही चूल्हे के पिछले हिस्से और तवे को अगले हिस्से में रखने को कहा। दूध पिलाने के बाद नैना को उसे पकडाती बोली, 'देखना जी, आदि नैना को मारे नहीं।

मितवा को बच्चों के मामले में किसी पर भरोसा न था। रोटी बनाते-बनाते बच्चों को देखती रहती। रोटियों से ज्यादा ध्यान बच्चों पर होता था उसका। सास-ससुर समझाते भी कि बच्चों की देखभाल वे कर सकते हैं, मगर मितवा उन पर भरोसा नहीं करती थी। इसका कारण भी था। लगभग डेढ वर्ष पहले किसी दिन मितवा आदि को सास-ससुर के पास छोड घर के काम निपटा रही थी। आदि नया-नया चलना सीख रहा था। इस बीच कोई मेहमान आया तो सास-ससुर गप्पें मारने लगे। आदि उनकी नजर बचा कर पशुशाला में पहुंच गया और वहां एक गाय ने उसे ऐसी टक्कर मारी कि दांत टूट गया, मुंह लहूलुहान हो गया। वह आधा दांत आज भी आदि के सुंदर चेहरे पर नजर आता है। उस घटना के लिए सास-ससुर ने मितवा से माफी मांगी, मगर मितवा तो जैसे उन पर भरोसा ही खो बैठी। दादा-दादी के पास न जाने के कारण बच्चे मां से ही ज्यादा चिपके रहते थे और पूरे दिन मां की नाक में दम किए रहते थे। मितवा को तभी राहत मिलती, जब मोहित शाम को ऑफिस से लौटता। जल्दी-जल्दी काम निपटा कर वह बच्चों सहित अपने कमरे में चली जाती और दरवाजा बंद कर लेती।

'मितवा! देखो रोटी जल गई है, अपना ध्यान उधर दो। बच्चों को मैं देख रहा हूं न! मोहित की नजर अचानक तवे पर रखी रोटी से निकलते धुएं की ओर गई तो उसने मितवा को चूल्हे की ओर इशारा करते हुए कहा,

'ओह! यह तो जल गई। इसे किनारे रख देती हूं। सुबह गाय को दे देंगे, मितवा जली रोटी को चूल्हे के एक ओर रखती हुई बोली।

यह लगभग रोज की बात थी। रोटी जलती और मितवा गाय के लिए रख देती। इस बार आदि ने नैना से खिलौना छुडवाते हुए उसे चपत लगा कर एक ओर धकेल दिया। नैना जोर-जोर से रोने लगी तो मितवा रोटी छोड कर फुर्ती से उठी और नैना को गोद में लेकर चुप कराने की कोशिश करने लगी।

'मितवा, तुम रोटी बनाओ। मैं नैना को संभालता हूं, मोहित ने नैना को गोद में उठाने का प्रयत्न करते हुए कहा।

'बस! तुम रहने दो। मैं देख लूंगी इसे। पास बैठे हो, फिर भी नहीं संभाल पा रहे बच्चों को, मितवा कठोरता से बोली।

'मितवा बच्चे ऐसे ही झगडते हैं, इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है। नैना को मुझे दो, वर्ना यह रोटी भी जल जाएगी। मोहित ने मितवा को समझाते हुए कहा।

'जलती है तो जले। यहां बच्ची का बुरा हाल है और तुम्हें रोटियों की पडी है, मितवा का मुंह अभी जली रोटी की तरह दहक रहा था। मोहित ने तवे से रोटी उठाई और उसे फुलाने लगा। नैना रो रही थी और बहुत पुचकारने के बावजूद रोना बंद नहीं कर रही थी।

'आदि ने ऐसा कुछ नहीं किया, लगता है नैना डर गई है, मोहित ने मितवा से फिर कहा।

कोई बात तो जरूर थी। आदि कितना भी मारे, मां की गोद में जाकर नैना चुप हो जाती थी। मगर आज तो इसने हद कर दी। मितवा ने उसे चुप कराने के लिए दूध पिलाना शुरू किया, लेकिन आज कुछ भी उसे लुभा नहीं रहा था। कहीं इसके पेट में दर्द तो नहीं है, सोच कर मितवा ने उसे पेट दर्द की दवा दी, फिर एक घरेलू नुस्ख्ाा आजमाया। उसने नैना की नाभि में हींग लगा दी। इससे भी फर्क न पडा तो मोहित ने चूल्हे में फटाफट प्याज भून कर उसका रस नैना के कानों में डाला। फिर भी नैना चुप न हुई तो मितवा का ग्ाुस्सा आदि पर फूटने लगा, 'ठहर जाओ आदि! मैं आइंदा कोई खिलौना नहीं लाऊंगी तुम्हारे लिए। नैना ने एक खिलौना क्या ले लिया कि तुम्हें तकलीफ होने लगी। जब देखो, उसे मारते रहते हो..., मितवा क्रोध और पीडा में कुछ भी बोले जा रही थी।

तीन साल का आदि मम्मी की बात समझ रहा था। वह चुपचाप सिर झुकाए बैठा था। 'बस मितवा! आदि ने कुछ नहीं किया है। तुम अब रोटियां बनाना शुरू करो। मुझे भूख लगी है, मोहित ने मितवा को डांट दिया।

बुरा-सा मुंह बनाते हुए मितवा ने नैना को मोहित को सौंपा, मगर वह अब भी ग्ाुस्से में बुदबुदा रही थी।

इस समय मितवा से कुछ कहने का मतलब था खाने का स्वाद बिगाडऩा, इसलिए मोहित ने मितवा की बातों को नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा। बच्चों के मामले में मितवा ख्ाुद चाहे जितनी ग्ालतियां करे, मगर दूसरों पर वह भरोसा नहीं कर पाती थी।

अभी दो हफ्ते पहले ही वह खेल-खेल में नैना को हवा में उछाल रही थी। जरा सी लापरवाही से नैना छिटकी और फर्श पर जा गिरी। उसकी ठुड्डी में गहरा कट आ गया और टांके लगाने पडे। एक बार नैना जलते हुए कोयले में पांव रख बैठी, जिससे उसका पैर जल गया। कई दिन तक वह पैर टिका ही नहीं पाती। नैना सात-आठ महीने की थी तो मितवा जबरन दोनों बच्चों को एक साथ गोद में उठाए थी। संतुलन बिगडा और आदि गोद से गिर गया। उसके हाथ की उंगली में चोट आई। मगर मितवा कभी अपनी ग्ालती नहीं मानती थी। सास-ससुर बच्चों से बहुत प्यार करते थे, पर मितवा की वहमी नजर में सास-ससुर लापरवाह थे। कई बार तो बच्चों के प्यार में वह छोटे-बडे का लिहाज भूल जाती थी। वैसे वह मन की बुरी नहीं थी। बच्चे होने से पहले तक सब उसके व्यवहार की तारीफ करते थे। पर मां बनने के बाद न जाने क्यों वह इतनी सनकी होती जा रही है। मितवा फिर बुदबुदाई, 'कब से देख रही हूं, नैना चुप नहीं हो रही है आपसे।

उसने फिर से नैना को गोद में ले लिया। तभी आदि रोने लगा, 'मम्मी मैं आपकी गोदी में सोऊंगा, नैना को उतारो गोदी से।

'बेटा नैना रो रही है। इस वक्त मुझे तंग मत करो। मुझे नैना को दूध पिलाने दो।

'नहीं मम्मी, मुझे भी सोना है, आदि ने रोते हुए कहा। आदि मम्मी के गले में हाथ डाल कर सोता था। इसलिए मितवा पहले नैना को सुलाती, फिर आदि को। मगर आज तो नैना सो ही नहीं पा रही थी।

'आदि बेटा, थोडी देर अपने खिलौनों से खेल लो..., इस बार मितवा की आवाज तल्ख्ा थी। मगर आदि भी जिद पर अडा था। नैना को ज्यादा महत्व मिलते देख वह जोर-जोर से रोने लगा। मोहित ने उसे गोद में लेकर सुलाने का प्रयास किया, पर विफल रहा। बच्चों की रोने की आवाज तेज हो गई और रसोई का माहौल अजीब हो गया था।

'मितवा, कहीं नैना को किसी चींटी ने तो नहीं काटा? जरा इसके कपडे उतार कर देख लो। आदि ने इतनी जोर से नहीं मारा था कि नैना इतना रोती, मोहित ने कहा।

इस बार मितवा का मन थोडा पिघल गया। आदि को प्यार से पुचकार कर बोली, 'बेटा, तुम तो बडे हो न, मेरे राजा बेटा हो। नैना चुप हो जाएगी तो मैं तुमको गोदी में लेकर सुलाऊंगी पक्का।

'नहीं, इसे अभी नीचे उतारो, मुझे नींद आ रही है, मुझे अभी आपकी गोदी में सोना है, आदि ने जैसे अपनी जिद न छोडऩे का प्रण कर लिया था। नैना की सिसकियां शुरू हो चुकी थीं। मितवा और मोहित के लिए क्या करें और क्या न करें जैसी स्थिति थी। ग्ाुस्से में मितवा ने आदि को थप्पड मार दिया।

'मितवा बस करो। क्यों मार रही हो आदि को? उस बेचारे का क्या कसूर था? मोहित ने मितवा का कडा विरोध किया।

'आप पूछ रहे हैं इसका कसूर? आप देखते नहीं, हमेशा शांत रहने वाली नैना आज किस तरह रोए जा रही है।

'देखो मितवा, मैं तुम्हें कह रहा हूं न कि आदि ने इसे जोर से नहीं मारा। तुम मेरी बात सुनती क्यों नहीं हो? एक बार देख तो लो कि कहीं चींटी ने तो नहीं काट लिया है इसे।

मोहित को भी मितवा पर ग्ाुस्सा आ गया था मगर मितवा दुगना क्रोध दिखाते हुए चीखी, 'कब से एक ही रट लगाए हो। कह रही हूं कि कोई चींटी नहीं है तो मानते क्यों नहीं,

इस बार मोहित कुछ नहीं बोला और बच्ची के कपडे उतारने लगा। मितवा फिर बोली, 'इतनी ठंड में कपडे क्यों उतार रहे हो? उसे ठंड लग गई तो...?

'चूल्हे में आग जली है, रसोई भी गर्म है और मैंने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया है। देखो मितवा जानना तो पडेगा न, कि बच्ची इतना क्यों रो रही है।

मगर मितवा ने ग्ाुस्से में आकर मोहित से बच्ची को छीन लिया। इस बार मोहित ने बेहद ग्ाुस्से में मितवा को देखा और नैना को दोबारा उसकी गोद से ले लिया। उसने मितवा को इतनी जलती नजरों से देखा कि वह शांत होकर एक किनारे बैठ गई। रसोई में शांति छा गई थी। आदि सहमा सा पापा को देखने लगा। पल भर को नैना भी रोना भूल गई।

मोहित ने नैना की स्वेटर उतारी, फिर फ्रॉक उतार कर उसे जांचा। लोअर उतारते ही उसे नैना की दायीं जांघ में कांटा दिखा। यह उन्हीं लकडिय़ों का कांटा था, जिन्हें मितवा मोहित के मना करने के बावजूद ले आई थी। मोहित ने जल्दी से कांटा बाहर खींचा, फिर शांत स्वर से बोला, 'देखो मितवा, यह आदि का नहीं, तुम्हारा कसूर है। अब फिर यह मत कहना कि तुम्हारी ग्ालती नहीं है।'

कांटा निकलते ही नैना का रोना थम गया। मोहित ने नैना को मितवा को थमाया और आदि को गोद में लेकर थपकियां देने लगा। नैना शांत हो गई, मगर मितवा आत्मग्लानि से भर उठी। छोटी सी घटना ने आंखों पर छाए अविश्वास के परदे को चीर दिया था। उसे रह-रह कर आदि को लगाए थप्पड याद आ रहे थे। सास-ससुर और मोहित के प्रति किए गए व्यवहार पर वह शर्मिंदा थी। कुछ देर पहले तक वह मोहित पर चिल्ला रही थी, मगर अब उससे आंख भी नहीं मिला पा रही थी। कांटे की चुभन ने उसे अंदर तक झकझोर दिया था।

पवन चौहान

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