संस्‍कृतियों का संगम

विवाह के बारे में अकसर यह कहा जाता है कि यह केवल दो दिलों का नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन है, लेकिन जब मामला प्रेम का हो तो जाति, धर्म और प्रदेश की सीमाएं टूट जाती हैं और नदियों की तरह दो अलग संस्कृतियां एक-दूसरे मेें समाहित हो जाती हैं।

By Edited By: Publish:Tue, 27 Dec 2016 05:45 PM (IST) Updated:Tue, 27 Dec 2016 05:45 PM (IST)
संस्‍कृतियों का संगम
जाति, कुल-गोत्र का विचार और जन्म-कुंडलियों का मिलान जैसी बातें अब पुरानी पड चुकी हैं। आज के माता-पिता अपनी युवा संतानों की भावनाओं को समझने लगे हैं। उन्हें इस बात का एहसास है कि खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के लिए लडके और लडकी के बीच आपसी समझ का होना बहुत जरूरी है। पुरानी पीढी समाज में आने वाले हर सकारात्मक बदलाव को खुले दिल से स्वीकारना सीख रही है। इसीलिए विवाह से जुडी स्टीरियोटाइप धारणाएं बदलने लगी हैं। अब परिवार प्रांतों की संकुचित सीमा से बाहर निकल रहे हैं। जाति और राज्य की सीमाओं से परे विवाह करने वाले कुछ दंपतियों से सखी ने की बातचीत। उनके अनुभवों से आप भी हों रूबरू। ससुराल ने सहर्ष अपनाया जया-राकेश श्रीवास्तव, मुंबई जया और राकेश श्रीवास्तव ने आज से 36 वर्ष पहले प्रेम-विवाह किया था। जया मूलत: तमिल ब्राह्मण हैं और राकेश यूपी के रहने वाले हैं। वह जमाना और था, जब माता-पिता ऐसी शादियों के लिए आसानी से तैयार नहीं होते थे। उन दिनों को याद करते हुए जया कहती हैं, 'हम दोनों एक ही कॉलेज में पढते थे। तब मैं 19 साल की थी और ये 20 के। हम बहुत अच्छे दोस्त थे। राकेश के केयरिंग नेचर ने मुझे बहुत ज्य़ादा प्रभावित किया। एक बार हमारे किसी पडोसी ने मुझे उनके साथ कहीं घूमते-फिरते देख लिया और हमारे घर पर जाकर शिकायत कर दी। जब पूछताछ हुई तो मैंने भी अपने पेरेंट्स को बता दिया कि मैं इसी लडके से शादी करना चाहती हूं। उसके बाद पुरानी हिंदी फिल्मों की तरह मेरे पिता ने सख्त आदेश दिया, 'आज से बाहर निकलना बंद...' मेरे दोनों बडे भाई बहुत नाराज थे क्योंकि मैं उनकी इकलौती छोटी बहन हूं और उन्हें इस बात की चिंता थी कि नॉनवेज खाने वाले उत्तर भारतीय परिवार में हमारी बहन कैसे एडजस्ट कर पाएगी, खैर जब उनका गुस्सा शांत हो गया तो राकेश के पिताजी खुद मेरे परिवार से मिलने आए। उस जमाने में विवाह से पहले लडक-लडकी का ज्य़ादा मिलना-जुलना अच्छा नहीं समझा जाता था। इसलिए कुछ ही महीनों के बाद हमारी शादी हो गई। मेरी ससुराल में लोग बहुत खुले विचारों के हैं और उन्होंने मुझे सहर्ष अपना लिया। हमारे यहां ज्य़ादातर चावल खाया जाता है। इसलिए मैं रोटी बनाना नहीं जानती थी। मेरी सास ने बडे धैर्य के साथ सब कुछ सिखाया।' राकेश का कहना है कि परिवार की बडी बहू होने के नाते जया ने अपनी सभी जिम्मेदारियों को बहुत अच्छी तरह निभाया। इसी वजह से सभी रिश्तेदार उसे बहुत ज्य़ादा सम्मान देते हैं। बने हैं एक-दूजे के लिए सफारी और समीर सक्सेना, ग्रेटर नोएडा सफारी मूलत: बंगाली हैं और समीर मध्यप्रदेश से हैं। दिल्ली में दोनों एक ही कंपनी में जॉब करते थे और जुलाई 1998 में इन्होंने प्रेम विवाह किया। सफारी बताती हैं, 'शुरुआत मेें बतौर कलीग समीर मुझे बहुत अच्छे लगते थे। वह सिर्फ मेरा ही नहीं, बल्कि आसपास के लोगों का भी काफी खयाल रखते थे। मैं उनके साथ खुद को बहुत ज्य़ादा कंफर्टेबल फील करती थी। फिर धीरे-धीरे हम अच्छे दोस्त बन गए। लगभग दो साल बाद ये किसी काम से जयपुर गए थे और वहीं से इन्होंने मुझे फोन पर प्रपोज किया तो मैंने भी हां कर दी क्योंकि तब तक मुझे भी ऐसा लगने लगा था कि हम दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। दोनों परिवारों को इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं था। हमारी शादी में दोनों प्रांतों की रस्में निभाई गईं। विवाह से पहले समीर को पारंपरिक बंगाली दूल्हे की तरह धोती-कुर्ता और मुकुट पहना कर तैयार कराया गया तो उन्हें देखकर हमारे परिवार के लोग बहुत खुश हुए। जब मैं ससुराल पहुंची तो सास सहित परिवार के सभी सदस्य हर पल मेरा ख्याल रखते थे। वैसे तो मैं बंगाली हूं पर दिल्ली में पली-बढी होने की वजह से मैं नॉर्थ इंडियन भाषा और खानपान से अच्छी तरह वाकिफ थी। दोनों परिवारों के त्योहार मनाने और पूजा-पाठ के तरीके बिलकुल अलग थे पर मेरी सास ने मुझे सब कुछ सिखाया। ऐसे परिवारों के बच्चों को दो अलग संस्कृतियों से जुडऩे का मौका मिलता है। मेरी बेटी निवेदिता को शास्त्रीय संगीत से बेहद लगाव है और वह भी बंगालियों की तरह धारा प्रवाह बांग्ला बोलती है।' समीर का मानना है, 'सफारी रिश्तों को संभालना बखूबी जानती है। इसी वजह से हमारे घर के लोग उसे बहुत पसंद करते हैं।' बहुत खुश हैं हम ऋचा-पार्थ पटनायक, हैदराबाद एक एमएनसी में साथ काम करने के दौरान ऋचा और पार्थ को एक साल की दोस्ती के बाद यह एहसास हुआ कि उन्हें हमेशा साथ रहना चाहिए तो उन्होंने शादी करने का निर्णय लिया। ऋचा बताती हैं, 'मैं मूलत: दिल्ली से हूं और पार्थ ओडीशा के रहने वाले हैं। मेरी ससुराल में किसी को भी इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी लेकिन बेटी के भविष्य को लेकर मां का चिंतित होना स्वाभाविक था। इसलिए जब मेरी मम्मी को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने मुझसे कहा कि पहले लडके को घर पर बुलाओ, 'जब वह हमें पसंद आएगा तभी मैं शादी की इजाजत दूंगी।' खैर, उन्हें हमारे घर पर बुलाया गया। पार्थ बेहद शांत और सौम्य स्वभाव के हैं, जबकि इसके विपरीत मैं बहुत ज्य़ादा बोलती हूं। हमारे रिश्ते में अपोजिट अट्रैक्ट्स वाली थ्योरी काम कर रही थी। उनसे मिलने के बाद मम्मी को भी लगा कि यही मेरी बेटी के लिए परफेक्ट मैच है। मेरे ससुर जी आर्मी में थे और देश के अलग-अलग हिस्सों में उनकी पोस्टिंग होती थी। इसलिए मेरी सास भी नॉर्थ इंडियन कल्चर से वाकिफ थीं लेकिन शादी के बाद जब मैं भुवनेश्वर पहुंची तो वहां सारे रिश्तेदार उडिय़ा भाषा में बातचीत कर रहे थे। तब पार्थ ने मुझे हमेशा कंफर्टेबल फील करवाने की पूरी कोशिश की। उनकी नानी जी कटक में रहती थीं। वहां बहुत सुंदर सिल्वर ज्यूलरी और साडिय़ां मिलती हैं। शादी में मुझे वहां से गिफ्ट के रूप में ये सारी चीजें मिली थीं। मेरा मानना है कि अगर लोगों के मन में एक-दूसरे की संस्कृति के प्रति सम्मान की भावना हो तो एडजस्टमेंट में कोई समस्या नहीं होती।' पार्थ भी ऋचा की बातों से सहमत हैं। उनका कहना है, 'शुरू से ही हम दोनों एक-दूसरे के परिवार के तौर-तरीके समझने की कोशिश में जुटे थे। इसलिए हमें कभी कोई परेशानी नहीं हुई और हम अपने परिवार में बेहद खुश हैं।' यूपी के रंग में रंग गई अभिनेता सुशांत बिजनौर के हैं और जाट बिरादरी से आते हैं, जबकि मोलिना नॉर्थ ईस्ट की हैं। दोनों की मुलाकात दिल्ली में हुई। सुशांत थिएटर करते थे और मोलिना कत्थक सीखती थीं। बकौल सुशांत, 'मोलिना के लंबे बालों ने मुझे ऐसा उलझाया कि मैं कभी निकल ही नहीं पाया।' 16 साल पहले हुई शादी को याद करते हुए मोलिना बताती हैं, 'मैं तो सुशांत को पहले सुसांत कहकर पुकारती थी। हम लोगों के लिए 'शब्द का उच्चारण करना थोडा मुश्किल होता है। वैसे मैं आराम से हिंदी बोलती थी क्योंकि मेरी पैदाइश धनबाद की है लेकिन सुशांत यूपी के हैं तो हमारा रहन-सहन, खानपान उनके लिए किसी कल्चरल शॉक से कम नहीं था। हमारी भाषा इंडो-चाइनीज है। वैसे हम वैष्णव हैं लेकिन फिश खाते हैं क्योंकि हमारे यहां इसे जल का फल माना जाता है। सुशांत को यही समझ नहीं आता था कि शुद्ध वेजटेरियन लोग मछली कैसे खा सकते हैं। एक बार मेरे किसी मणिपुरी दोस्त ने इन्हें बैंबू शूट का अचार खिला दिया। उसकी तीखी गंध ने सुशांत को इतना परेशान किया कि वे दोबारा मणिपुरी डिशेज खाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। मणिपुरी वेडिंग बहुत सिंपल ढंग से होती है। वहां शादी में केवल भजन-कीर्तन होता है पर हमारी शादी में जब बाराती बंदूकों से हवाई फायरिंग करने लगे तो मेरे परिवार वाले बुरी तरह घबरा गए पर यह अनुभव मेरे लिए बहुत मजेदार था। सच कहूं तो ससुराल के नए माहौल को लेकर मैं बहुत ज्य़ादा उत्साहित थी। इसलिए जल्द ही यहां के रंग में रंग गई।' प्रस्तुति : इंदिरा राठौर एवं विनीता
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