आइए टांग अड़ाएं और सुख भोगें!

टांग अड़ाना केवल एक कला नहीं, बहुत बड़ी योग्यता भी है। यहां टांग अड़ाए बिना कुछ नहीं होता। काम बने, इसके लिए टांग अड़ाना पड़ता है और कई बार तो दूसरों की अड़ी हुई टांग निकालने के लिए ही टांग अड़ाना पड़ता है।

By Edited By: Publish:Thu, 23 Apr 2015 03:13 PM (IST) Updated:Thu, 23 Apr 2015 03:13 PM (IST)
आइए टांग अड़ाएं और सुख भोगें!

टांग अडाना केवल एक कला नहीं, बहुत बडी योग्यता भी है। यहां टांग अडाए बिना कुछ नहीं होता। काम बने, इसके लिए टांग अडाना पडता है और कई बार तो दूसरों की अडी हुई टांग निकालने के लिए ही टांग अडाना पडता है।

मैं बचपन से चंचल स्वभाव का था। पीठ पीछे मुहल्ले-पडोस के लोग मुझे उत्पाती जीव कहते थे। मैं अपने माता-पिता का लाडला था, इसलिए वे मुझे चंचल मानते थे। इस दुनिया में मान लेने से बहुत कुछ चलता है। शहर का कोई बिगडैल आदमी भी नेता बन जाए तो जनता उसे सिर पर बिठा लेती है। सत्यवादी मान लेती है।

स्कूल के दिनों में मेरी चंचलता मशहूर थी। हर दूसरे-तीसरे दिन मैं अपनी चंचलता का सबूत पेश कर देता था। इधर मेरे माता-पिता इस चंचलता पर ख्ाुश होकर कहते, 'अपना बेटा बडा चंट है, उधर शिक्षक मेरे कान उमेठते। किंतु मैं नहीं सुधरा। निरा उल्टा घडा था। पानी तो जाता क्या, पसीजता तक नहीं। इन्हीं दिनों स्कूल की छुट्टी के समय क्लास के दरवाजे पर खडा हो जाता और जब मेरे सहपाठी वहां से गुजरते, मैं टांग अडा दिया करता। 'धप्प... से जब वह गिरता तब मैं ख्ाूब उछलकर तालियां पीटता। उनकी तकलीफ से मुझे मजा आता। आज भी आता है दूसरे की तकलीफ में मजा...!

पर-पीडऩ-रति इसे ही कहते हैं। किरायेदार और मकान मालिक एक-दूसरे को परेशान करके मजा उठाते हैं। उच्च अधिकारी और छोटे अधिकारी एक दूसरे को तकलीफ पहुंचा कर मजा लेते हैं। राजनीतिक पार्टियों के लोग अपनी विरोधी पार्टी की सभा में खलबली मचाकर मजा उठाते देखे जाते हैं।

मुझे टांग अडाने में मजा आता है। बचपन से लेकर आज तक मैं टांग अडाता आ रहा हूूं। मेरी यह आदत सी बन गई हैै। और अब यह आदत समय के साथ परिष्कृत भी होती जा रही है। मैं मजे हुए खिलाडिय़ों की तरह टांग अडाता हूं। स्पेशलिस्ट हो गया हूूं। टांग अडाऊ स्पेशलिस्ट। लोग दबे मुंह चर्चा करते हैं .... बंदा टांंग अच्छी अडाता है।

मैं ऐसी टांग अडाता हूं कि वैसी अंगद ने भी रावण के दरबार में नहीं अडाई होगी। उन्होंने तो रावण का लिहाज कर लिया था। किंतु मैं किसी का लिहाज नहीं करता। बेशर्मी का जमाना है, लिहाज गया भाड में। अपना उल्लू सीधा होना चाहिए बस।

टांग अडाने के कुछ गुर मैंने ख्ाुद ईजाद किए हैं। जहां जैसी आवश्यकता पडती है, वहां वैसी अडा देता हूं। बचपन में मैं साक्षात टांग अडाता था। अब अदृश्य टांग अडाता हूं। लोगों को पता ही नहीं चलता कि मैंने टांग अडाई है - जब तक कि वह औंधे मुंह गिर ही न पडें। अब टांग अडाने की लत ऐसी पड गई है कि जिस दिन टांग न अडाऊं उसमें चिलकन सी होने लगती है।

हां, यहां मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि बुरे काम में टांग नहीं अडाता। बुरे काम में फंसना ही क्यों भला?

नीति शिक्षा कहती है - बुराई से सदा दूर रहना चाहिए। इसलिए मैं अच्छे काम में टांग अडाता हूं। मैं किसी का भला होते नहीं देख पाता। अत: कई बार रिफ्लेक्स एक्शन में टांग अड जाती है। मुझे अच्छाई में भरोसा है। जहां भरोसा हो वहीं टांग अडाना चाहिए। दुनिया यही कर रही है। भरोसा तोडऩे में मजा है। भरोसेमंद ही मंद भरोसा होते हैं।

खैर! मैं फटे में भी अच्छी टांग अडाता हूं। मौकेपर गच्चा दे जाता हूं। एक दिन हमारे पडोसी शर्मा जी हमारे पास आए। वे 'न काहू की दोस्ती, न काहू से बैर वाली तर्ज पर जीने में विश्वास रखते हैं। उनकी यही जीवनशैली मुझे पसंद नहीं थी। वे हमसे मिक्स-अप नहीं होते थे। हमारी भत्र्सना संगोष्ठी में भाग नहीं लेते थे। ये जीना भी कोई जीना है लल्लू मेरा मतलब शर्मा जी।

एक दिन वे शरणागत हुए और बोले, 'सोहम् जी बडा परेशान हूं।

मैं बोला, 'अच्छा।

'मकान मालिक बडा परेशान कर रहा है।

'अच्छा... अच्छा..

'उसने तुरंत मकान ख्ााली करने को कहा है।

'अच्छा। अच्छा....अच्छा।

'क्या सोहम् जी आप हमारा मजाक उडा रहे हैं!

'नहीं... नहीं...

मैं मन ही मन गदगद हो रहा था - आज आया ऊंट पहाड के नीचे।

'आप कहते थे कि आप चुटकियों में मकान दिला देंगे?, शर्मा जी कुनमुनाए।

'हां तो..., मैं तटस्थ बना रहा और उनके रोने का इंतजार करने लगा।

'मुझे शीघ्र मकान बदलना है।

'उफ बडा बुरा हुआ, कल बताया होता तो फौरन आपको अच्छा मकान दिला देता।

'क्यों?, वह ख्ाुश और न ख्ाुश की मिली-जुली मुद्रा में आ गए।

'क्या बताएं, कल ही तो मैंने दूसरे को एक अच्छा मकान दिलाया है, अब देखना पडेगा। शर्मा जी दुखी हो गए, मैं ख्ाुश था। फटे में टांग अडा दी गई थी। यदि शर्मा जी पूछ लेते कि मकान किसको दिलाया और कौन सा मकान दिलाया तो मुश्किल हो जाती। इसलिए एहतियात के बतौर उन्हें रोता-बिलखता छोडकर मैं सरक लिया।

आज टांगअडाऊ संस्कृति का विकास हो रहा है। इसलिए मैं अच्छी पोजीशन में हूं। वैसे टांगअडाऊ संस्कृति को पनाह देने वाला मैं अकेला नहीं हंू। टांग अडाने का सुख ऐतिहासिक है। यह तो आदिकाल से अडाई जाती रही है। श्रीराम को गद्दी मिलने लगी, तब कैकेयी ने टांग अडा दी थी। राम को वनवास झेलना पडा। कृष्ण पैदा होने वाले थे तो कंस ने उनके माता-पिता को सींखचों के पीछे डाल दिया था। मैं तो बहुत छोटा हूं।

हमने देखा है, कई जगह नौसिखिए टांग अडा देते हैं और उनकी टांगें तोड दी जाती हैं। अत: अब ऐसे केसेज मेरे पास आने लगे हैं। मैं उनको सलाहें देता हूं। पूरी ट्रेनिंग देता हूं। जब तक पूरी जानकारी न हो कोई काम तो क्या टांग भी नहीं अडाना चाहिए। अधिकतर महकमों में कानून और काम के पूरे जानकार व्यक्ति ही टांग अडाने में माहिर होते हैं। टांग ऐसी अडानी चाहिए कि टूटे नहीं। सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। लाठी से टांग कीमती है। टांग टूट गई तो दिक्कत हो सकती है।

पिछले दिनों, चुनावी माहौल में बहुत से लोगों को अपनी-अपनी टांग हाथ में लिए घूमते देखा। उम्मीदवारों के चमचे अपनी एक टांग अपने खेमे में और दूसरी जनता के बीच रखते हैं। जैसे ही उम्मीदवार अपनी तरफ की टांग में चिकोटी काटता है, चमचों की टांग अडऩे लगती है।

मैं एक उम्मीदवार की प्रचार सभा में गया। भाषण और आश्वासन जोरों पर थे। तभी विपक्षी उम्मीदवार ने दो सांड भीड में दौडा दिए। माहौल बिगड गया। विपक्षी उम्मीदवार द्वारा टांग अडा दी गई थी। चौपायों ने दोपायों को खदेड दिया। सभा विसर्जित हो गई थी। ऐसे समय मुझे हॉकी का खेल याद आ जाता है। ये टांगों का खेल है। पूर्व में हम हॉकी में माहिर थे, अब टांग अडाने में। चयनकर्ता हॉकी को भूल गए हैं। हॉकीनुमा टांगें देखकर चयन कर रहे हैं। जिसने टांग अडाई उसी का चयन कर लिया गया। आज हम टांग अडाने की विश्व-प्रतिस्पर्धा में भाग लेते तो विश्व-चैंपियन होते।

टांग अडाने के लिए एक बहुत ही शिष्ट और प्रभावशाली साहित्यिक शब्द है - हस्तक्षेप। हम अपने पडोसी देश को बार-बार आगाह करते रहते हैं कि वह हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे वरना....। इसी वरना के आगे समझौता और शांति वार्ताएं चलती रहतीं हैं।

हम शांति वार्ताएं करने से बाज नहीं आते, वे हस्तक्षेप करने से। पिछले दिनों हमारी दादी शांत हो गईं, हम शांत रहे। ये हमारी संस्कृति है। पडोसी आतंकी गतिविधियों के माध्यम से घुसपैठ कर रहे हैं। लोग थोक भाव में शांत हो रहे हैं। हम शांतिवार्ताएं कर रहे हैं। शांति:। सर्वारिष्ठासु शांतिर्भवतु।

टांग अडाने और छुरा अडाने में बहुत ज्य़ादा फर्क नहीं है! केवल स्तर का फर्क है। छुरा अडाना निम्नस्तरीय है एवं टांग अडाना उच्चस्तरीय। छुरा टुटपुंजिया लोग अडाते हैं तथा जेल की हवा खाते हैं। टांग संभ्रांत व ओहदेदार अडाते हैं और सुख भोगते हैं। टांग अडाने का सुख अनन्य है, सर्वव्यापी है। इसकी व्यापकता के उदाहरण नीचे दिए जा रहेे हैं -

1. जब सक्षम निरीक्षणकर्ता अधिकारी अच्छी गुणवत्ता के माल को पारित करने के पूर्व टांग अडा देता है। तब साक्षात् लक्ष्मी जी उनसे विनय करने लगतीं हैं। वे टांग हटा लेते हैं और सुख भोगते हैं।

2. शादी के अवसर पर फेरों से पहले वर टांग अडा देता और वांछित दहेज की प्राप्ति का सुख भोगता है।

3. दो प्रेमियों के प्रेमपंथ में ये बेदर्दी समाज टांग अडाकर मजा लेता है।

4. पदोन्नति के समय नियंत्रणकर्ता अधिकारी टांग अडा देता है और खुद वांछित जगह पाकर प्रसन्न होता है।

5. शादीशुदा व्यक्ति अपने संबंधियों की मदद करना चाहता है, किंतु उसकी पत्नी टांग अडा देती है। पति पर आधिपत्य जताकर खुश होती है।

ऐसे बहुत से नाजुक समय हैं, जब अलग-अलग लोग अपने हिसाब से अपनी टांगों का प्रयोग करते व सुख भोगते हैं। अब देखिए न, मेरे पास कहने को बहुत कुछ है, लेकिन समय सीमा ने टांग अडा दी। खैर! कुल मिलाकर हम मनुष्यों की हॉकीनुमा टांगें अडाने के लिए ही बनी हैं। जरा अडाकर तो देखिए -

चौपायों की चार टांग, दो दुलत्ती के लिए।

दोपायों की दो टांग, एक अडाने के लिए॥

राकेश सोहम्

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