नई राह

नई-नई शादी में आई उलझनों से वह लड़की इतनी घबरा गई कि अपनी मां के शहर जाने के लिए ट्रेन में बैठ गई। मगर ट्रेन में उसकी भेंट एक बुजुर्ग दंपती से हुई। ट्रेन में उनसे हुई कुछ क्षणों की मुलाकात में आखिर ऐसा क्या हुआ कि लड़की ने अपना

By Edited By: Publish:Mon, 22 Dec 2014 02:49 PM (IST) Updated:Mon, 22 Dec 2014 02:49 PM (IST)
नई राह

प्लेटफॉर्म पर इक्का-दुक्का लोग ही दिख रहे थे। छोटा स्टेशन होने के कारण गाडी आने के समय ही यहां भीडभाड होती है। इस स्टेशन पर रुकने वाली अधिकतर गाडिय़ां सुबह और शाम के समय का अनुसरण करती चलती हैं। अगली गाडी आने में अभी एक घंटा बाकी है। गाडी के अकसर लेट होने के कारण यात्री भी देर से आना पसंद करते हैं। कभी-कभी ट्रेन समय पर आ जाए तो लोगों को आश्चर्य होता है। कइयों की ट्रेन छूट जाती है और लोगों के बीच उस दिन ट्रेन का सही समय पर आना चर्चा का विषय बन जाता है।

एक बुज्ाुर्ग दंपती अभी-अभी टी स्टॉल के पास वाली कुर्सी पर बैठे हैं। उम्र के हिसाब से ही उनके पास सामान भी है। एक छोटा और एक बडा बैग। दोनों ने एक-एक बैगसंभाल रखा है। उनके इस अनपेक्षित आगमन से बुकस्टॉल और टी स्टॉल वाले कर्मचारी उन्हें हैरत से देख रहे हैैं। शायद घर में समय नहीं कट रहा होगा इसलिए चले आए होंगे या फिर उम्र के लिहाज्ा से जल्दी आने का निर्णय लिया होगा। उम्र बढऩे के साथ ही सतर्कता भी बढ जाती है। कई बार असुरक्षा के कारण, या फिर लंबा अनुभव बहुत कुछ सिखा देता है।

बुज्ाुर्ग ने पानी की बोतल निकाल कर इत्मीनान से गला तर किया। उनके इसी उपक्रम के बीच एक हडबडाई सी लडकी प्लैटफॉर्म पर दाखिल हुई। उसके पास एक बडा सा ट्रॉली बैग है। उसके महंगे भडकीले कपडे, चूडिय़ों से भरे हाथ देख कर सामान्य सोच का व्यक्ति भी अंदाज्ा लगा सकता है कि वह नवविवाहित है। उसने हडबडी में प्लैटफॉर्म पर उसी तरह नज्ार डाली, जिस हडबडी में वह आई थी और बुज्ाुर्ग दंपती के बगल में बैठ गई। उसके चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी। उसने कीमती हैंडबैग से महंगा सा मोबाइल निकाला और एक नंबर स्पीड डायल कर बेसब्री से इंतज्ाार करने लगी। दूसरी तरफ से फोन उठाने में हुई देरी उसके चेहरे पर पढी जा सकती थी।

'ओह ममा! आप कितनी देर लगाती हैं फोन उठाने में। कितनी देर से ट्राई कर रही थी मैं, फोन मिलते ही वह फट पडी।

'क्या बात है बेटा। परेशान हो? शायद दूसरी ओर से सवाल पूछा गया।

'तो क्या मैं अब फोन भी नहीं कर सकती? शादी कर दी, पटक दिया आंख मूंद कर। अब बात भी न करूं? लग रहा था कि लडकी बस रो पडेगी। मगर स्थिति ने शायद उसके आंसुओं को बांध रखा था।

'ऐसी बात नहीं..., बताओ तो क्या हुआ?

'ममा वही रोज्ा की चिकचिक। यहां लाइट नहीं रहती। इन्वर्टर अभी तक नहीं लगाया। कहो तो कहते हैं थोडा एडजस्ट करो, लग जाएगा। मैं बोर हो जाती हूं। आपको फोन करूं या टीवी देखूं तो कहते हैं, 'तुम्हारे एक हाथ में मोबाइल और दूसरे हाथ में रिमोट रहता है। मेरी या घर की कोई िफक्र नहीं है तुम्हें। ऑफिस से थक कर लौटो तो पानी भी नहीं पूछती...। ममा, क्या वो एक गिलास पानी भरकर भी नहीं पी सकते? उनके ऑफिस से लौटते समय मेरा सबसे फेवरिट सीरियल चल रहा होता है। परेशान हो गई हूं। मैं स्टेशन से फोन कर रही हूं, घर आ रही हूं..., लडकी ने भडास निकाली।

'मैने तो शादी के पहले ही कहा था, लेकिन तुम्हारे पापा सुनते कब हैं। उनके आगे चलती है किसी की? एक तो छोटी जगह, ऊपर से घटिया सोच वाले लोग। बडे शहर में सुख-सुविधाओं में रहने वाला छोटी जगह पर एडजस्ट नहीं कर सकता। न कहीं घूमने-फिरने की जगह, न सुख-सुविधाएं। तुमने ठीक किया। अच्छा, आ जाओ फिर देखते हैं। खाना-वाना खाया कि नहीं तुमने?

उधर से आने वाली आवाज्ा फोन के बाहर सुनाई दे रही थी, जिसमें रोष था। लडकी की आंखों में आंसू छलक आए थे, अब टपके कि तब टपके। मां के ममत्व की जगह मां का ज्ारूरत से ज्य़ादा लाड-प्यार और सिर चढा ग्ाुरूर इतरा रहा था।

'नहीं मां, कुछ नहीं खाया सुबह से। यहीं स्टेशन पर खा लूंगी। आप कुछ बना कर रखना। ओके मां बाय, लव यू..., लडकी ने फोन बंद कर दिया। कुछ देर फोन को देखती रही, फिर चुन्नी के कोर से आंखें पोंछ कर सीट से पीठ टिका कर बैठ गई। लडकी बुज्ाुर्ग दंपती के बगल में बैठी थी, लिहाज्ाा उन्होंने सारी बातें सुन ली थीं। पति-पत्नी ने आंखों ही आंखों में बात की, जैसे कह रहे हों, 'मामला गंभीर लगता है। फिर बुज्ाुर्ग उठे और तीन चाय का ऑर्डर दे आए। चाय आने तक दोनों ख्ाामोश थे, लेकिन उनकी मुस्कुराहट आपस में बात कर रही थी। लडकी आंखें मूंदे बैठी थी जैसे अपने अतीत और वर्तमान का लेखा-जोखा कर रही हो और भविष्य की कल्पना से उसे सिहरन हो रही हो। चाय आते ही बुज्ाुर्ग महिला ने पहल की, 'बिटिया चाय पी लो।

'नहीं आंटी। थैंक यू, आप लोग लीजिए।

'हम पी लेंगे, तुम भी ले लो, तीन प्याली हैं।

महिला के स्नेह-सिक्त आग्रह के बाद वह मना नहीं कर पाई। बुज्ाुर्ग अंकल ने कहा, 'भई चाय के साथ कुछ खिलाओ भी। मुझे तो कुछ खाने का मन कर रहा है।

आंटी ने छोटे बैग से मठरी और नमकीन निकाल कर बढा दिया। लडकी ने फिर औपचारिकता दिखाई, 'आप लोग लीजिए अंकल, मुझे भूख नहीं है।

'कमाल करती हो बिटिया। अभी तो कह रही थी कि सुबह से कुछ नहीं खाया। चिंता मत करो ये आंटी ने बनाया है। हम भी खाएंगे। भूखे पेट रहने से चिडचिडापन बढ जाता है, इसलिए कुछ खाते रहना चाहिए, अंकल ने मज्ााक में कहा, मानो जल्दी ही आपस की दूरियां मिटा कर बातचीत का सिलसिला शुरू करना चाहते हों। बुज्ाुर्ग ज्य़ादा देर शांत नहीं रह सकते। आख्िार उनके पास जीवन भर का अनुभव जो होता है बांटने के लिए। लडकी ने न चाहते हुए भी प्लेट ले ली। आंटी ने बातचीत शुरू करने के लिए एक छोर पकड लिया, 'यहां आपकी ससुराल है बिटिया?

'नहीं आंटी। यहां मेरे पति की नौकरी है। हम दोनों अकेले रहते हैं यहां।

'तब तो बोर हो जाती होगी, है न!

'हां अंाटी यही तो रोना है। न जान-पहचान, न कहीं जाने की जगह। लाइट भी कम रहती है। टीवी या मैगजीन ही सहारा हैं। उस पर भी ये कई बार टोकते हैं, ये मत करो-वह मत करो। मैं तो परेशान हो गई हूं।

'हां ये तो सही बात है। कबसे हो यहां?

'शादी को अभी चार-पांच महीने ही हुए हैं लेकिन यहां पिछले दो महीने से हूं। मेरा यहां मन नहीं लगता। घर की, मम्मा-पापा की याद आती है। कुछ समझ नहीं आता क्या करूं। लडकी धीरे-धीरे खुलने लगी थी।

'माफ करना बेटा। मुझे आप दोनों के बीच में नहीं बोलना चाहिए, लेकिन बात निकली है इसलिए बता रही हूं। शादी के बाद का यह समय एक दूसरे को करीब से जानने-समझने का होता है। सबकी पसंद-नापसंद अलग-अलग होती है और स्वभाव भी। लडकी को नए माहौल में आकर उसके हिसाब से अपने को ढालना होता है और लडके को भी तो नए साथी के साथ एडजस्ट करना होता है।

'हां भई। तुम सच कह रही हो। अरे बिटिया जब हमारी शादी हुई थी न, तब हम दोनों में भी ख्ाूब तू-तू मैं-मैं होती थी। उम्र कम थी। फिर दोनों ने एक-दूसरे से हर मसले पर बात शुरू की। एक-दूसरे को जाना-समझा तो ज्िांदगी आसान होती गई। फिर लगने लगा मानो हम एक-दूसरे के लिए ही बने हों। सोचो ऐसी छोटी-छोटी बातों पर लोग सोचने लगें तो न जाने जीवन में कितनी बार तलाक की नौबत आ जाए, मगर हमारी संस्कृति एक-दूसरे के लिए जीना सिखाती है। तभी तो शादी से पहले एक दूसरे को देखे बिना भी हम हंसते-हंसते ज्िांदगी बिता लेते हैं।

'हां यह तो सही बात है। जानती हो बिटिया उस समय मोबाइल तो थे नहीं। चि_ी-पत्री पहुंचने में बहुत समय लगता था और कोई समझाने-बुझाने वाला भी न था। मनोरंजन के लिए बस रेडियो था। मुझे गाने सुनने का बडा शौक था। ये आते तो मुझे टोकते। फिर मैंने बहुत सोचा। अगले दिन जैसे ही ये आए, मैं दरवाज्ाा खोलने गई। ये तो मुझे देख कर चौंक गए। कहने लगे, अरे ऐसे बन-संवरकर कहां जा रही हो? फिर जब ये हाथ-मुंह धोकर आए तो मैं चाय-नाश्ता लेकर साथ बैठ गई। इन्होंने मज्ााक में कहा कि क्या रेडियो के सेल ख्ात्म हो गए हैं? मैंने कहा, आपको पसंद नहीं, इसलिए नहीं चलाया। इसके बाद तो इन्होंने ख्ाुद आगे बढ कर रेडियो ऑन कर दिया।

'...अरे बिटिया वो दिन तो मैं आज भी नहीं भूल पाता। बस इनकी एक छोटी सी पहल ने हमारी दुनिया बदल दी। ये रोज्ा कुछ न कुछ नया बना कर इंतज्ाार करतीं। इनके हाथ से बने व्यंजनों के स्वाद का तो मैं आज भी कायल हूं। इस तरह हमने एक-दूसरे के लिए जीना सीख लिया। एक-दूसरे से न कोई शिकवा न शिकायत। दो बच्चे हैं, जो ब्याह कर अपना-अपना घर संभाल रहे हैं और हम अपनी दुनिया में मस्त। यही हमारे प्यार और सुखी वैवाहिक जीवन का रहस्य है....।

'लेकिन अंकल वह मुझसे प्यार नहीं करते। इसलिए तो और भी बुरा लगता है।

'बेटा पुरुष इस मामले में थोडे कंजूस होते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह बीवी से प्यार नहीं करते। प्यार तो समर्पण का नाम है। इसे दिल की गहराइयों से महसूस किया जाता है। इसमें व्याकुलता होती है एक-दूसरे के लिए। उसे प्रदर्शन की ज्ारूरत नहीं होती। मैंने कभी आई लव यू नहीं कहा इनसे। यह शिकायत तुम्हारी आंटी कर सकती हैं।

'अरे अब बुढापे में कहोगे भी क्या! बेटी, आजकल तो प्यार भी दिखावा बन चुका है। लेकिन जहां दिखावा होता है, वहां प्यार नहीं होता। ये पुरुष ऊपर से जितने कठोर होते हैं न, अंदर से उतने ही भावुक होते है। देखना वो तुम्हें घर में न पाकर तुरंत फोन लगाएंगे।

'लेकिन मैने फोन स्विच ऑफ कर दिया है। 'तो वो ढूंढते-ढूंढते चले आएंगे...।

दोनों के अनुभव वह सुन रही थी। शायद वे सही कह रहे हैं। उससे भी तो ग्ालतियां हुई हैं। उसे आश्चर्य हो रहा था कि उसकी मां ने कभी उसे समझाने की कोशिश क्यों नहीं की और ये लोग अपने अनुभव बांट रहे हैं। पापा भी मुझसे प्यार करते हैं। वे मेरे साथ ग्ालत नहीं कर सकते। मुझे उनकी भावनाओं का ध्यान रखना होगा। लेकिन मैं वापस घर कैसे जाऊं ? आंखें कैसे मिलाऊंगी उनसे? तभी उसने नज्ार उठाकर देखा तो चौंक पडी, 'अरे ये तो वही हैं। दरवाज्ो पर परेशान से खडे इधर-उधर देख रहे हैं।

'आंटी देखो उधर, वो आ गए।

'देखा बिटिया, मैने कहा था न!

अंकल उठे और युवक के पास पहुंचे, 'क्या बात है बेटा। कुछ परेशान से दिख रहे हो?

'बस यूूं ही, उसने नज्ारें घुमाते हुए कहा।

'बताओ बेटा, शायद मैं मदद कर सकूं? युवक ने उन्हें सब कुछ बता दिया।

'ओह तो ये बात है। अरे भई, नाज्ाो से पली लडकी से ब्याह किया है तो नखरे भी सहने पडेंगे। प्यार में रूठना-मनाना चलता रहता है बरख्ाुरदार। ख्ौर, अब चलो, जल्दी से उसे आई लव यू बोलो और झगडा ख्ात्म करो। देखो वो वहां बैठी है आंटी के पास।

युवक शरमा गया। उसके मन में अपने व्यवहार के प्रति पश्चाताप था। अंकल बोले, 'लो बिटिया ले आए हम इन्हें।

'देखो दोनों कैसे शरमा रहे हैं। अरे भई अब अपनी रूठी दुलहनिया को ले जाओ। भूख से बुरा हाल है बेचारी का। चेहरा तो तुम्हारा भी बता रहा है कि दिन भर से भूखे हो।

'हां भई ये लो कुछ रुपये, आज का डिनर हमारी तरफ से किसी होटल में जाकर करो। इसे आइसक्रीम ज्ारूर खिलाना...। हमारी ट्रेन आ गई। अब हम चलेंगे। बुज्ाुर्ग ने बैग उठा कर कहा। उनके चेहरे पर उल्लास था और नवदंपती एक-दूसरे से नज्ारें चुरा खडे थे।

'पैसे रहने दीजिए आंटी। आपने हमें एक नई राह दिखाई है। हमारे लिए यही काफी है, लडकी ने औपचारिकतावश कहा।

'अरे बेटा इसे हमारा आशीर्वाद समझकर रख लो, आंटी ने उसके हाथ में जबरन पैसे रखे। ट्रेन सही समय पर प्लेटफॉर्म पर लग चुकी थी। दोनों ने अंकल-आंटी को विदा किया। तभी लडकी का फोन बजा, 'अरे बेटा कब से लगा रही हूं, स्विच ऑफ बता रहा था। बैठ गई तुम ट्रेन में? किस डिब्बे में हो, कब तक पहुंचोगी? मैं लेने आ जाऊंगी...

'हां, ममा मैंने फोन अभी ऑन किया है। चिंता मत करें। मैं ठीक हूं। अब मैं नहीं आ रही हूं। बाय मम्मा, बिना उत्तर सुने ही फोन काट दिया गया। वे एक-दूसरे का हाथ थामे स्टेशन से बाहर निकल रहे थे। दूर जाते ट्राली बैग के पहियों की आवाज्ा धीमी होती गई। प्लैटफॉर्म पर फिर से शांति पसर गई...।

डॉ. गजेंद्र नामदेव

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