खुशियों की खिड़की खुली

टेक्नोलॉजी ने स्त्रियों की जिंदगी में खुशियों की नई खिड़की खोली है। इसने न सिर्फ जमाने की रफ्तार से वाकिफ कराया, बल्कि दुनिया को अपनी नजर से देखने का चश्मा भी मुहैया कराया।

By Edited By: Publish:Tue, 03 Mar 2015 11:38 AM (IST) Updated:Tue, 03 Mar 2015 11:38 AM (IST)
खुशियों  की खिड़की खुली

टेक्नोलॉजी ने स्त्रियों की जिंदगी में खुशियों की नई खिडकी खोली है। इसने न सिर्फ जमाने की रफ्तार से वािकफ कराया, बल्कि दुनिया को अपनी नज्ार से देखने का चश्मा भी मुहैया कराया। इस टेक्नोसैवी स्त्री की ज्िांदगी कितनी बदली है, जानने की कोशिश इस लेख में।

यह दो पीढी की स्त्रियों का रोज्ानामचा है। एक मां है और दूसरी बेटी। मां हैं मिसेज्ा शर्मा और बेटी है संगीता। लगभग 40 वर्ष पहले मिसेज्ा शर्मा और आज की संगीता में क्या फर्क है, जानते हैं इन दो दृश्यों के माध्यम से।

चालीस साल पहले

मिसेज्ा शर्मा अपने घर में सबसे पहले जागती थीं। पति और बच्चों का लंच बॉक्स तैयार करती थीं। सबके जाने के बाद घर की सफाई करतीं और नहा-धोकर पूजा करतीं। उनका वास्तविक नाम किसी को मालूम नहीं था। घर में वह मां, पत्नी, बहू, दीदी, चाची थीं और मुहल्ले के लोग उन्हें मिसेज्ा शर्मा के नाम से जानते थे। उन्हें लोगों ने बहुत कम अवसरों पर बाहर निकलते देखा था। पूरे दिन घर के कामों में बिता देतीं। घर के सारे बडे निर्णय पति लेते और वह मूक सहमति जता देतीं। उनकी दुनिया घर की चारदीवारी तक सीमित थी...।

आज का दृश्य

मिसेज्ा शर्मा की बेटी संगीता की ज्िांदगी अपनी मां से बहुत अलग है। वह होममेकर हैं और व्यस्त भी हैं, मगर उनकी ज्िाम्मेदारियों का स्वरूप अलग है। घर के कार्यों के लिए उनके पास हेल्पर है। सुबह उठ कर वह उसे किचन के कामों के लिए निर्देश देती हैं और ख्ाुद बच्चों की तैयारी करवा कर उन्हें गाडी से स्कूल छोडऩे जाती हैं। घर लौटने के बाद ज्ारूरी काम निपटा कर वह अपनी फ्रेंड को व्हाट्सअप पर मेसेज करती हैं। थोडी देर में ही दोस्त आ जाती है और दोनों जिम जाती हैं। जिम से लौटने के बाद वह घर के काम निपटाती हैं। अख्ाबार और पत्र-पत्रिकाएं पढती हैं और फिर बच्चों को स्कूल से लेने निकल जाती हैं। दोपहर को बच्चे होमवर्क में बिज्ाी होते हैं तो वह भी लैपटॉप पर काम करती हैं। अपना ब्लॉग लिखती हैं, सोशल साइट्स पर चैट करती हैं और नेट सर्फिंग करती हैं। शाम को बच्चों को लेकर पार्क निकल जाती हैं। शॉपिंग से लेकर बाहर के तमाम ज्ारूरी काम उन्हीं के जिम्मे है। पति भी मदद करते हैं। बडा बदलाव यह है कि वह अपनी दोस्तों के बीच मिसेज्ा संगीता नहीं, संगीता के नाम से जानी जाती हैं....।

टेक्नोसैवी स्त्रियां

पिछले दिनों गूगल के एक सर्वे में कहा गया कि देश में 150 मिलियन इंटरनेट यूजर्स हैं, जिनमें से लगभग 40 प्रतिशत स्त्रियां हैं। इनमें 24 प्रतिशत रोज्ा ईमेल्स चेक करती हैं, सोशल साइट्स पर ऐक्टिव हैं या ऑनलाइन शॉपिंग करती हैं।

आज लगभग 60 मिलियन स्त्रियां रोज्ामर्रा के जीवन में इंटरनेट का उपयोग कर रही हैं। इंटरनेट का उपयोग वे सोशल साइट्स, म्यूज्िाक डाउनलोडिंग, एजुकेशनल कंटेंट, जॉब सर्च, तमाम विडियोज्ा और समाचार देखने के लिए करती हैं। इनमें 15 से 34 की उम्र वाली स्त्रियां ज्य़ादा सक्रिय हैं। वे सबसे ज्य़ादा फूड, बेवरेज्ा, रेसिपीज्ा, बेबी केयर, हेयर केयर, स्किन केयर, एक्सेसरीज्ा, ज्यूलरी जैसी चीज्ों सर्च करती हैं।

दिल्ली-एनसीआर में िफजियोथेरेपी सेंटर चलाने वाली डॉ. नेहा कहती हैं, 'टेक्नोलॉजी ने हमारा काम बहुत आसान कर दिया है। मैं ज्य़ादा समय घर में नहीं रह पाती, इसलिए घर में सेफ्टी और कार्यों के लिए पूरी तरह टेक्नोलॉजी पर निर्भर हूं। लगभग दो वर्ष पूर्व मैं प्रेग्नेंट थी। यह मेरी फस्र्ट प्रेग्नेंसी थी, इसलिए चिंतित भी रहती थी। उसी वक्त मेरे सेंटर में दो प्रेग्नेंट पेशेंट्स आईं। हम तीनों में दोस्ती हो गई। आज हम व्हाट्सअप पर पेरेंटिंग और बेबी केयर से लेकर बहुत सारी बातें शेयर करते हैं। हम तीनों की बेटियां हैं और तीनों में महज्ा 2-3 महीने का ही अंतर है। हम मिलते-जुलते रहते हैं।

आज घर-बाहर के बीच व्यस्त रहने वाली भारतीय नौकरीपेशा स्त्रियों ने परिवार व दोस्तों के संपर्क में रहने के नए तरीके ढूंढ लिए हैं। नई पीढी की ये टेक्नोसैवी स्त्रियां हर स्तर पर संतुलन चाहती हैं। इसमें सोशल नेटवर्किंग टूल्स बहुत काम आ रहे हैं।

खुल रही है नई दुनिया

दिल्ली में रहने वाली 39 साल की दिव्या होममेकर हैं, लेकिन पूरे दिन किचन और घरेलू कामों में खटना उन्हें नापसंद है। उन्होंने नया घर बनवाया तो सबसे पहले किचन को मॉडर्न बनाया। बिल्ट-इन मॉड्यूलर किचन, कुकिंग रेंज के अलावा उनके घर में सारे मॉडर्न टूल्स और किचनवेयर मौजूद हैं। उन्होंने अपनी मां को पूरे दिन घर के कामों में खटते देखा, लेकिन वह अपने लिए 2-3 घंटे रोज्ा निकालती हैं। इस समय का सदुपयोग वह वॉक, एक्सरसाइज्ा, योग, जिमिंग, स्विमिंग, डांसिंग के अलावा लिखने-पढऩे में लगाती हैं। वह रोज्ा एक न्यूज्ा पेपर ज्ारूर पढती हैं, टीवी पर आधे घंटे न्यूज्ा देखने के अलावा अपने मनपसंद टीवी सीरियल्स भी देखती हैं। वह खेल, राजनीति से लेकर देश-दुनिया की हर घटना पर नज्ार रखती हैं और सोशल साइट्स में उन पर टिप्पणियां भी करती हैं। इसके अलावा कभी किचन में स्पेशल बनाने का मन करता है तो इसके लिए वह यूट्यूब की मदद लेती हैं। पूरी रेसिपी लाइव बनते देखती हैं और अपनी किचन में प्रयोग करती हैं।

ग्ााज्िायाबाद की श्वेता नौकरीपेशा हैं। सिंगल फेमिली है और दो बच्चे हैं। कहती हैं, 'संयुक्त परिवारों का चलन कम होने से बहुत नुकसान हुआ है, लेकिन इसके कुछ फायदे भी हैं। सिंगल फेमिली में स्त्रियां ज्य़ादा स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हुई हैं। हालांकि उन पर ज्िाम्मेदारियां भी ज्य़ादा हैं। मेरे बच्चे छोटे हैं, सास-ससुर दूर रहते हैं, ऐसे में फुलटाइम हेल्पर के होने से मेरे काम बहुत आसान हो जाते हैं। घर में पूरी तरह बच्चों को समय देती हूं। मुझे जिम जाने का समय नहीं मिलता, इसलिए मैंने घर में ही ज्ारूरी इक्विपमेंट्स रखे हैं। सायक्लिंग और अन्य एक्सरसाइजर्स की मदद से ख्ाुद को फिट रखती हूं। घर में हेल्थ गैजेट्स भी हैं, ताकि हेल्थ चेकअप्स के लिए बाहर जाने का समय बचा सकूं। दूध, राशन या सब्ज्िायों के लिए फोन घुमाती हूं और सब कुछ घर पहुंच जाता है। ज्य़ादातर सामान ऑनलाइन ऑर्डर करती हूं, ताकि वीकेंड पर शॉपिंग से बच सकूं और उस समय को पूरी तरह बच्चों को दूं। घर में सीसी कैमरा लगा रखा है, ताकि बच्चों और हेल्पर की गतिविधियां पता चलती रहें। मैं और मेरे पति बीच-बीच में घर पर फोन करते रहते हैं। हमने बच्चों में भी छोटे-छोटे काम ख्ाुद करने की आदत विकसित की है। वे माइक्रोवेव अवन में अपना खाना गर्म कर सकते हैं। इमर्जेंसी में अपने लिए टोस्ट सेंक सकते हैं और इलेक्ट्रिक केटल में दूध गर्म कर सकते हैं। मेरी छोटी बेटी एजुकेशनल विडियोज्ा से नर्सरी राइम्स याद करती है। बेटा थोडा बडा है, वह व्हॉट्सअप से लगातार टच में रहता है। इसके अलावा मेरे पडोस में भी दो-तीन अच्छी फ्रेेंड्स हैं, जिनसे लगातार संपर्क में रहती हूं। कभी ऑफिस मीटिंग्स में देर हो जाए तो वे बच्चों को देख लेती हैं। बच्चों की टीचर्स से भी मैं संपर्क में रहती हूं। मेट्रो सिटीज्ा में इसी तरह अपने परिवार को संतुलित रखना पडता है।

संतुलित दृष्टिकोण ज्ारूरी

नई टेक्नोसैवी स्त्री के लिए छोटा सा स्मार्ट फोन किसी वरदान से कम नहीं है। स्त्री को नया आत्मविश्वास मिला है मॉडर्न गैजेट्स और टेक्नोलॉजी से। पर्सनल सेफ्टी के उपायों से लेकर घर-परिवार की ज्िाम्मेदारियों तक के टिप्स उन्हें इंटरनेट और सोशल साइट्स से मिल रहे हैं। मगर जैसा कि कहा जाता है, अति सर्वत्र वर्जयेत, यानी अति हर चीज्ा की बुरी है। टेक्नोलॉजी का संतुलित इस्तेमाल यदि अच्छे परिणाम दे सकता है तो इसकी अधिकता से नुकसान भी हो सकता है। मगर आज की स्त्री इस बात को अच्छी तरह जानती है कि ख्ाुशियों की इस टेक्नोलॉजी से कब और कितना जुडऩा है।

घर बैठे दुनिया की सैर

सौम्या टंडन टीवी ऐक्टर

सोशल साइट्स और इंटरनेट ने घर बैठे दुनिया की सैर करा दी है। मेरी मां के ज्ामाने में मोबाइल-इंटरनेट नहीं था, लेकिन अब वह व्हाट्सऐप पर फेमिली ग्रुप से कनेक्ट रहती हैं। जो लडकियां घर से बाहर कम निकल पाती हैं, उनके लिए छोटा सा डिवाइस बहुत काम का है। इससे वह दुनिया के संपर्क में रहती हैं। मैं ट्विटर पर ऐक्टिव हूं। शो एयर होने के तुरंत बाद मुझे लोगों के फीडबैक मिल जाते हैं। मैं एंड टीवी के सीरियल 'भाभी जी घर पर हैं में मिस कानपुर रह चुकी मॉडर्न स्त्री की भूमिका में हूं, जो ग्रूमिंग क्लासेज्ा चलाती है। यह तो रील लाइफ की बात है, मगर रीअल लाइफ में स्त्रियों की ग्रूमिंग मोबाइल, इंटरनेट से हो रही है। टीवी पर साबुन-तेल से ज्य़ादा विज्ञापन गैजेट्स के दिख रहे हैं। इसी से पता चलता है कि हमारी ज्िांदगी में टेक्नोलॉजी की क्या अहमियत है।

घर-बाहर मिलती है मदद

शिल्पा शिंदे, टीवी ऐक्टर

टेक्नोलॉजी का सबसे ज्य़ादा प्रभाव घर में रहने वाली स्त्रियों पर पडा है। उनकी सोशल लाइफ ऐक्टिव हो गई है। महानगरीय जीवनशैली में सोशल टूल्स से स्त्रियों को फायदा हुआ है। मोबाइल ऐप्लीकेशंस से वे बहुत लाभ उठा रही हैं। हालांकि मैं थोडी प्राइवेट िकस्म की हूं और सोशल साइट्स का इस्तेमाल कम करती हूं, लेकिन मैं ऐसी कई स्त्रियों को जानती हूं, जो इसके ज्ारिये अपनी उडान भर रही हैं। मैं भी इंटरनेट सर्फिंग करती हूं। मेरा गार्मेंट्स का छोटा सा साइड बिज्ानेस है, जिसके लिए मुझे इंटरनेट सर्च करने की ज्ारूरत पडती है। मां को कोई नई डिश बनानी हो तो हम तुरंत इंटरनेट सर्च करते हैं। मोबाइल फोन पर तो हम इतना निर्भर हो चुके हैं कि एक दिन हाथ में न हो तो लगता है कि दुनिया थम जाएगी। बहुत से फायदे हैं इसके तो थोडे नुकसान भी हैं। फिर भी यह तो मानना होगा कि स्त्रियों की ज्िांदगी को इसने बहुत बदल दिया है।

इंदिरा राठौर

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