चलें समय के साथ

अपने बच्चों को पर्याप्त समय न दे पाने का अफसोस अकसर कामकाजी स्त्रियों को सालता रहता है, पर यह इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। भलाई इसी में है कि वे बदलते वक्त की ज़रूरतों को स्वीकारते हुए उसी के अनुकूल अपने बच्चे को बेहतर परवरिश दें।

By Edited By: Publish:Wed, 30 Mar 2016 02:37 PM (IST) Updated:Wed, 30 Mar 2016 02:37 PM (IST)
चलें समय के साथ

अपने बच्चों को पर्याप्त समय न दे पाने का अफसोस अकसर कामकाजी स्त्रियों को सालता रहता है, पर यह इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। भलाई इसी में है कि वे बदलते वक्त की जरूरतों को स्वीकारते हुए उसी के अनुकूल अपने बच्चे को बेहतर परवरिश दें।

जब भी मैं बचपन के दिनों को याद करती हूंं तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं अपने बच्चों के साथ बहुत ज्य़ादती कर रही हूं। मेरी मां हमेशा घर पर रहती थीं। वह सुबह से शाम तक हमारी सारी फरमाइशें पूरी करने में जुटी रहतीं। जबकि मैं सुबह आठ से शाम सात बजे तक घर से बाहर रहती हूं। इस बीच मेरे बच्चे आया के साथ घर पर अकेले होते हैं। ऐसा मानना है एक एमएनसी में कार्यरत पल्लवी का।

यह केवल किसी एक कामकाजी स्त्री की समस्या नहीं है, बल्कि आजकल ज्य़ादातर मांएं अपने बच्चों को घर पर अकेला छोडकर ऑफिस जाने में ग्लानि महसूस करती हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि वे अपने बच्चे को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहीं और इससे उनके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाएगा, पर ऐसा सोचना गलत है। अगर सही ढंग से टाइम मैनेजमेंट किया जाए तो सीमित समय में भी बच्चे की अच्छी देखभाल की जा सकती है। यह तभी संभव है, जब भावुक होने के बजाय आप इस मुद्दे पर व्यावहारिक ढंग से सोचते हुए समस्या का समाधान ढूंढने की कोशिश करें।

बचें अति भावुक ता से

अपनी संतान के साथ भावनात्मक लगाव होना स्वाभाविक है, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि केवल इमोशनल होकर सोचने से कुछ भी हासिल नहीं होगा। बच्चे की बेहतरी के लिए उसकी सेहत, खानपान, शिक्षा और भावनात्मक विकास पर ध्यान देना बेहद जरूरी है। यह तभी संभव है, जब आप बिना किसी अफसोस के अपने बच्चे के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताएं। यह जरूरी नहीं है कि आप चौबीसों घंटे उसी के पास रहें, बल्कि उसके साथ जितनी भी देर रहें, प्यार भरी देखभाल के लिए समय जरूर निकालें। 'मैं बच्चे को समय नहीं दे पा रही, सोच कर उदास होने के बजाय यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि मैं आज की आत्मनिर्भर मां हूं और अपनी संतान को अच्छी परवरिश देने में पूरी तरह सक्षम हूं।

समाधान ढूंढना है जरूरी

कामकाजी मांओं के पास हमेशा समय की कमी रहती है। इससे उन्हें कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं, पर ऐसे में हालात को कोस कर उदास होने से परेशानी और भी बढ जाएगी। अत: भलाई इसी में है कि सीमित समय में अपने बच्चे की सही देखभाल की जाए। मिसाल के तौर पर अगर बच्चे के स्कूल में पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग है और उसी दिन ऑफिस में जरूरी काम है तो ऐसी स्थिति में चिंतित होने के बजाय अपने पति से आग्रह करें कि वह अकेले ही स्कूल चले जाएं। अगर उनके पास भी फुर्सत न हो तो आप उसकी क्लास टीचर को पहले ही फोन करके बता दें किआप स्कूल पहुंचने में असमर्थ हैं। फिर फोन पर ही उनसे बच्चे की परफॉर्मेंस, पढाई और व्यवहार से जुडी बातें पूछ लें। आजकल टीचर्स कामकाजी मांओं की परेशानियों को समझते हुए उन्हें पूरा सहयोग देती हैं।

सहयोग से बनेगी बात

चाहे कोई घरेलू कामकाज हो या बच्चे की परवरिश, ज्य़ादातर स्त्रियां दूसरों से सहयोग लेने में झिझकती हैं, पर इसमें कोई बुराई नहीं है। जब भी जरूरत हो, आप अपने करीबी लोगों की मदद करें और किसी मुश्किल स्थिति में उनसे सहयोग मांगने में संकोच न बरतें। अगर ऑफिस और घर के बीच संतुलन बनाने में दिक्कत आ रही है तो घर के लिए ऐसी घरेलू सहायिका की व्यवस्था करें, जो दिन भर बच्चे के साथ रहे। घरेलू कार्यों और बच्चे की देखभाल में पति से सहयोग लेने में संकोच न बरतें, बल्कि उन्हें प्यार से समझाएं कि इन कार्यों में उनकी भागीदारी बेहद जरूरी है। अपनी सहेलियों और फीमेल कलीग्स से इस समस्या पर खुलकर बातचीत करें। वे आपकी स्थिति को ज्य़ादा बेहतर ढंग से समझ पाएंगी और उनकी सलाह आपके लिए उपयोगी साबित होगी।

पहचानें अपनी प्राथमिकताएं

कामकाजी स्त्रियों के साथ अकसर ऐसा होता है कि वे समय के अनुकूल अपनी प्राथमिकताएं पहचान नहीं पातीं। जब वे ऑफिस में होती हैं तो उन्हें ऐसा लगता है कि मेरा बच्चा घर पर अकेला होगा, इसी तरह जब वे घर पर होती हैं तो वहां उन्हें अगले दिन होने वाली मीटिंग की चिंता सता रही होती है। ऐसी स्थिति में हमें वर्तमान की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अपनी प्राथमिकताएं तय करनी चाहिए। मिसाल के तौर पर जब आप ऑफिस में हैं तो बच्चे के बारे में ज्य़ादा सोचकर उदास होने से कोई फायदा नहीं होगा। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप एक बार घर पर फोन करके बच्चे का हाल जान लें और दोबारा अपने काम में जुट जाएं। इसी तरह ऑफिस का सारा काम वहीं ख्ात्म करके घर आएं और बच्चे पर पूरा ध्यान दें। अगर आपके कार्य की प्रकृति ऐसी है, जिसमें आपको फोन या ई मेल के ज्ारिये ऑफिस से संपर्क बनाए रखना जरूरी हो, तब भी इस बात को लेकर अपने मन में कोई ग्लानि न रखें क्योंकि ऐसी सोच से आपके व्यवहार में चिडचिडापन आएगा और बच्चे पर इसका नकारात्मक प्रभाव पडेगा। ऐसी परेशानियों से बचने का सही तरीका यही है कि कामकाजी स्त्रियां अपने सीमित समय में ही बच्चे को भरपूर प्यार और अच्छी देखभाल देने की कोशिश करें। अगर आप सही ढंग से अपनी प्राथमिताएं तय करेंगी तो आपको कोई परेशानी नहीं होगी।

ख्ाुद को दें शाबाशी

अगर आप जॉब करती हैं तो अपनेे मन से यह अपराध बोध निकाल दें कि 'मैं अपने बच्चे पर ध्यान नहीं देती, बल्कि यह तो अच्छी बात है कि आप शिक्षित और आत्मनिर्भर हैं। इसलिए अपने बच्चे को बेहतर परवरिश दे सकती हैं। कामकाजी मांओं के बच्चों को छोटी उम्र से ही यह बात समझ आ जाती है कि उनकी मां आत्मनिर्भर है और उन्हें इस बात पर बहुत फख्ा्र महसूस होता है। इतना ही नहीं, ऐसे बच्चे छोटी उम्र से ही व्यवस्थित और वक्त के पाबंद होते हैं। रोजाना कुछ घंटे मां के बगैर रहने की वजह से ये बहुत जल्दी अपने काम ख्ाुद करना सीख जाते हैं। इसके अलावा जॉब करने वाली मांओं को अपने सीमित समय का अंदाजा होता है। इसलिए वे हर पल का सदुपयोग करते हुए अपने बच्चों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास पर पूरा ध्यान देती हैं। मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि कामकाजी मांओं के बच्चे स्कूल और करियर में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।

इसलिए अगर आप जॉब करती हैं हैं तो ख्ाुद को दोषी मानने के बजाय बदलते वक्त के साथ चलना सीखें। अपनी सक्रिय और व्यवस्थित जीवनशैली की वजह से आप अपनी संतान के लिए बेहतर रोल मॉडल साबित हो सकती हैं क्योंकि बच्चे की पहली टीचर मां ही होती है।

कैसे हो सही तालमेल

-अपनी दिनचर्या इस तरह व्यवस्थित करें कि शाम को घर लौटने के बाद आपको किचन में ज्य़ादा वक्त न बिताना पडे।

-शाम को कम से कम एक घंटे का समय पूरी तरह बच्चे के लिए ख्ााली रखें।

-डिनर के दौरान उसके साथ हलकी-फुलकी बातें करें।

-छुट्टी के दिन बच्चे को आसपास की जगहों पर आउटिंग के लिए जरूर ले जाएं।

- ऑफिस से घर लौटने के बाद जहां तक संभव हो टीवी, इंटरनेट और मोबाइल जैसे गैजेट्स से दूर रहने की कोशिश करें।

-अगर आपके बच्चे छोटे हैं तो उन्हें बेड टाइम स्टोरी जरूर सुनाएं।

- अगर बच्चे बडे हों तो घरेलू कार्यों में उनसे भी सहयोग लें, ताकि इसी बहाने उन्हें आपके साथ वक्त बिताने का मौका मिले।

सखी फीचर्स

इनपुट्स : डॉ.आरती आनंद, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, सर गंगाराम हॉस्पिटल दिल्ली

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