बहानेबाज़ कैसे-कैसे

बहाने बनाना शायद सबसे आसान काम है। तभी तो हमारे आसपास कई तरह के बहानेबाज़ नज़र आते हैं। आइए आपको मिलवाते हैं, कुछ ऐसे बहानेबाज़ों से जिनसे मिलने के बाद आप भी यही कहेंगी-अरे! मैं तो इनसे पहले भी मिल चुकी हूं। हाजि़रजवाब

By Edited By: Publish:Wed, 23 Dec 2015 03:08 PM (IST) Updated:Wed, 23 Dec 2015 03:08 PM (IST)
बहानेबाज़ कैसे-कैसे

बहाने बनाना शायद सबसे आसान काम है। तभी तो हमारे आसपास कई तरह के बहानेबाज नजर आते हैं। आइए आपको मिलवाते हैं, कुछ ऐसे बहानेबाजों से जिनसे मिलने के बाद आप भी यही कहेंगी-अरे! मैं तो इनसे पहले भी मिल चुकी हूं।

हाजिरजवाब

ऐसे लोग बहाने बनाने में उस्ताद होते हैं। कुछ लोग मजबूरी में बहाने बनाते हैं, पर इनके साथ ऐसी बात नहीं है। इनके पास हर अवसर के अनुकूल ढेर सारे रेडीमेड बहाने तैयार होते हैं। तारीफ की बात तो यह है कि ऐसा करते हुए इन्हें दूसरों की असुविधा का जरा भी ध्यान नहीं रहता। हमारी घरेलू सहायिकाएं इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। बिना बताए अचानक दो-चार दिनों के लिए गायब हो जाना इनकी आदत में शुमार होता है। लौटने पर मालकिन के साथ उनका वार्तालाप कुछ इस तरह होता है- अचानक कहां गायब हो गई थी? तेज बुख्ाार था, फोन कर देती...बैलेंस ख्ात्म हो गया था...मिस्ड कॉल दे देती...मोबाइल की बैटरी डाउन हो गई थी...चार्ज कर लेती...हमारे घर में बिजली ख्ाराब हो गई थी...पडोस के घर से मोबाइल चार्ज कर लेती...उनके घर पर ताला लगा है....किसी सहेली या अपने पति से बीमारी की ख्ाबर भिजवा देती...उसने आपका घर नहीं देखा और पति के पैर में मोच आ गई है...इसके बाद मालकिन का धैर्य जवाब दे देता है और गुस्से में अपना सिर पीट लेती है क्योंकि उसके पास इसके सिवा कोई दूसरा चारा भी तो नहीं होता।

नौसिखिए

ऐसे बहानेबाजों के पास कॉमन सेंस का नितांत अभाव होता है। इस मामले में ये थोडे कच्चे खिलाडी होते हैं। ऐसे लोग बहाने बनाने से पहले जरा भी नहीं सोचते। बीमारी का बहाना बनाकर ऑफिस से छुट्टी लेते हैं और अपनी वीकेेंड आउटिंग की तसवीरें सोशल साइट्स पर अपडेट करते वक्त उन्हें इस बात का जरा भी ध्यान नहीं रहता कि फ्रेंड लिस्ट में उनके कुछ कलीग्स भी शामिल हैं।

कल-कल करने वाले

ऐसे लोग अपने हर काम को कल पर टालते हैं। कल इनकी डिक्शनरी का सबसे प्रिय शब्द है और ये अपने हर काम के लिए बडे आत्मविश्वास के साथ कहते हैं, 'कल हो जाएगा। उधार लेकर न लौटने वाले और रिश्वत प्रेमी सरकारी कर्मचारी इसी श्रेणी में शामिल होते हैं। वास्तव में ये लोग परम आलसी होते हैं। इनकी ख्ाासियत यह है कि येकेवल दूसरों के सामने ही नहीं बल्कि ख्ाुद से भी बहाने बनाते हैं। मसलन कुछ लोग नए साल के पहले दिन यह संकल्प लेते हैं कि कल से रोजाना मॉर्निंग वॉक पर जाऊंगा, पर साल ख्ात्म हो जाने के बाद भी इनका चिर प्रतीक्षित कल कभी नहीं आता।

ब्लेम गेम के चैंपियन

ऐसे लोग विचित्र िकस्म के झूठे और मनगढंंत तर्कों के जरिये अपनी हर जिम्मेदारी से बचने की कोशिश में सारा दोष दूसरों के सिर पर डाल देते हैं। अगर कभी असावधानीवश इनके हाथों से कोई सामान टूट कर गिर जाता है तो ये गुस्से में चिल्ला पडते हैं, 'यह सामान यहां किसने रखा था? अगर यही गलती किसी दूसरे व्यक्ति से होती है तो ब्लेम गेम के ये चतुर खिलाडी बिना देर किए कह उठते हैं, 'तुम हो ही बेहद लापरवाह, कोई भी काम ढंग से नहीं कर सकते। इसी तरह कॉलेज में क्लास बंक करने वाले छात्रों को जब परीक्षा में कम अंक मिलते हैं तो इसके लिए वे टीचर्स को दोषी ठहराते हैं। कुल मिलाकर इनकी हर परेशानी के लिए दूसरे लोग ही जिम्मेदार होते हैं।

अति उत्सुक

दिलफेंक आशिकों से लेकर दूसरों के घर में ताक-झांक करने वाले पडोसी तक सब इस श्रेणी में शुमार होते हैं। ये दूसरों के निजी जीवन के बारे में सब कुछ जान लेने के लिए अति उत्सुक दिखाई देते हैं। ऐसे लोग दूसरों के घरों में जबरन घुसने के बहाने ढूंढ रहे होते हैं। मसलन अगर पडोस के घर में कोई मेहमान आता है तो सामने वाली शर्मा आंटी उसके बारे में सब कुछ जान लेने के लिए इतनी उत्सुक होती हैं कि किसी न किसी जरूरी काम के बहाने अपने पडोसी के घर का कॉलबेल बजाना नहीं भूलतीं।

चटोरे बहानेबाज

बहानेबाजों की यह प्रजाति आसानी से हर जगह देखी जा सकती है। ये लोगों से अकसर यही कहते हैं कि मैं चाट-पकौडी और मिठाइयां भी जमकर खाता हूं क्योंकि ये सारी चीजें सेहत के लिए जरूरी हैं। ऐसे बहानेबाज डॉक्टर की हिदायत में से 'संतुलित मात्रा में इन तीन बेहद जरूरी शब्दों को इग्नोर कर देते हैं। ये खाने के मामले में थोडे शर्मीले होते हैं और ख्ाुलकर अपनी इच्छाओं का इजहार नहीं करते। मसलन कुछ होममेकर्स अकसर यही जुमला दोहराती हैं, 'यह डिश मेरे पति और बच्चों को बहुत पसंद है। इसीलिए मैं अकसर बनाती हूं।

आलेख : विनीता, इलस्ट्रेशन : श्याम जगोता

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