थैंक यू समय देने के लिए

भागती-दौड़ती लाइफ में हम परिवार के साथ समय बिताना भूल गए हैं।परिवार को क्वॉलिटी टाइम देना बहुत जरूरी है।क्योंकि जिंदगी में कितना भी आगे बढ़ जाएं,परिवार साथ रहेगा- तभी खुश रह सकेंगे

By Edited By: Publish:Mon, 27 Jun 2016 07:41 AM (IST) Updated:Mon, 27 Jun 2016 07:41 AM (IST)
थैंक यू समय देने के लिए
आज के तेज रफ्तार समय में घर और ऑफिस के बीच तालमेल बैठाना बहुत जरूरी है। इसमें आप पीछे रह गए तो चाहे करियर में कितनी भी तरक्की कर लें,जिंदगी खुशहाल नहीं हो सकेगी। आपकी जीवनशैली कितनी भी व्यस्त क्यों न हो, परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए समय निकालना जरूरी है क्योंकि ये ही वे लोग हैं, जो आडे वक्त में आपको संभालते हैं। करियर की रेस में इतना भी आगे न निकल जाएं कि आपके चाहने वाले ही पीछे छूट जाएं। अपनों व रिश्तेदारों से कोफ्त छुट्टी के दिन कोई रिश्तेदार घर आने के लिए कहे या कोई परिचित लंबे समय बाद एकाएक आकर चौंका दे तो क्या आपका मूड खराब हो जाता है? कहीं आपको ऐसा तो नहीं लगता कि छुट्टी का दिन भी बेकार हो गया? बच्चे ने क्रिकेट खेलने की जिद की और आपको लगता है कि अभी और भी कई जरूरी काम हैं। पत्नी ने शॉपिंग पर जाने की इच्छा जताई और आपको लगता है कि थोडा सो लें। अगर आपके साथ भी लगातार ऐसा हो रहा है तो समझ लें कि आप असामाजिक बनते जा रहे हैं। गैजेट्स में डूबी दुनिया गैजेट्स ने भले ही हमारे काम आसान बना दिए हों और हमें दुनिया से जोडा हो लेकिन इन्होंने सोशल लाइफ को खत्म करने में भी अहम रोल निभाया है। अब लोग फेसबुक,ट्विटर या दूसरे मेसेजिंग एप्स पर बात करके सोच लेते हैं कि सामने वाले से मिल लिए लेकिन यह तो आभासी दुनिया का संपर्क है। किसी के आमने-सामने मिलने, हाथ मिलाने, गले मिलने या साथ ठहाके लगाने को चैटिंग की स्माइली से रिप्लेस नहीं किया जा सकता है। स्मार्टफोन में डूबे रहना, लैपटॉप में मूवी देखते रहना और स्क्रीन के आगे घंटों बैठे रहना सामाजिक जीवन से तो काटता ही है, अपने परिवार से भी दूर कर देता है। कामकाजी लोगों की परेशानी कामकाजी परिवारों में ऐसा देखने को मिलता है कि पति-पत्नी पूरे हफ्ते काम करते हैं और वीकेंड पर थकान मिटाते हैं। जिन घरों में छोटे बच्चे हैं, वे कभी-कभार छुट्टी के दिन बच्चों को घुमा लेते हैं। ऐसे कपल्स को लगता है कि वे पूरे हफ्ते तो घर से बाहर ही रहते हैं, इसलिए छुट्टी के दिन घर पर ही रहें। वे छुट्टी का दिन मिलने-जुलने में बर्बाद नहीं करना चाहते। इससे न सिर्फ कपल्स समाज से कटते जाते हैं, उनके बच्चे भी धीरे-धीरे एकाकी जीवन के आदी होने लगते हैं। कॉरपोरेट कल्चर का असर दरअसल यह दिक्कत मौजूदा दौर में हर देश और समाज की है। कॉरपोरेट कल्चर के बढऩे से सामाजिक व्यवहार भी बदलने लगा है। 10 से 6 की नौकरी के बाद लोगों के पास इतना समय नहीं होता कि वे किसी से मिलें-जुलें। वे एक बंद कमरे से निकलते हैं और दूसरे बंद कमरे में घुस जाते हैं। ऑफिस में कुछ कलीग्स से मित्रता होती है लेकिन नौकरी बदलते ही यह भी सीमित हो जाती है। महानगरों में ज्य़ादातर परिवारों के सदस्य घर से कई किलोमीटर दूर नौकरी करने जाते हैं। आने-जाने में ही उनका काफी वक्त लग जाता है। हफ्ते भर की थकान के बाद रविवार को वे कम ही निकलना पसंद करते हैं। अगर निकले भी तो मॉल, रेस्तरां या मल्टीप्लेक्सेज में चले जाते हैं। 24X7 वर्क कल्चर आने से तो काम अलग-अलग शिफ्ट्स में होने लगा है। ऐसे में लोगों का सामाजिक दायरा भी सीमित होता जा रहा है। आर्थिक आजादी आज युवा पीढी अपने पैरों पर खडी है। युवाओं के आत्मनिर्भर होने की उम्र भी कम होती जा रही है। कॉलेज से निकलते ही वे इंटर्नशिप और रोजगार की भागदौड में लग जाते हैं। कम उम्र में ज्य़ादा पर्चेजिंग पावर आने से वे अपने डिसीजन भी खुद ले रहे हैं। आज के युवाओं को ज्यादा टोकाटाकी भी पसंद नहीं है। परिवार में मुखिया वाली हैसियत अब किसी की नहीं रह गई है। आर्थिक स्वतंत्रता से व्यवहार में भी स्वतंत्रता देखने को मिल रही है। वे घर के बुजुर्गों से बराबरी का व्यवहार चाहते हैं। पहले स्कूल,फिर कॉलेज फ्रेंड्स और फिर कलीग्स...उनका ज्य़ादातर समय घर से बाहर ही बीतता है। आज युवाओं के पास इतने कॉन्टैक्ट्स हैं कि परिवार के लिए समय कम बच रहा है। बढती आय, घटते रिश्ते आज की पीढी के पास पैसा है, सुविधाजनक जिंदगी है। अच्छे सैलरी पैकेज पर वे काम करते हैं और बार-बार नौकरी भी बदलते हैं। वे लगातार बेहतर ऑफर्स की आपाधापी में फंसे रहते हैं। कम उम्र में उनका बैंक बैलेंस तो बढ रहा है लेकिन घर व दोस्तों से उनकी दूरी बढती जा रही है। पद और पैसे के इस खेल को समझने में लंबा वक्त गुजर जाता है और तब तक देर हो चुकी होती है। कई बार पैसा तो होता है मगर उसे खर्च करने के लिए समय नहीं होता,न कोई अपना होता है, जिस पर उसे खर्च किया जाए। अपराध-बोध को कम करने के लिए समय को पैसे से बैलेंस करने की कोशिश की जाती है लेकिन इससे समय की भरपाई नहीं की जा सकती। छोटी-छोटी जरूरी बातें श्री बालाजी ऐक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट के मनोवैज्ञानिक डॉ.अनीस बावेजा के मुताबिक, छोटी-छोटी मगर अहम बातों को ध्यान में रखें तो अपने समय को ऐसे बांट सकते हैं, जिसमें सभी लोगों को समय दिया जा सके। पैसा, नौकरी, करियर, ग्रोथ जरूरी है, पर परिवार या रिश्तों की कीमत पर नहीं। जोश में आकर लोग घंटों काम तो करते हैं लेकिन जब सुस्ताने का वक्त आता है या पीछे मुडकर देखते हैं तो लगता है कि दौड में इतना आगे निकल गए कि रिश्तों में पिछड गए। ऐसा न हो, इसके लिए जरूरी है- हर हफ्ते फैमिली, फ्रेंड्स या रिश्तेदारों से मिलने की कोशिश करें। इससे आप सबको समय भी दे देंगे और कोई समय न देने की शिकायत भी नहीं करेगा। वीकेंड पर बिजी हों, तो भी फैमिली के संग अर्ली मॉर्निंग जॉगिंग-कम-पिकनिक पर जा सकते हैं। इससे हेल्थ तो अच्छी रहेगी ही, परिवार का साथ भी मिल सकेगा। कोशिश करें कि घर को ऑफिस न बनाएं। फाइल्स का बोझ लेकर न आएं। प्राथमिकताएं तय करें कि घर को कितना समय देना है और ऑफिस को कितना। यदि पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं तो घर और बाहर के काम बांट लें। इससे घरेलू कामों को लेकर परिवार में तनाव नहीं होगा। करियर को लेकर घर में न बहस करें। इससे बेवजह रिश्तों में खटास आ सकती है। कई काम मेट्रो, बस में बैठे-बैठे भी निपटाए जा सकते हैं। प्रेजेंटेशन को फाइनल टच देने, मेल करने जैसे काम सफर में निपटाए जा सकते हैं। फोन और लैपटॉप को छुट्टी के दिन छुट्टी मनाने दें क्योंकि एक बार यह खुल गया तो छुट्टी का दिन खत्म हो जाएगा। जरूरी डेट्स के लिए रिमांइडर सेट करें। इससे समय प्रबंधन कर सकेंगे। [गीतांजलि]
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