क्या रिश्ते हैसियत से प्रभावित होते हैं?
सुख के सब साथी,दुख में न कोई। रिश्तों से जुड़ी यह पुरानी कहावत क्या आज के संदर्भ में भी सही साबित होती है?इस मुद्दे पर क्या सोचती हैं,दोनों पीढिय़ां,आइए जानें सखी के साथ।
रिश्तों को पैसे से न जोडें हमारी कृषि प्रधान सामाजिक व्यवस्था में पहले ज्य़ादातर संयुक्त परिवार होते थे। तब रिश्तों के बीच पैसे नहीं आते थे पर समय के साथ लोगों की सोच बदलने लगी और एकल परिवारों में रहने वाले लोग अपने हितों के बारे में ज्य़ादा सोचने लगे। आज स्थिति यह है कि मामूली आय वाले लोगों के संपन्न रिश्तेदार उनसे संबंध नहीं रखना चाहते। यहां तक कि पैसों की वजह से सगे भाई-बहनों के रिश्ते में भी दूरियां बढ जाती हैं। माता-पिता भी हैसियत के आधार पर अपनी ही संतानों के बीच भेदभाव बरतने लगते हैं। आर्थिक संपन्नता हासिल करने के बाद लोग अपने करीबी दोस्तों को भी भूल जाते हैं। ऐसे में बुजुर्गों की जिम्मेदारी बनती है कि वे परिवार के सदस्यों को यह समझाएं कि अपनों का प्यार अनमोल है, जिसे पैसे से नहीं खरीदा जा सकता। इसलिए वे हर रिश्ते को पैसे से न जोडें। विमला सिंह, नागपुर हैसियत की बढती अहमियत इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आरामदायक जिंदगी के लिए व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होनी चाहिए। वैसे भी आज के जमाने में रिश्तों के बीच भावनाओं के बजाय पैसे और रुतबे को ज्य़ादा अहमियत दी जाती है। चाहे पारिवारिक संबंध हों या दोस्ती, हर रिश्ते पर पैसा हावी है। अब लोग इतने व्यावहारिक हो गए हैं कि प्यार के मामले में भी पैसा एक अहम मुद्दा बन गया है। अगर हम दोस्ती की बात करें तो लोग उन्हीं दोस्तों को प्राथमिकता देते हैं, जिनके पास पैसा और शोहरत हो। लडके और लडकियों के बीच दोस्ती तभी तक कायम रहती है, जब तक कि दोनों के बीच गिफ्ट का लेन-देन चलता रहे। मेरा मानना है कि दिखावे पर आधारित ऐसे रिश्ते खोखले होते हैं। अगर दिल में सच्चा प्यार हो तो हमारा हर रिश्ता अटूट होगा। शालिनी श्रीवास्तव, इलाहाबाद विशेषज्ञ की राय सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि अगर रिश्तों के बीच कोई तीसरी बात आ रही है तो उसकी वजह क्या है ? यहां संबंधों के मूल आधार को समझना जरूरी है। हमारे किसी भी रिश्ते में पैसों के बजाय भावनाओं की ज्य़ादा अहमियत होती है। संबंधों की मजबूती के लिए दो लोगों के बीच लगाव होना बहुत जरूरी है। चाहे वह बच्चों के साथ माता-पिता का संबंध हो या फिर पति-पत्नी का आपसी रिश्ता। पैसा, जीवनशैली और भौतिक सुख्ख-सुविधाओं की अहमियत भावनाओं से ज्य़ादा नहीं होनी चाहिए। आजकल बच्चे मोबाइल और लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में इतने व्यस्त रहते हैं कि वे माता पिता से दूर होते जा रहे हैं। बच्चों के मन में भी ऐसी सोच विकसित होती जा रही है कि जो रिश्तेदार महंगे उपहार देता है वही मुझे ज्य़ादा प्यार करता है। आज लोगों के पास एक-दूसरे से बात करने की भी फुर्सत नहीं होती। जहां तक पाठिकाओं के विचारों का सवाल है तो बुजुर्ग पाठिका विमला सिंह का कहना बिलकुल सही है कि हमें रिश्तों को पैसे से नहीं जोडऩा चाहिए। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि एकल परिवार में रहने वाला हर इंसान स्वार्थी ही हो। इंसान का स्वार्थी या उदार होना काफी हद तक उसके व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। इसी तरह युवा पाठिका शालिनी के विचारों से भी मैं सहमत हूं कि पैसे या उपहार के आधार पर टिकने वाले रिश्ते खोखले और बनावटी ही होते हैं। गीतिका कपूर, मनोवैज्ञानिक सलाहकार विचार आमंत्रित हैं क्या युवा पीढी आजादी के सही मायने समझती है? संक्षिप्त परिचय, पासपोर्ट साइज की फोटो और फोन नंबर सहित पूरे पते के साथ इस विषय पर आप अपने विचार हमें कम से कम 300 शब्दों में लिख भेजे। लिफाफे पर नीचे दिया गया कूपन काटकर चिपकाना न भूलें। -संपादक कल और आज जागरण सखी, डी-210, सेक्टर-63, गौतमबुद्ध नगर, नोएडा, उप्र-201301