इजहार के बिना हो गया इकरार

हरियाणा की मिट्टी स्पोट्र्स प्रतिभाओं के लिए जानी जाती है, लेकिन यहां से कई कलाकार भी निकले हैं। जयदीप अहलावत उनमें से एक हैं। प्रियदर्शन की फिल्म 'आक्रोश', 'खट्टा मीठा' से लेकर विपुल शाह की 'कमांडो', कमल हासन की 'विश्वरूपम' और हाल ही में जीशान कादरी की 'मेरठिया गैंगस्टर' में

By Edited By: Publish:Fri, 23 Oct 2015 02:59 PM (IST) Updated:Fri, 23 Oct 2015 02:59 PM (IST)
इजहार के बिना हो गया इकरार

हरियाणा की मिट्टी स्पोट्र्स प्रतिभाओं के लिए जानी जाती है, लेकिन यहां से कई कलाकार भी निकले हैं। जयदीप अहलावत उनमें से एक हैं। प्रियदर्शन की फिल्म 'आक्रोश', 'खट्टा मीठा' से लेकर विपुल शाह की 'कमांडो', कमल हासन की 'विश्वरूपम' और हाल ही में जीशान कादरी की 'मेरठिया गैंगस्टर' में उन्होंने भूमिकाएं निभाई हैं। उनकी हमसफर हैं ज्योति हूडा। छह साल के दांपत्य जीवन में धैर्य, समझदारी और परिपक्वता की अहमियत सीखी है इन दोनों ने। जानते हैं इनके बारे में।

प्रतिष्ठित संस्थान एफटीआइआइ से पढे जयदीप अहलावत कई फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभा चुके हैं। ऐक्टर राजकुमार राव के बैचमेट रहे जयदीप अभी शाहरुख्ा ख्ाान के साथ फिल्म 'रईस कर रहे हैं। उनकी हमसफर हैं ज्योति। रिश्ते में ब्रीदिंग स्पेस को महत्व देने वाले इस दंपती की शादी को छह साल हुए हैं।

लंबे सफर की दास्तान

जयदीप अहलावत : हमारी ख्ाुशहाल जिंदगी हमारे माता-पिता और रिश्तेदारों की बदौलत है। हमने अपने पेरेंट्स की मजबूत बॉण्डिंग देखी है। अपने करियर के लंबे सफर में मिलने वाले अनुभवों ने भी हमें गंभीर और परिपक्व बनाया है। मध्यवर्गीय परिवार का होने और ग्लैमर की दुनिया में रमने के बावजूद हम अपनी जडों से जुडे हैं। हम अभी भी वैसे ही हैं, जैसे शादी से पहले थे। मैं रोहतक से 20 किलोमीटर दूर खडकरा गांव का रहने वाला हंू। पिता अवकाश प्राप्त शिक्षक हैं। वे गांव में ही रहते हैं। बचपन में सैन्य सेवा में जाना चाहता था। ग्रेजुएशन के दौरान तीन बार सीडीएस का एग्जैम भी दिया, मगर चयन नहीं हुआ, जिससे मैं टूट गया। इससे मेरा छोटा भाई दुखी हो गया और उसने इंटर के बाद एनडीए एग्जैम क्रैक करने के बावजूद आर्मी जॉइन नहीं की। वह आज टीचिंग लाइन में है। मैं काफी बेचैन था। साहित्य का शौक रखता था। इसी बीच मेरी मुलाकात सुनील चिटकारा से हुई, जो भिवानी से हैं। उनका नाटक देख कर लगा कि मेरे भीतर की बेचैनी शायद थिएटर से कम हो सके। उनके साथ कई नाटक किए। एक समय हालत यह थी कि मैं 80-80 किलोमीटर दूर के इलाकों में जाकर नाटक करता था। घरवालों ने पूछना शुरू किया कि यह सब कब तक चलेगा और इसके बाद क्या करोगे? सुनील सर ने ही मुझे गाइड किया। उन्होंने मुझे एफटीआइआइ पुणे जाने या मास कम्युनिकेशन करने की सलाह दी। मैंने दोनों फॉर्म भर दिए। संयोग से दोनों जगह चयन हो गया। पुणे जाने से पहले तीन महीने मैंने मास कॉम की पढाई भी की।

ज्योति : मेरी लाइफ जय से थोडा अलग रही। मैं जमींदार फेमिली से हूं और संयुक्त परिवार में पली-बढी हूं। हमारा पुश्तैनी गांव कलोई है, वहां से दादा जी सोनीपत शिफ्ट कर गए थे। उनकी मौत के बाद पिता ने परिवार संभाला। दादा जी के साथ काफी वक्त गुजारा मैंने। वह वल्र्ड सिनेमा के फैन थे। उनके साथ रहते हुए फिल्मों का शौक शुरू हुआ। पापा और चाचा को शौक था कि बच्चे अंग्रेजी भाषा में पारंगत हों तो घर में ख्ाूब अंग्रेजी फिल्में चला करतीं। मेरे ख्ाानदान में पढऩे-लिखने के बावजूद सभी खेती-बाडी से जुडे थे। मेरे परदादा डॉक्टर रामदास सिंह हूडा हरित क्रांति के दौर के थे। मेरे पिता और चाचा ने साइंस ग्रेजुएट होने के बावजूद खेती को चुना। जयदीप मास कम्युनिकेशन में मेरे जूनियर थे। उनसे वहीं मुलाकात हुई, लेकिन जय तीन महीने बाद ही एफटीआइआइ चले गए। मैंने कोर्स पूरा करके कुछ समय दिल्ली के एक प्रोडक्शन हाउस में काम किया, फिर एफटीआइआइ का एग्जैम दिया और पास हो गई।

इजहारे-हाल न कर सके

जयदीप : हमारी शादी में मेरे परदादा ससुर की भूमिका अहम है। उन्हें लगता था कि ऐसा पढा-लिखा, ऊंचा खानदान भला कहां मिलेगा। दिल्ली में मैं ज्योति का जूनियर था और पुणे में वह मेरी जूनियर बनीं। हमारे दोस्त कॉमन थे, शौक और रुचियां भी कॉमन थीं। काफी वक्त साथ गुजरता था। हम दोनों पारिवारिक मूल्यों में यकीन रखते हैं। कोर्स के दौरान प्रेम जैसा हमारे बीच कुछ नहीं था। ऐसा भी नहीं हुआ कि हम मिले हों और दिल में घंटियां बजने लगी हों। हरियाणा वालों को वैसे भी इजहार करना नहीं आता है। जो भी समझना है, ख्ाुद समझ लो। कोर्स ख्ात्म हुआ तो मुझे मुंबई आना पडा। तब लगा कि ज्योति ही वह लडकी है, जिसके साथ जीवन जीना चाहता हूं। मैं मुंबई-पुणे अप-डाउन करता रहा। उम्र हो रही थी तो घर वाले भी चिंतित रहते थे कि कहीं लडका ताउम्र कुंवारा न रह जाए, क्योंकि शादी के लिए जितने रिश्ते आते थे, मैं मना कर देता था।

ज्योति : इनके घर में शायद इनकी दीदी या जीजाजी का बर्थडे था। तब फोन पर इन्होंने मेरी बात जीजाजी से करवा दी। उन्होंने ही तय किया कि ज्योति को इस घर में लाना है। इनके घर में सब तैयार हो गए।

करियर और शादी के बीच

जयदीप : पिताजी ने फरमान जारी कर दिया कि मुंबई शिफ्ट होना है तो पहले शादी करो। मैं परेशान था, क्योंकि काम कुछ ख्ाास था नहीं और शादी की जिम्मेदारी आ गई थी। ख्ौर, शादी की बात चल ही रही थी और मुझे फिल्म 'आक्रोश मिली। फिर मेरी सगाई कर दी गई। इसकी शूटिंग ख्ात्म होते ही प्रियदर्शन सर ने कहा कि वह एक फिल्म अक्षय कुमार के साथ कर रहे हैं, जिसमें मुझे विलेन की भूमिका निभानी है। महीने भर में दो बडी फिल्में मिल गईं। घरवालों को लगा कि चलो कुछ तो अच्छा हो रहा है लाइफ में। फिर फिल्म 'खट्टा-मीठा मिली। शूट शुरू होने वाला था और 30 अक्टूबर 2009 को शादी की तारीख्ा पक्की कर दी गई। मैं दस दिन पहले घर आया। अचानक फोन आया कि शूटिंग का पहला शेड्यूल 26 अक्टूबर से तीन नवंबर तक रहेगा। मैं हिल गया। अब क्या होगा? पता चला कि अक्षय सर की डेट इसी समय मिली है। अपने घरवालों और ज्योति के पिता से बात की। मैं तुरंत शूट पर आया और शादी से दो दिन पहले घर लौटा। शादी करके वापस सतारा आया। ख्ौर, हमारी अंडरस्टैंडिंग कमाल की है। ज्योति बिलकुल डिमांडिंग नहीं हैं। मेरे शेड्यूल को समझती हैं। मिनट-मिनट पर कॉल करके नहीं पूछतीं कि मैं कहां हूं? कितनी देर लगेगी घर लौटने में? कई बार तो मैं परेशान हो जाता हूं कि यार तुम्हें मेरा ख्ायाल है कि नहीं? इनका जवाब होता है तुम्हारे अपडेट मिलते रहते हैं फेसबुक से। हां, जब इनके साथ होता हूं तो पूरा वक्त इन्हें देता हूं।

आजादी और भरोसा

ज्योति : हम एक-दूसरे के ईमानदार आलोचक हैं, इसलिए जमकर एक-दूसरे की क्लास भी लेते हैं। हम दूसरे की ग्ालतियों को ढकने वाले लोग नहीं हैं। पर्सनल स्पेस को महत्व देते हैं। जब मुझे एकांत चाहिए, ये मुझे नहीं टोकते। जब इन्हें चाहिए, मैं इन्हें नहीं छेडती। हम टिपिकल पति-पत्नी टाइप नहीं हैं कि पति देर रात आने वाला हो और पत्नी इंतजार में जागती रहे। पहले करती थी, पर मेरे ससुर ने मुझे डांटा। तबसे इनके पास घर की एक चाभी होती है। देर होती है तो खाना फ्रिज में रखा होता है। ये बिना आवाज किए घर में घुसते हैं, किचन में खाना गर्म करते हैं और खाकर सो जाते हैं।

जयदीप : पुरानी पीढी में लव मैरिज कम होती थी, फिर भी शादियां टिकती थीं। आज जो शादियां टूटती हैं, उसकी वजह डिमांडिंग होना है। हम एक-दूसरे से ज्य़ादा अपेक्षाएं नहीं रखते। हम बहुत भौतिकवादी भी नहीं हैं। इनमें हमें ख्ाुशी नहीं मिलती। अनावश्यक रूप से एक-दूसरे के क्षेत्र में दखल भी नहीं देते।

मतभेद और पसंद-नापसंद

ज्योति : कुछ चीजों पर तो मतभेद रहते ही हैं। मिसाल के तौर पर इन्हें तसल्ली से काम करने और घूमने का शौक है, पर मैं थोडे से समय में ज्य़ादा से ज्य़ादा जगहें एक्सप्लोर करना चाहती हूं। मुझे सर्दियों का मौसम बिल्कुल नहीं भाता, जबकि इन्हें पसंद है।

जयदीप : गांव में ठंड पडती है। शुरू में ज्योति वहां जाकर सुस्त पड जाती थीं, जबकि मैं घूमता, मौज-मस्ती करता। ज्योति को देख कर मेरी मां परेशान हो जातीं। मुझसे कहतीं, 'तुम उसे डांटते तो नहीं हो...। तब मुझे समझाना पडता कि सर्दियों में इनका यही हाल हो जाता है। फिर तय किया कि ये गर्मी में घर जाएंगी और मैं सर्दी में।

अमित कर्ण

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