सिया-राम के विवाह का उत्‍सव विवाह पंचमी

भारतीय संस्कृति में सदा से ही सीता-राम के दांपत्य जीवन को आदर्श माना गया है। रामकथा के विभिन्न ग्रंथों के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का विवाह मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की पंचमी को जनकपुर में संपन्न हुआ था।

By Edited By: Publish:Wed, 28 Dec 2016 05:18 PM (IST) Updated:Wed, 28 Dec 2016 05:18 PM (IST)
सिया-राम के विवाह का उत्‍सव विवाह पंचमी
भारतीय संस्कृति में सदा से ही सीता-राम के दांपत्य जीवन को आदर्श माना गया है। रामकथा के विभिन्न ग्रंथों के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का विवाह मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की पंचमी को जनकपुर में संपन्न हुआ था। प्रचलित कथा वाल्मीकि रामायण की यह कथा सर्वविदित है कि महाराज जनक ने एक स्वयंवर का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने शर्त रखी थी कि जो व्यक्ति शिव जी के धनुष को हाथों में उठा कर उसकी प्रत्यंचा (डोरी) चढा देगा, जानकी जी का विवाह उसी व्यक्ति के साथ होगा। शिव धनुष की चर्चा सुनकर महर्षि विश्वामित्र भ श्रीराम-लक्ष्मण के साथ उसे देखने के लिए जनकपुरी पहुंचे। संयोगवश सीताजी भी अपनी सखियों के साथ पुष्प वाटिका में पूजा के लिए फूल चुनने गई थीं, जहां उन्होंने पहली बार राम जी को देखा और दोनों एक-दूसरे की मनोहारी छवि पर मुग्ध हो गए। फिर सीताजी ने माता गौरा का पूजन करते हुए श्रीराम को पति के रूप में पाने की कामना की। जगदंबा ने उन्हें इच्छित वर पाने का आशीष दिया। स्वयंवर में गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पाकर श्रीराम जी ने धनुष की प्रत्यंचा चढाने के साथ उसे तोड भी दिया। फिर मार्गशीर्ष पंचमी को भगवान श्रीराम के साथ सीताजी का विवाह संपन्न हुआ। सीताजी रामजी की शक्ति हैं, धनुष भंग करने के बाद रामचंद्रजी को जब श्री (लक्ष्मी) रूपी सीता ने जयमाला पहना दी, तब वे श्रीराम कहलाए। विवाह पंचमी का उत्सव इस दिन भक्तगण भगवान के बारात की भव्य झांकी प्रस्तुत करते हैं। श्रीराम और सीता जी की मूर्तियों को हाथों में लेकर वे विधिपूर्वक उनके सात फेरे करवाते हैं। जनकपुर और अयोध्या में भगवान के विवाह की लीलाओं का भी मंचन किया जाता है। अयोध्या में सिया-राम के विवाह में वर-वधू रूपी सीता-राम पर अक्षत छिडका जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिस पर चावल के दाने गिर जाएं, उस पर भगवान की विशेष कृपा होती है। कनक भवन की महिमा अयोध्या के कनक- भवन में विराजमान सीता-राम जी की बडी सुंदर और प्राचीन मूर्तियां हैं। कलियुग में उसका जीर्णोद्धार महाराजा विक्रमादित्य द्वारा करवाया गया है। वर्तमान में कनक-भवन ओरछा की रानी वृषभानुकुंवरि जी द्वारा बनवाया गया है, यहां सीता-राम जी की त्रेतायुगीन छोटी मूर्तियां भी हैं। माता कैकयी ने सीताजी को मुंह दिखई में यही भवन उपहार स्वरूप भेंट किया था, जिसके कारण यह कनक-भवन सिया राम का अंत:पुर बन गया। ऐसी मान्यता है कि इसके दर्शन से व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। कुल मिलाकर मार्गशीर्ष पंचमी की पावन तिथि अनंत पुण्य फल प्रदान करने वाली है क्योंकि इसी दिन वृंदावन में श्रीबांके बिहारी जी का प्राकट्य उत्सव भी बडी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। विवाह में अग्नि की परिक्रमा क्यों जाती हैं? सनातन संस्कृति में अग्नि को जीवन का आधार माना जाता है, यह पृथ्वी पर सूर्य का प्रतिनिधि है। सूर्य जगत की आत्मा और भगवान विष्णु के साक्षात स्वरूप हैं। अग्नि को स्थायित्व का प्रतीक माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि अग्नि मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट कर देता है। इसीलिए विवाह के अवसर पर वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर उसकी सात बार परिक्रमा करते हुए सात जन्मों तक एक-दूसरे का साथ निभाने की प्रतिज्ञा करते हैं। संध्या टंडन
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