सखी इनबॉक्स

मैं बी.टेक. सेकंड ईयर की छात्रा हूं। पढ़ाई की व्यस्तता के बावजूद समय निकालकर नियमित रूप से सखी पढ़ती हूं। इसकी सभी रचनाएं मेरे व्यक्तित्व के हर पहलू को संवारने में मददगार साबित होती हैं।

By Edited By: Publish:Mon, 03 Nov 2014 11:30 AM (IST) Updated:Mon, 03 Nov 2014 11:30 AM (IST)
सखी इनबॉक्स

मैं बी.टेक. सेकंड ईयर की छात्रा हूं। पढाई की व्यस्तता के बावजूद समय निकालकर नियमित रूप से सखी पढती हूं। इसकी सभी रचनाएं मेरे व्यक्तित्व के हर पहलू को संवारने में मददगार साबित होती हैं। पत्रिका का सितंबर अंक लाजवाब था। वैसे तो इसकी सभी रचनाएं पठनीय थी, पर जायका के अंतर्गत दी गई फलाहारी रेसिपीज नवरात्र के दौरान बेहद उपयोगी साबित हुई। आशा है कि भविष्य में भी सखी इसी तरह हमारा मार्गदर्शन करती रहेगी।

आशना साहनी बरेली

आकर्षक कवर से सुसज्जित सखी का सितंबर अंक मुझे बेहद पसंद आया। कवर स्टोरी ये कहां आ गए.. में करियर के चुनाव को लेकर भ्रमित युवा पीढी की समस्याओं और उनके समाधान का बडा ही सटीक चित्रण किया गया है। लेख वर्कआउट के लिए सही आउटफिट्स पढकर एक्सरसाइज से जुडे आउटफिट्स के बारे में बहुत सटीक जानकारी मिली। सखी अभियान ने बेटियों के प्रति भेदभाव पर सोचने को मजबूर कर दिया।

साक्षी गर्ग, जयपुर

सखी का सितंबर अंक देखकर दिल खुश हो गया। लेख बस अब और नहीं पढने के बाद मैंने पेरेंटिंग के तरीके में बदलाव लाने का निश्चय किया है। 30 मिनट में डीक्लटर करें फ्रिज पढने के बाद मेरे लिए अपने फ्रिज को व्यवस्थित करना बहुत आसान हो गया। कहानी मां दिल को छू गई। सच, मां का सारा जीवन बच्चों के लिए होता है, लेकिन बच्चों की जिंदगी जैसे-जैसे आगे बढती है, मां पीछे छूटती चली जाती है। आस्था पढकर देवी के नौ रूपों और मार्कण्डेय पुराण के बारे में बहुत अच्छी बातें जानने को मिलीं।

प्रेरणा व्यास, इंदौर

सखी के सितंबर अंक की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। कवर स्टोरी ये कहां आ गए.. में एक ऐसे मुद्दे को उठाया गया है, जिस पर सभी को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। मैं हूं मेरी पहचान के अंतर्गत महिला बैंक की प्रबंधक उषा अनंतसुब्रह्मण्यन का इंटरव्यू पढकर अच्छा लगा कि अब स्त्रियां भी पुरुष वर्चस्व वाले क्षेत्र में अपनी कामयाबी का परचम लहरा रही हैं।

नम्रता पांडे, वाराणसी

सखी के सितंबर अंक में प्रकाशित सभी रचनाएं मेरे व्यक्तित्व को संवारने में मददगार साबित हुई। लेख दिखें हमेशा जवां-जवां में एंटी एजिंग डाइट के बारे में बहुत उपयोगी जानकारियां दी गई थीं।

लेख हर उम्र में छलके आंखों से खूबसूरती में आई मेकअप के बारे में बहुत अच्छी जानकारियां दी गई थीं। फैशन जिज्ञासा पढकर कई नई बातें जानने को मिलीं।

रश्मि रावत, देहरादून

मैं सखी की नियमित पाठिका हूं। मैं इसके सभी अंकों को सहेज कर रखती हूं। हमेशा की तरह पत्रिका का सितंबर अंक भी बेहतरीन जानकारियों से भरपूर था। लेख समझदारी से उठाएं फायदा पढकर इक्विटी लिंक्ड स्कीम्स के बारे में जरूरी बातें जानने को मिलीं। पिक्चर परफेक्ट होम पढने के बाद मैंने अपने घर के इंटीरियर में बदलाव लाने का निश्चय किया है। आशा है कि आने वाले अंकों में भी ऐसी ही उपयोगी रचनाएं पढने को मिलेंगी।

सिमरन सूद, चंडीगढ

मेरी सास सखी की नियमित पाठिका हैं और ससुराल आने के बाद मैं भी इसकी फैन बन गई। पत्रिका का सितंबर अंक साज-सज्जा और रचनाओं की दृष्टि से बेजोड था। हम लोग शाकाहारी हैं। अब तक हमें यह गलतफहमी थी कि हमारा खानपान पौष्टिक नहीं है। ऐसे में लेख शाकाहार से बनाएं सेहत ने हमारा यह भ्रम दूर कर दिया। रंग-अंतरंग में बेहद संवेदनशील मुद्दे को बडी शालीनता से उठाया गया है। पत्रिका के इतने अच्छे अंक के लिए बधाई स्वीकारें।

भावना पाठक, बडौदा

हमारे घर में सखी नियमित रूप से आती है। अपनी मम्मी के साथ अब मैं भी इसकी पाठिका बन गई हूं। पत्रिका साथ सम्मिलित दिल्ली डिजायर में हम युवा पाठकों के लिए ढेर सारी रोचक और जानकारीपूर्ण रचनाएं होती हैं। पत्रिका के सितंबर अंक में फैशन अपडेट के अंतर्गत ट्राइबल प्रिंट के स्कार्फ मुझे विशेष रूप से पसंद आए। लेख हर उम्र में छलके आंखों से खूबसूरती में आई मेकअप से संबंधित जानकारियां उपयोगी साबित हुई। शॉपिंग तो बनती है.. के जरिये अपने जैसे पाठकों के विचारों से रूबरू होना बेहद अच्छा अनुभव था।

सौम्या सिंघल, दिल्ली

बेहतरीन रचनाओं और आकर्षक साज-सज्जा की वजह से सखी का सितंबर अंक संग्रहणीय बन गया। टीचर्स डे के अवसर पर प्रकाशित आलेख बहुत याद आती है उनकी बेहद रोचक था। सच, हमारे जीवन को संवारने में शिक्षकों का योगदान अतुलनीय है। मैं कमेडियन कपिल शर्मा की बहुत बडी फैन हूं। इसलिए उनका इंटरव्यू मुझे खासतौर पर पसंद आया। खट्टी-मीठी ने हंसने पर मजबूर कर दिया। अन्य स्थायी स्तंभ भी रोचक थे।

राधिका भार्गव, सूरत

मैं सखी की बुजुर्ग पाठिका हूं और यही मेरे अकेलेपन की साथी है। पत्रिका के सितंबर अंक में कवर स्टोरी के अलावा लेख सजगता से संभव है बचाव पढकर ब्रेन स्ट्रोक के बारे में कई नई बातें जानने को मिलीं। घर की थाली के अंतर्गत दी गई खिचडी की रेसिपीज मेरे लिए बहुत उपयोगी साबित हुई। हमेशा की तरह कहानियां भी मर्मस्पर्शी थीं।

ममता अग्रवाल, बीकानेर

मैं सखी की नियमित पाठिका हूं। पत्रिका का अगस्त अंक शरद पूर्णिमा के चांद की भांति अपनी रोशनी बिखेरता हुआ आया। सही मायने में यह संपूर्ण पत्रिका है। इसमें मानव जीवन कीकठिन से कठिन समस्याओं के सरल समाधान निहित हैं। यह पत्रिका हर आयु वर्ग के लिए उपयोगी व लाभदायक है। पत्रिका का प्रत्येक अंक एक नवीनता लिए हुए होता है। इसने मुझे कुकिंग में परफेक्ट बना दिया है। मेरे परिवार के सभी सदस्यों को इसकी रेसिपीज बहुत पसंद आती हैं। इसलिए मैं उन्हें अपनी किचन में जरूर आजमाती हूं। पत्रिका के उज्ज्वल भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

दीपा सक्सेना, कानपुर

मैं कोलकाता से इलाहाबाद लौट रही थी रास्ते में पढने के लिए बुक स्टॉल से सखी का सितंबर अंक ख्ारीदा। इसे पढने के बाद मुझे ऐसा लगा कि जैसे मुझे एक सच्ची दोस्त मिल गई है। कवर स्टोरी ये कहां आ गए.. युवाओं के जीवन की सच्चाई उजागर करती है। इसे पढकर यदि कुछ युवा पलायन करने से रुक जाएंगे तो यह पत्रिका के लिए बडी उपलब्धि मानी जाएगी। कहानी मां हृदय के धरातल पर संवेदनाओं के बीज बो गई। कुछ तो लोग कहेंगे, कल और आज और मन से जुडे मुहावरे जैसे स्तंभ मुझे ख्ास तौर पर पसंद आते हैं। इसके अलावा अन्य रचनाएं भी रोचक जानकारियों से भरपूर थीं।

दीपिका जैन, इलाहाबाद

आज की स्त्री का जीवन सौंदर्य, फैशन और कुकिंग तक सीमित नहीं रह गया है। जिंदगी के प्रत्येक पहलू को लेकर वह पूरी तरह जागरूक है। सखी का हर नया अंक इसकी पाठिकाओं को उनकी इसी अहमियत का एहसास दिलाता है। इसकी रचनाएं हमें न केवल नई जानकारियां देती हैं, बल्कि हमारा आत्मविश्वास भी बढाती हैं।

संगीता माथुर, कोटा

सबसे पहले इतनी अच्छी पत्रिका के लिए आप हमारी हार्दिक बधाई स्वीकारें। सखी के हर अंक से हमें कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है। इसकी सबसे बडी खूबी यह है कि इसमें हर आयु वर्ग के पाठकों की रुचि से जुडी जानकारियां होती हैं। इसमें पारंपरिक मूल्यों और आधुनिकता का बहुत सुंदर समन्वय देखने को मिलता है।

रुचि चौरसिया, इटारसी (म.प्र.)

सखी का अगस्त अंक मुझे विशेष रूप से पसंद आया। कवर स्टोरी ..तो कब सेटल हो रही हो में अकेली स्त्रियों के जीवन से जुडी समस्याओं का बेहद सटीक चित्रण किया गया है। लेख सडक पर खेल जिंदगी से में बिलकुल सही कहा गया है कि ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वाले लोगों की वजह से ही सडक दुर्घटनाएं होती हैं। मिसाल पढने के बाद ऐसा लगा कि डॉ. वनिता अरोडा वाकई एक मिसाल हैं। सच, अगर हौसले बुलंद हो तो मंजिल तक पहुंचना आसान हो जाता है।

वीना साधवानी, थाने (महा.)

chat bot
आपका साथी