अनमना सा क्यों है मन

अगर आपका कोई करीबी व्यक्ति हमेशा उदासीन या अनमना सा रहता है तो इसे बिलकुल नज़रअंदाज़ न करें क्योंकि यह सिज़ॉयड पर्सनैलिटी डिसॉर्डर का भी लक्षण हो सकता है।

By Edited By: Publish:Thu, 23 Mar 2017 02:32 PM (IST) Updated:Thu, 23 Mar 2017 02:32 PM (IST)
अनमना सा क्यों है मन

आज खाने में क्या बनाऊं? कुछ भी बना लो... इस ड्रेस में मैं कैसी लग रही हूं? अच्छी... आज का दिन कैसा रहा? कुछ खास नहीं...।

कुछ लोग अकसर ऐसे ही अनमनेपन या उदासीनता के साथ सवालों के जवाब देते हैं। इनके व्यवहार में जरा भी गर्मजोशी नहीं दिखाई देती। सामने बैठा व्यक्ति चाहे कितनी कोशिश कर ले मगर इनका संक्षिप्त और नपा-तुला सा जवाब उस तक यह संदेश पहुंचा देता है कि वह अभी बातें करने का इच्छुक नहीं है। यह उदासीनता या अनमनेपन का भाव किसी परेशानी वाली स्थिति में तो स्वाभाविक है पर जब यह किसी का स्थायी भाव बन जाए तो यह सिजॉयड पर्सनैलिटी डिसॉर्डर नामक गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या का रूप धारण कर सकता है।

कहां हैं समस्या की जडें आमतौर पर ऐसा नजर आता है कि जो लोग बहुत ज्यादा इंट्रोवर्ट होते हैं, वे दूसरों से मिलने-जुलने और बातें करने से कतराते हैं। इससे उनका सामाजिक दायरा बहुत सीमित हो जाता है। ऐसे लोग अपना एक कंफर्ट जोन बना लेते हैं और उससे बाहर नहीं निकलना चाहते। ऐसे माता-पिता के बच्चे भी भविष्य में इसी समस्या से ग्रस्त होते हैं। उनमें लोगों से मिलने-जुलने जैसी आदतें विकसित नहीं हो पातीं। एक स्थिति ऐसी आती है, जब वे करीबी लोगों से भी खुलकर बातें नहीं कर पाते। शांत या शर्मीले बच्चों के समाजीकरण पर शुरू से ध्यान न दिया जाए तो उनमें सोशल स्किल्स का सही ढंग से विकास नहीं हो पाता। जागरूकता के अभाव में अकसर पेरेंट्स समस्या के शुरुआती लक्षणों को नहीं पहचान पाते। उन्हें लगता है कि उनका बच्चा गंभीर स्वभाव का है, इसलिए कम बोलता है। ऐसे बच्चे शुरुआत में अपरिचित लोगों से बातें करने में झिझकते हैं, बाद में पारिवारिक सदस्यों के सामने भी यही स्थिति हो जाती है।

क्या होता है असर ऐसे लोग दूसरों के सामने किसी भी मुद्दे पर स्पष्ट रूप से अपने विचार नहीं रख पाते। वे बातचीत के दौरान दूसरों से आई कॉन्टैक्ट नहीं कर पाते। कुछ भी बोलने से पहले इनके मन में डर बना रहता है कि कहीं उनसे कोई गलती न हो जाए। इसीलिए ये हर सवाल को टालने की कोशिश करते हैं या उसका ऐसा अस्पष्ट जवाब देते हैं कि दूसरों के लिए उसे समझना मुश्किल हो जाता है। कुछ कहा नहीं जा सकता, पता नहीं, देखते हैं, कुछ खास नहीं...जैसे वाक्यों का इस्तेमाल ऐसे लोग अकसर करते हैं। ऐसे लोगों को जीवन के हर मोड पर एडजस्टमेंट में समस्या आती है क्योंकि इनमें दूसरों की बातें ध्यान से सुनने की क्षमता नहीं होती। इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति का पारिवारिक जीवन तनावपूर्ण होता है क्योंकि ये अपने लाइफ पार्टनर और बच्चों से भी खुलकर बातचीत नहीं कर पाते। प्रोफेशनल लाइफ में भी कलीग्स के साथ इनका सही तालमेल नहीं होता। काम से जुडे किसी भी सवाल पर ये सही ढंग से अपना फीडबैक नहीं दे पाते, इसलिए करियर में भी नहीं कामयाबी नहीं मिलती।

कैसे करें बचाव बच्चों के व्यक्तित्व विकास के दौरान ही इस समस्या के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। अगर शुरुआती दौर में ही सजगता बरती जाए तो समस्या का समाधान आसानी से ढूंढा जा सकता है। कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें : बच्चों को शुरू से नए दोस्त बनाने और आउटडोर गेम्स खेलने के लिए प्रेरित करें। खुद भी सामाजिक रूप से सक्रिय रहें। पडोसियों और रिश्तेदारों से मिलने-जुलने का समय निकालें, बच्चे को उनके घर ले जाएं।

उसे स्कूल की ऐक्टिविटीज में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करें। अगर परिवार के किसी सदस्य में ऐसे लक्षण दिखाई दें तो बिना देर किए उसे मनोवैज्ञानिक के पास ले जाएं। काउंलिंग और बिहेवियरल थेरेपी से समस्या दूर हो जाती है।

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