स्कूलों में कितने महफूज हैं बच्चे

पिछले कुछ समय से स्कूल कैंपस या बसों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं। चाइल्ड अब्यूज से लेकर दुर्घटना, मारपीट, हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अभिभावकों और स्कूल प्रबंधन दोनों का सामूहिक प्रयास जरूरी है। इसी विषय पर फोर्टिस हेल्थकेयर में मानसिक स्वास्थ्य और व्यावहारिक विज्ञान विभाग की अध्यक्ष डॉ.कामना छिब्बर का नजरिया।

By Edited By: Publish:Mon, 03 Nov 2014 03:31 PM (IST) Updated:Mon, 03 Nov 2014 03:31 PM (IST)
स्कूलों में कितने महफूज हैं बच्चे

हाल के वर्षो में स्कूली बच्चों में झगडे, मारपीट, हिंसा के अलावा चाइल्ड अब्यूज की घटनाएं काफी बढी हैं। ऐसी घटनाएं कई बार स्कूल परिसर और स्कूल बसों में हो रही हैं।

बच्चों का ज्यादा समय स्कूल में बीतता है। जब तक वह स्कूल में सुरक्षित, खुश और कंफर्टेबल महसूस नहीं करेगा, वह पढ नहीं सकता। असुरक्षा की भावना उसे मानसिक तौर पर परेशान करती है। वह डर में जीने लगता है, लोगों के बीच जाने से घबराता है या स्कूल जाने से ही कतराने लगता है।

सुरक्षा-भावना है जरूरी

बच्चों की सुरक्षा के लिए अभिभावकों और टीचर्स का सामूहिक प्रयास जरूरी है। जागरूक सभी हैं, मगर सिर्फ जागरूकता से काम नहीं चलता, कोशिश करनी पडती है। बच्चों की सुरक्षा दो स्तरों पर सुनिश्चित करनी होती है - शारीरिक और भावनात्मक सुरक्षा। अभिभावक, टीचर्स, स्कूल प्रबंधन, सीनियर्स, सहपाठी सभी को इसमें हिस्सेदारी निभानी होगी। सुरक्षा कितनी भी चाक-चौबंद हो, वह पर्याप्त नहीं कही जा सकती। जब कोई घटना हो जाती है, लोग जागरूक हो जाते हैं, मगर क्या यह जरूरी नहीं है कि जिस स्कूल में अपने बच्चे को एडमिशन दिला रहे हैं, उसके बारे में पहले पूरी जानकारी हासिल करें!

बच्चे से संवाद

अभिभावकों का बच्चे से निरंतर संवाद जरूरी है। संवाद का तरीका संवेदनशील हो। उससे पूछें कि उसका दिन कैसा रहा? क्या वह स्कूल में सहज है? क्या वह किसी टीचर, सहपाठी या स्टाफ के सामने असहज होता है? क्या वह दोस्तों-टीचर्स के साथ खुल कर बात कर पाता है?

अभिभावकों को स्कूल में रैगिंग, छेडछाड, स्टाफ और बस ड्राइवर की पूरी जानकारी होनी चाहिए। यदि स्कूल में कोई घटना होती है तो माता-पिता को उसके बारे में मालूम होना चाहिए। कई बच्चे नहीं जानते कि खुद को कैसे सुरक्षित कर सकते हैं। इसलिए बच्चों को छोटी-छोटी प्रॉब्लम्स दें और उन्हें स्वयं सुलझाने को कहें। इससे विपरीत स्थिति का सामना करने में उन्हें मदद मिलेगी। स्कूल के नियमों और नीतियों के बारे में जागरूक रहें और देखें कि क्या स्कूलों में इनका पालन हो रहा है? कहीं कोई खामी दिखे तो उसकी शिकायत प्रबंधन से करें। यह तभी होगा, जब पेरेंट्स बच्चे से बातचीत करेंगे और स्कूल के निरंतर संपर्क में रहेंगे। बच्चे को बताएं कि इमर्र्जेसी या आपात स्थिति में स्कूल में किससे संपर्क करे।

स्कूल-पेरेंट्स संपर्क

स्कूल के नियमों के बारे में जागरूक रहें। तभी बच्चे की सुरक्षा को लेकर निश्चिंत रह सकेंगे। किसी खास समस्या के प्रति स्कूल का नजरिया कैसा रहा या उससे निपटने का स्कूल का तरीका क्या है, यह जानना भी अभिभावक के लिए जरूरी है। हर स्कूल का अपना तरीका होता है। बच्चे के मेंटर, कॉर्डिनेटर टीचर, काउंसलर को जानें। हर विषय के शिक्षक को जानें। स्कूल में कोई भी सेमीनार, फेस्ट, वर्कशॉप हो तो जरूर जाएं। पेरेंट-टीचर मीटिंग मिस न करें। स्कूल के लिए जरूरी है कि अपने टीचिंग और नॉन-टीचिंग स्टाफ की पूरी ट्रेनिंग करे। इसे सुनिश्चित कराने के लिए अभिभावकों का जागरूक होना जरूरी है।

सबसे महत्वपूर्ण है कि स्कूलों में पढाई, एग्जैम या करियर बिल्डिंग के साथ ही लाइफ स्किल्स ट्रेनिंग दी जाए। विपरीत स्थितियों में बच्चा कैसे खुद को संभाले, इसके लिए समय-समय पर बच्चों, टीचर्स, अभिभावकों की वर्कशॉप हो। लाइफ स्किल्स ट्रेनिंग हर स्कूल में अनिवार्य की जाए।

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