प्रशंसा से बढ़ाएं आत्मविश्वास

बच्चों को यह समझाना बहुत ज़रूरी है कि बाहरी सुंदरता अस्थायी है। हमारे आंतरिक गुणों से ही व्यक्तित्व का संतुलित विकास होता है।

By Edited By: Publish:Tue, 05 Jul 2016 10:21 AM (IST) Updated:Tue, 05 Jul 2016 10:21 AM (IST)
प्रशंसा से बढ़ाएं आत्मविश्वास
मेरी 12 वर्षीय बेटी पढाई में अच्छी है पर अपनी सांवली रंगत की वजह से वह हमेशा सहमी-सकुचाई सी रहती है। स्कूल की किसी भी एक्टिविटी में शामिल नहीं होती। वह लोगों से मिलना-जुलना भी पसंद नहीं करती। उसकी यह आदत कैसे सुधरेगी? मंजुला शर्मा, लखनऊ दरअसल आपकी बेटी का आत्मविश्वास कमजोर पडता जा रहा है। अपने रंग-रूप को लेकर उसके मन में एक ऐसी नेगटिव बॉडी इमेज बन गई है कि वह उससे बाहर निकलने में असमर्थ है। इसी वजह से वह अकसर गुमसुम और उदास रहती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हमारे समाज में आज भी लोग किसी इंसान के आंतरिक गुणों के बजाय उसके बाहरी रंग-रूप को ज्य़ादा अहमियत देते हैं। गोरापन बढाने वाली एक क्रीम के विज्ञापनों में भी बार-बार ऐसी ही बातें दोहराई जाती हैं। इसी वजह से सामान्य शक्ल-सूरत वाली लडकियों के मन में छोटी उम्र से ही हीन-भावना पनपने लगती है। आपकी बेटी के साथ भी यही समस्या है, जिससे उसकी अच्छाइयां दूसरों के सामने उभर कर नहीं आ पातीं। यहां तक कि वह भी अपने गुणों को पहचानने में असमर्थ है। हमारे समाज में शुरू से ही यह धारणा बनी हुई है कि लडकियों के लिए खूबसूरती ही सब कुछ है। छोटी उम्र से ही बेटियों की परवरिश के दौरान बार-बार उन्हें इस बात का एहसास दिलाया जाता है कि तुम्हारे लिए सुंदर दिखना बहुत जरूरी है। परिवार या पास-पडोस की लडकियों से उसकी तुलना की जाती है। ऐसे में अगर कोई लडकी सुंदर नहीं है तो वह खुद को उपेक्षित महसूस करने लगती है। इसके अलावा आजकल लडकियों के लिए बॉयफ्रेंड स्टेटस सिंबल की तरह होता है। कई बार मामूली नैन-नक्श वाली लडकियां यह सोचकर उदास हो जाती हैं कि कोई भी लडका उन्हें पसंद नहीं करेगा। रिजेक्शन के डर से उनका आत्मविश्वास कमजोर पडऩे लगता है। अपनी बेटी को ऐसी मनोदशा से बाहर निकालने के लिए उसकी खूबियों को पहचान कर उसके हर अच्छे कार्य की प्रशंसा करें। उसे कुछ कामयाब लोगों का उदाहरण देकर समझाएं कि मामूली शकल-सूरत होने के बावजूद अमुक व्यक्ति ने किस तरह अपने गुणों के बल पर कामयाबी हासिल की। वह जैसी भी है, उसे स्वयं को उसी रूप में स्वीकारना सिखाएं। उसमें अपने शरीर के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करें। उसे यह समझाएं कि इंसान के आंतरिक गुणों की झलक उसके बाहरी व्यक्तित्व पर भी दिखाई देती है। वह हमेशा खुश रहेगी, सकारात्मक ढंग से सोचेगी तो सुंदर भी दिखेगी। इस उम्र में बच्चों के नैतिक मूल्यों का विकास बहुत जरूरी होता है। उसे लोगों से मिलने-जुलने के लिए प्रेरित करें। बर्थडे पार्टीज और विवाह समारोहों में उसे अपने साथ लेकर जाएं और लोगों से घुलने-मिलने दें। जब वह सामाजिक रूप से सक्रिय रहेगी, तभी उसकी खूबियां उभर कर दूसरों के सामने आ पाएंगी। इस तरह लोगों की प्रशंसा पाकर धीरे-धीरे उसकी हीन भावना दूर हो जाएगी। पेरेंटिंग टिप्स अपने बच्चे के अच्छे गुणों की प्रशंसा करें। आप अपनी खामियों-खूबियों को भी सहजता से स्वीकारें। किसी भी व्यक्ति की बाहरी सुंदरता के आधार पर उसके बारे में अपनी राय न बनाएं। बच्चों को यह समझाना बहुत जरूरी है कि बाहरी सुंदरता अस्थायी है। हमारे आंतरिक गुणों से ही व्यक्तित्व का संतुलित विकास होता है। दूसरों से अपने बच्चे की तुलना न करें। उसके सामने लोगों के गुणों की प्रशंसा करें, न कि उनके रंग-रूप की। पाकर धीरे-धीरे उसकी हीन भावना दूर हो जाएगी। गगनदीप कौर , चाइल्ड एंड क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट
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