देवी के नौ रूपों की आराधना का पर्व

पूर्ण ब्रह्मांड दैवी शक्ति से संचालित हो रहा है। नवरात्र के नौ दिन इसी शक्ति की आराधना का विशेष पर्व काल हैं। सभी अंकों में नौ (9) को सर्वाधिक ऊर्जावान माना जाता है। त्रिगुणात्मक सृष्टि के संचालन के लिए ही महाशक्ति ने सरस्वती, लक्ष्मी और काली का रूप धारण किया है।

By Edited By: Publish:Mon, 01 Sep 2014 04:27 PM (IST) Updated:Mon, 01 Sep 2014 04:27 PM (IST)
देवी के नौ रूपों की आराधना का पर्व

राधाष्टमी - 2 सितंबर

पद्मा एकादशी - 5 सितंबर

पूर्णिमा - 8 सितंबर

पितृपक्ष प्रारंभ - 9 सितंबर

जीवितपुत्रिका व्रत - 16 सितंबर

विश्वकर्मा पूजा - 17 सितंबर

इंदिरा एकादशी - 19 सितंबर

अमावस्या- 24 सितंबर

नवरात्र प्रारंभ - 25 सितंबर

पूर्ण ब्रह्मांड दैवी शक्ति से संचालित हो रहा है। नवरात्र के नौ दिन इसी शक्ति की आराधना का विशेष पर्व काल हैं। सभी अंकों में नौ (9) को सर्वाधिक ऊर्जावान माना जाता है। त्रिगुणात्मक सृष्टि के संचालन के लिए ही महाशक्ति ने सरस्वती, लक्ष्मी और काली का रूप धारण किया है। आगे इनका विस्तार नवदुर्गा के रूप में हुआ, जो इस प्रकार है :

1. शैलपुत्री : मां दुर्गा अपने पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। वृषभ स्थिता (बैल पर विराजमान) इन देवी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं में कमल पुष्प सुशोभित है। यह पर्यावरण और प्रकृति को संरक्षण प्रदान करती हैं।

2. ब्रह्मचारिणी : मां का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी है। इनका यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय है। इनके दाहिने हाथ में जपमाला एवं बाएं में कमंडल रहता है। इनकी उपासना से प्राणी के अंदर तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।

3. चंद्रघंटा : मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है औरइनके दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं। इनकी उपासना से वीरता एवं विनम्रता का विकास होता है।

4. कूष्मांडा : मां का दुर्गा का चौथा स्वरूप कूष्मांडा है। ऐसी मान्यता है कि इनकी मंद हंसी द्वारा ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी। इसीलिए इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा गया। इनकी आठ भुजाएं हैं, जिनमें कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, अमृत-कलश, शंख, चक्र, गदा और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है और इनकी भक्ति से आयु, यश और आरोग्य की वृद्धि होती है।

5. स्कंदमाता : भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इनका वाहन भी सिंह है और इनकी चार भुजाएं हैं। स्कंदमाता को सृष्टि की पहली प्रसूता स्त्री माना जाता है। इनकी उपासना से समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं।

6. कात्यायनी : मां के छठे स्वरूप को कात्यायनी नाम से पुकारा जाता है। इनका वाहन सिंह है और इनकी चार भुजाएं हैं। यह देवी अमोघ फल देने वाली हैं। इनकी उपासना से रोग, शोक और भय नष्ट हो जाते हैं। महिषासुर राक्षस का वध करने के कारण इनका एक नाम महिषासुर मर्दिनी भी है।

7. कालरात्रि : मां कालरात्रि का स्वरूप काला है, लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम शुभकरी भी है। इनकी उपासना से प्राणी सर्वथा भय मुक्त हो जाता है।

8. अष्टम महागौरी : मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। यह गौरवर्ण की हैं। ऐसा माना जाता है कि कठोर तपस्या करने से इनका रंग काला पड गया था। जब शिवजी ने इन पर गंगाजल छिडका तो यह पूर्णत: गौरवर्ण की महागौरी हो गई। इनकी चार भुजाएं हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनकी उपासना सौभाग्य देने वाली है। मां महागौरी साधक को अलौकिक शक्ति प्रदान करती हैं।

9. नवम सिद्धिदात्री : मां का नौवां स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है। इनका वाहन सिंह है, पर ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें शंख, चक्र, गदा और कमल पुष्प है। इनकी उपासना करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। नवरात्र में मां के इन स्वरूपों की पूजा नौ दिन करने से आध्यात्मिक ऊर्जा का संचय होता है और इससे भक्तों की इच्छाशक्ति भी दृढ होती है।

मार्कण्डेय पुराण का अंश है

श्री दुर्गा सप्तशती

अठारह पुराणों में मार्कण्डेय पुराण का सातवां स्थान है। इसकी श्लोक संख्या 6,439 है। इस दृष्टि से मार्कण्डेय पुराण आकार में सबसे छोटा है। इसके वक्ता मार्कण्डेय ऋषि थे, जो मृकुंडु ऋषि के पुत्र थे। मार्कण्डेय जन्म से अल्पायु थे, किंतु वह भगवान के परम भक्त थे। शिवजी और विष्णु भगवान की आराधना से इन्हें दीर्घायु होने का वर प्राप्त हुआ। इस पुराण को मार्कण्डेय मुनि ने ब्रह्मा जी से प्राप्त किया था। सदियों पहले इस पुराण की रचना विंध्य पर्वत पर हुई थी। इसके अध्याय 1 से 42 तक के वक्ता पक्षी थे। इन पक्षियों के नाम क्रमश: पिंगाक्षं, विरोध, सुमुख और सुपुत्र थे, जो शास्त्रों में निपुण और तत्वज्ञानी थे। इसके अध्याय 43 से अंत तक वक्ता-श्रोता मार्कण्डेय ऋषि और क्रोष्टिक हैं। इसके 4 प्रकरण अति महत्वपूर्ण हैं, जिनके नाम हैं-

भुवनकोश, हरिश्चंद्रोपाख्यान, मदालसा चरित और देवी माहात्म्य। इसके हरिश्चंद्रोपाख्यान प्रकरण में राजा हरिश्चंद्र के जीवन से जुडे करुण प्रसंगों का बडा ही मार्मिक चित्रण किया गया है। मार्कण्डेय पुराण में अनेक विद्याओं का भी उल्लेख है। जिनमें अनुलोपन, स्वेच्छारूपधारिणी, पद्यिनी और रक्षोघ्न विद्या प्रमुख है। इस पुराण में जीवन के कई गूढ रहस्य छिपे हैं।

इसकी मुख्य रचना देवी महात्म्य है, जो दुर्गा सप्तशती के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्र के अवसर पर हर घर में इसका पाठ किया जाता है।

संध्या टंडन

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