योग बनाए तन-मन सुंदर

मन की शांति को बनाए रखने में योग बहुत कारगर है और अगर आप तन की सुंदरता को बरकरार रखना चाहते हैं तो योग आपके जीवन में वरदान साबित हो सकता है। शरीर को स्वस्थ और सुंदर रखने के लिए योग की विधियों को अपनाएं।

By Edited By: Publish:Wed, 23 Sep 2015 02:05 PM (IST) Updated:Wed, 23 Sep 2015 02:05 PM (IST)
योग बनाए तन-मन सुंदर

सौंदर्य को बढाने के लिए हम न जाने कितने जतन करते हैं, कभी नुस्ख्ो आजमाते हैं तो कभी मेकअप करके अपनी ख्ाूबसूरती निखारने की कोशिश करते हैं। जरा गौर से सोचिए कि हम अगर थोडी सी और मेहनत करें तो ताउम्र ख्ाूबसूरत रह सकते हैं। योग में हर मजर् का इलाज है और यहीं मिलेंगे आपको अपने सौंदर्य को बढाने के उपाय।

सुप्तवज्रासन

सुप्त का अर्थ होता है सोया हुआ अर्थात वज्रासन की स्थिति में सोया हुआ। इस आसन में पीठ के बल लेटना पडता है इसलिए इस आसन को सुप्तवज्रासन कहते हैं।

विधि : घुटने के बल जमीन पर बैठें। दोनों पैरों की एडिय़ों के मध्य नितंब को रखें। गहरी सांस लें और छोडें। दोनों हाथों को पीठ के पीछे जमीन पर रखते हुए शरीर को धीरे-धीरे पीछे झुका कर सिर को जमीन तक ले आएं। फिर सिर का ऊपरी भाग जमीन पर रखें और दोनों हाथों को पेट पर रखें। आरामदायक अवधि तक रुकते हुए वापस पूर्व स्थिति में आएं। शुरू में 15 सेकेंड तक रुकें। बाद में चार से पांच मिनट तक कर सकते हैं।

लाभ : यह आसन शरीर को सुडौल व ऊर्जावान बनाता है। घुटने, वक्षस्थल और मेरुदंड के लिए लाभदायक है। इस आसन से पेट में खिंचाव होता है, जिसके कारण पेट संबंधी नाडिय़ों में रक्त प्रवाहित होकर उन्हें सशक्त बनाता है। हार्ट बीट को कंट्रोल रखता है और रक्त संचार को सुचारु करता है। इस आसन को करने से नितंब, थाइज व पेट की चर्बी घटती है और चेहरे की झुर्रियां भी दूर होती हैं।

सावधानी : जिनको पेट में वायु विकार, कमर दर्द की शिकायत

हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए। इसे खाना खाने के तुरंत बाद न करें। घुटने में दर्द की समस्या से पीडित लोग भी इस आसन को करने से बचें।

कपालभाति प्राणायाम

योग आसनों में सूर्य नमस्कार, प्राणायामों में कपालभाति और ध्यान में विपश्यना का महत्वपूर्ण स्थान है। कपालभाति प्राणायाम को हठयोग में शामिल किया गया है। प्राणायामों में यह सबसे कारगर प्राणायाम माना जाता है। यह तेजी से की जाने वाली प्रक्रिया है। मस्तिष्क के अग्र भाग को कपाल कहते हैं और भाति का अर्थ है आंतरिक तेज या ज्योति।

विधि : सिद्धासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठकर सांसों को बाहर छोडऩे की क्रिया करें। सांसों को बाहर छोडते समय पेट को अंदर की ओर धक्का दें। ध्यान रखें कि सांस भीतर लेने के लिए कोई प्रयास नहीं करना है, क्योंकि इस क्रिया में सांस स्वत: ही अंदर चली जाती है।

लाभ : यह प्राणायाम आपके चेहरे की झुर्रियां और आंखों के नीचे का कालापन हटाकर चेहरे की चमक बढाता है। दांतों और बालों के सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। शरीर की चर्बी कम होती है। कब्ज, गैस, एसिडिटी की समस्या में लाभदायक है। शरीर और मन के सभी प्रकार के नकारात्मक तत्व और विचार मिट जाते हैं।

सावधानी : उच्च रक्तचाप, हार्ट पेशेंट, स्लिप डिस्क, हाइपरथायरॉयड और एसिडिटी से पीडित लोग इसे न करें।

नाडी शोधन प्राणायाम

नाडिय़ों की शुद्धि और मजबूती से अन्य अंगों में शुद्धि का संचार होता है। नाडी शोधन और अनुलोम-विलोम में कोई ख्ाास फर्क नहीं है। प्रदूषित वातावरण के चलते वर्तमान में प्राणायाम का अभ्यास हमारे प्राणों के लिए आवश्यक है। आप इसका अभ्यास सूर्योदय के समय करें।

विधि : किसी भी सुखासन में बैठकर कमर सीधी करें और आंखें बंद कर लें। दाएं हाथ के अंगूठे से दाईं नासिका बंद कर पूरी सांस बाहर निकालें। अब बाईं नासिका से सांस लें, तीसरी अंगुली से बाईं नासिका को भी बंद कर आंतरिक कुंभक करें। जितनी देर स्वाभाविक स्थिति में रोक सकते हैं, रोकें। फिर दायां अंगूठा हटाकर सांस को धीरे-धीरे बाहर छोडें (रेचक करें)। 1-2 मिनट बाह्य कुंभक करें। फिर दाईं नासिका से उंगली हटाकर सांस को रोकें, फिर बाईं से धीरे से निकाल दें। इसे 5 से 7 बार करें। फिर धीरे-धीरे इसकी संख्या को बढाएं।

लाभ : इससे सभी प्रकार की नाडिय़ों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है साथ ही नेत्र ज्योति बढती है और रक्त संचालन सही रहता है। अनिद्रा रोग में लाभ मिलता है। यह तनाव घटाकर मस्तिष्क को शांत रखता है और व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का विकास करता है। यह प्राणायाम हर व्यक्ति कर सकता है।

सर्वांगासन

सर्वअंग और आसन अर्थात सर्वांगासन। इस आसन को करने से सभी अंगों को व्यायाम मिलता है। इसीलिए इसे सर्वांगासन कहते हैं।

विधि : पीठ के बल सीधा लेट जाएं। पैर मिले हुए, हाथों को दोनों ओर बगल में सटाकर हथेलियां जमीन की ओर करके रखें। सांस अंदर भरते हुए आवश्यकतानुसार हाथों की सहायता से पैरों को धीरे-धीरे 30 डिग्री, फिर 60 डिग्री और अंत में 90 डिग्री तक उठाएं। 90 डिग्री तक पैरों को न उठा पाएं तो 120 डिग्री पर पैर ले जाकर और हाथों को उठाकर कमर के पीछे लगाएं। वापस आते समय पैरों को सीधा रखते हुए पीछे की ओर थोडा झुकाएं। दोनों हाथों को कमर से हटाकर भूमि पर सीधा कर दें। अब हथेलियों से भूमि को दबाते हुए जिस क्रम से उठे थे, उसी क्रम से धीरे-धीरे पहले पीठ और फिर पैरों को भूमि पर सीधा करें। जितने समय तक सर्वांगासन किया जाए लगभग उतने समय तक शवासन में विश्राम करें।

लाभ : बालों की जडें मजबूत होती हैं और चेहरे की त्वचा में कसाव आता है। इस आसन का पूरक आसन मत्स्यासन है, अत: शवासन में विश्राम से पूर्व मत्स्यासन करने से अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।

सावधानी : उच्च रक्तचाप, स्लिप डिस्क व थायरॉयड के रोगी इस आसन को न करें। जिन लोगों को गर्दन या रीढ में शिकायत हो उन्हें भी यह आसन नहीं करना चाहिए।

वंदना यादव

(योगाचार्या डॉ. दीपक सचदेवा से बातचीत पर आधारित)

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