मामूली मर्ज नहीं है सिर चकराना

सिर चकराना एक आम समस्या है। वैसे तो यह अपने आप में कोई बीमारी नहीं है पर बुखार की तरह यह भी कई स्वास्थ्य समस्याओं का सूचक है। इसलिए इसे केवल मामूली कमज़ोरी समझकर नज़रअंदाज़ न करें।

By Edited By: Publish:Tue, 24 Jan 2017 03:15 PM (IST) Updated:Tue, 24 Jan 2017 03:15 PM (IST)
मामूली मर्ज नहीं है सिर चकराना
कई बार आपने लोगों को कहते सुना होगा कि आज सुबह मुझे बहुत तेज चक्कर आया और मैं गिरते-गिरते बचा, कई बार आंखों के सामने बिलकुल अंधेरा छा जाता है या चलते वक्त ऐसा लगता है कि कदमों पर मेरा नियंत्रण नहीं है...दरअसल ये लक्षण हमें इस बात के प्रति आगाह करते हैं कि हमारे शरीर की, खासतौर पर ब्रेन और नर्वस सिस्टम की स्वाभाविक क्रियाओं में कोई न कोई गडबडी है। इसलिए चक्कर आने पर बिना देर किए डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी चाहिए। क्यों होता है ऐसा आमतौर पर गला, आंख, कान, नर्वस सिस्टम या ब्रेन के किसी विशेष हिस्से में होने वाली गडबडी की वजह से भी चक्कर आने की समस्या हो सकती है। हालांकि, ब्लडप्रेशर का असामान्य ढंग से बढऩा या घटना, शरीर में पानी, सोडियम या हीमोग्लोबिन की कमी से भी चक्कर आने की समस्या देखने को मिलती है। इन वजहों से होने वाली डिजीनेस को आसानी से दूर किया जा सकता है लेकिन वैसी स्थिति में ज्य़ादा मुश्किल आती है, जब ब्रेन के सेरिब्रल पार्ट में चोट लगने, नर्वस सिस्टम में गडबडी या कान में वायरल इन्फेक्शन की वजह से चक्कर आते हों। सामान्य स्थिति में सिर को हिलाने पर सिग्नल अंदरूनी कान तक पहुंचता है। अंदरूनी कान में संतुलन नियंत्रित करने वाला तंत्र लेब्रिन्थिन सिस्टम जानकारी को वेस्टिबुलर सिस्टम तक पहुंचाता है, जो संदेश को दोबारा ब्रेन के उस हिस्से तक पहुंचाता है, जहां से संतुलन, तालमेल और व्यक्ति के हावभाव नियंत्रित होते हैं। इस पूरे सिस्टम के किसी हिस्से में खराबी आने पर सिर के चकराने की समस्या पैदा होती है। डिजीनेस की अवस्थाएं कारणों और लक्षणों के आधार पर सिर के चकराने की अवस्था को चार भागों में बांटा जा सकता है : बेहोशी : पानी की कमी, दिल की धडकन में उतार-चढाव, हाई ब्लडप्रेशर की अधिक दवाएं लेने व नर्वस सिस्टम के प्रभावित होने पर भी व्यक्ति को चक्कर आता है। ऐसी स्थिति में खडे होने पर आंखों के आगे अंधेरा छाने लगता है और वह बहोश हो जाता है। असंतुलन : अंदरूनी कान में गडबडी, सेरेब्रल स्ट्रोक, अधिक मात्रा में एल्कोहॉल का सेवन, पार्किंसन्स, दृष्टि में कमजोरी या सर्वाइकल स्पॉण्डिलाइटिस होने पर भी लोगों में चक्कर आने और लडखडाने की समस्या होती है, जिससे कभी-कभी चलते समय लोग गिर जाते हैं। वर्टिगो : यह एक गंभीर किस्म की स्थिति है। ऐसे में इतनी तेज चक्कर आता है कि इससे पीडित व्यक्ति चल-फिर नहीं पाता। ऐसे असंतुलन और चक्कर के दौरे कुछ मिनटों से लेकर घंटों तक जारी रहते हैं। अंदरूनी कान या सेंट्रल नर्वस सिस्टम में गडबडी इसकी प्रमुख वजह है। यात्रा के दौरान होने वाली घबराहट, लगातार कई घंटों तक कंप्यूटर पर काम करना, माइग्रेन या कान के अंदरूनी हिस्से में मौजूद फ्लूइड की मात्रा बढ जाने की वजह से भी लोगों को ऐसी समस्या हो सकती है। इसमें चक्कर के साथ वोमिटिंग भी हो सकती है। बेचैनी : कई बार लोगों को बहुत ज्यादा घबराहट और बेचैनी महसूस होती है। ऐसे में किसी भी तरह लेटने या बैठने पर उन्हें आराम नहीं मिलता। पैनिक अटैक या ब्लडप्रेशर के बहुत ज्यादा बढऩे-घटने की वजह से भी ऐसा हो सकता है। वैसे तो किसी भी व्यक्ति को डिजीनेस हो सकती है लेकिन स्त्रियों में इसके लक्षण ज्यादा नजर आते हैं क्योंकि उनके शरीर में हॉर्मोन संबंधी असंतुलन की समस्या अधिक होती है। प्रेग्नेंसी के दौरान भी हॉर्मोन संबंधी उतार-चढाव की वजह से कुछ स्त्रियों को चक्कर आते हैं। इसके अलावा गर्भनिरोधक गोलियों के साइड इफेक्ट से भी कुछ स्त्रियों को डिजीनेस हो सकती है। क्या है उपचार अगर ऐसा कोई भी लक्षण दिखाई दे तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लें। ऐसे में मरीज की स्थिति के अनुसार गले और कान-नाक के एक्स-रे या एमआरआई के अलावा हॉर्मोन और हीमोग्लोबिन की जांच की जाती है। जांच के माध्यम से चक्कर आने के सही कारणों की पहचान करने के बाद ही उपचार शुरू किया जाता है। ऐसे में मरीज का सहयोग बहुत अहमियत रखता है क्योंकि उसके द्वारा बताए गए लक्षणों की मदद से डॉक्टर समस्या के कारणों को पहचान पाते हैं। सभी मामलों में दवाओं या सर्जरी की जरूरत नहीं होती है। कई बार तनाव की अधिकता से भी चक्कर आते हैं। खराब जीवनशैली की वजह से आजकल ज्य़ादातर लोगों को स्पॉण्डिलाइटिस की समस्या हो जाती है, जिससे उन्हें चक्कर भी आते हैं। ऐसी स्थिति में प्रभावित हिस्से की मांसपेशियों को आराम पहुंचाने के लिए फिटनेस एक्सपर्ट की निगरानी में योगाभ्यास फायदेमंद होता है। इस समस्या से पीडित लोगों को तकिये का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कैसे करें बचाव सिर चकराने पर सबसे पहले स्थिति को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करें। चक्कर अकसर चलने-फिरने के दौरान आते हैं। अगर कभी ऐसा महसूस हो तो तुरंत बैठ जाएं। इससे शरीर को आराम मिलेगा और व्यक्ति गिरने से बच जाएगा। ऐसी स्थिति में जब चक्कर आना रुक जाए तो ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं। अपनी शारीरिक अवस्था के बारे में सोचने के बजाय किसी दूसरे कार्य में ध्यान केंद्रित करें। इससे नर्वस सिस्टम को संतुलित होने का संकेत मिलता है और जल्द ही राहत महसूस होती है। कई बार घबराहट या किसी तरह के फोबिया की वजह से भी लोगों को चक्कर आता है। ऐसी स्थिति में धीरे-धीरे और गहरी सांस लेने का प्रयास करें। सिर चकराने की परिस्थितियों व उसकी तीव्रता से जुडे अनुभवों को एक डायरी में नोट करें ताकि डॉक्टर को इस बारे में पूरा विवरण दिया जा सके। इस समस्या से बचाव के लिए लोगों को अपनी जीवनशैली में भी कुछ बदलाव लाना चाहिए। मसलन, बहुत तेज झटके के साथ उठने-बैठने या करवट बदलने से बचें। सभी आवश्यक वस्तुओं को हमेशा अपने आसपास रखें। अपनी दिनचर्या को दुरुस्त रखें। अनिद्रा या असमय सोने-जागने की आदत भी इस समस्या के लिए जिम्मेदार है। इसलिए प्रतिदिन आठ घंटे की नियमित नींद लें। बुजुर्गों को विशेष रूप से सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि हड्डियां कमजोर होने के कारण गिरने पर फ्रैक्चर का खतरा हो सकता है। अगर आप इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखेंगे तो आसानी से यह समस्या दूर हो सकती है। सखी फीचर्स इनपुट्स : डॉ. प्रवीण गुप्ता, एचओडी, डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल, गुडग़ांव
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