मुश्किलों के आगे जिद्दी सी ख्वाहिश: मैरी कॉम

मणिपुर के छोटे से कसबे से निकलकर बॉक्सिंग की विश्व चैंपियन बनी हैं मैरी कॉम। उन्हीं की जिंदगी पर बनी है फिल्म मैरी कॉम। कई सिनेमाघरों में प्रदर्शन से पहले ही यह टैक्स फ्री हो गई। मैरी कॉम ने पारिवारिक रिश्ते निभाते, खेल की राजनीति से भिड़ते और जुड़वा बच्चों की परवरिश करते हुए अपने भीतर की बॉक्सर को जिंदा रखा। डायरेक्टर ओमंग कुमार ने मैरी के हौसलों, उड़ान, जज्बे, संघर्ष और कामयाबी की कहानी को दिलचस्प ढंग से पर्दे पर दर्शाया है। फिल्म से जुड़े कई रोचक किस्सों के बारे में बता रहे हैं अजय ब्रह्मात्मज।

By Edited By: Publish:Mon, 03 Nov 2014 11:30 AM (IST) Updated:Mon, 03 Nov 2014 11:30 AM (IST)
मुश्किलों के आगे जिद्दी सी ख्वाहिश:
मैरी कॉम

हाल-फिलहाल ऐसी कोई हिंदी फिल्म नहीं आई, जिसे उसकी रिलीज सेपहले ही अनेक राज्यों ने मनोरंजन कर से मुक्त कर दिया हो। पहले महाराष्ट्र और फिर अन्य राज्यों ने यह उदारता दिखाई। मणिपुर की विश्व चैंपियन बॉक्सर मैरी कॉम की जिंदगी पर बनी मैरी कॉम एक प्रेरक फिल्म है। यह एक स्त्री की विजय-गाथा है। मैरी कॉम ने बॉक्सिंग में कई खिताब जीते और अपने देश व समाज के लिए एक मिसाल बन गई। ओमंग कुमार ने पॉपुलर माध्यम से उन पर फिल्म बनाई और इस तरह एक स्त्री की संघर्ष व सफलता की कहानी जन-जन तक पहुंची। अन्यथा मैरी कॉम की उपलब्धियों के बारे में जानने के बावजूद लोग उनकी जिंदगी के बारे में नहीं जान पाते।

अलग ढंग की बायोपिक

संवेदनशील निर्देशक और निर्माता संजय लीला भंसाली ने ओमंग कुमार की योजना और सपने में विश्वास दिखाया। कई बार बडे फैसले मिनटों में ले लिए जाते हैं। मैरी कॉम के साथ ऐसा ही हुआ। ओमंग ने संजय लीला भंसाली की फिल्मों की प्रोडक्शन डिजाइनिंग की है। एक दोपहर संजय लीला भंसाली से मुलाकात के बाद ओमंग निकल रहे थे तो संजय उन्हें छोडने लिफ्ट तक आए। संजय ने यों ही पूछा कि और क्या चल रहा है? ओमंग ने भी उतने ही अनौपचारिक ढंग से कहा कि मणिपुर की बॉक्सर मैरी कॉम की जिंदगी पर बायोपिक बनाने के बारे में सोच रहा हूं। संक्षेप में मैरी क ॉम की कहानी सुनते ही संजय ने ओमंग से कहा कि फिल्म को वह प्रोड्यूस करेंगे। इसके बाद ओमंग कुमार ने फिल्म पर रिसर्च शुरू कर दी।

रचनात्मक फिल्म

संजय लीला भंसाली की शैली से वाकिफ दर्शकों को आशंका थी कि न जाने संजय किस रूप में मैरी कॉम को पेश करें। उनकी फिल्में सपनीली और तरल होती हैं। यह मणिपुर की सामान्य लडकी की कहानी थी, जिसने जिद, जज्बे और जोश से असंभव उपलब्धियां हासिल कीं और बॉक्सिंग की दुनिया में मणिपुर सहित भारत का नाम रोशन किया। पिछले कुछ समय से संजय लीला भंसाली अपने बैनर के तहत नए फिल्मकारों को मौकेदे रहे हैं और हर जोनर की फिल्में बना रहे हैं। उन्होंने निर्देशकों को पूरी छूट दे रखी है। वे कहते हैं, मेरे बैनर के साथ फिल्म बना रहे निर्देशकों को छूट है। सिर्फ स्क्रिप्ट लिखते समय मैं सुझाव देता हूं। कुछ फिल्में बना चुका हूं तो निर्देशक भी मेरे अनुभवों से लाभ उठाना चाहते हैं। मैं किसी पर कुछ बदलने के लिए दबाव नहीं डालता। सारी फिल्में मैं खुद नहीं बना सकता। दूसरों की स्क्रिप्ट पसंद आती है तो उनकी फिल्म का हिस्सा बनने से मुझे संतुष्टि मिलती है। दो रचनात्मक व्यक्ति साथ काम करते हैं तो दोनों की क्रिएटिविटी का लाभ फिल्म को मिलना चाहिए। फिल्म मैरी कॉम के साथ यही हुआ है।

पहली फिल्म की कामयाबी

मैरी कॉम ओमंग कुमार की पहली फिल्म है। इसके पहले खिलाडियों की जिंदगी पर पान सिंह तोमर और भाग मिल्खा भाग जैसी फिल्में आ चुकी हैं। लेकिन ओमंग इस बात से इंकार करते हैं कि उन्हें इन दोनों फिल्मों से फिल्म बनाने की प्रेरणा मिली। वह कहते हैं, आर्ट डायरेक्शन के बाद मैं डायरेक्शन में शिफ्ट करने के बारे में सोच रहा था। 5-6 साल पहले फिल्में लिखनी शुरू की थीं। मेरे सहयोगी लेखक ने तभी मैरी कॉम के बारे में मुझे बताया। इरादा तो यही था कि फिल्म ऐसी हो कि कोई भी अभिनेत्री इंकार न कर सके। साथ ही फिल्म मेरे करियर में मदर इंडिया साबित हो। कोशिश यही थी कि ओलंपिक के पहले फिल्म आ जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। हमारी चुनौती यह भी थी कि हम ऐसी लीजेंड पर फिल्म बना रहे थे, जो अभी सक्रिय है। मैरी कॉम करियर के शीर्ष पर हैं। उनकी कहानी में अभी और कई नए अध्याय जुडने हैं। कोशिश यही थी कि उनकी इस यात्रा को हम बडे पर्दे पर विश्वसनीय तरीके से दिखा सकें। हमें यह भी ख्ायाल रखना था कि फिल्म देखते समय दर्शकों को कहीं से भी यह न लगे कि वे कोई डॉक्यूमेंट्री फिल्म देख रहे हैं। हमें मैरी कॉम की जिंदगी से ही नाटकीय घटनाएं लेकर फिल्म की कहानी में पिरोना था।

प्रियंका कपूर की मेहनत

मैरी कॉम को लकर बहस चल रही थी कि प्रियंका चोपडा और मैरी के रंग-रूप में कोई समानता नहीं है। निर्देशक ओमंग कुमार और निर्माता संजय लीला भंसाली बॉयोपिक के लिए ऐसी समानता अनिवार्य नहीं मानते। संजय कहते हैं, अगर हम मैरी कॉम जैसी लडकी खोज भी लेते तो बाकी चुनौतियां कम नहीं होतीं। इसलिए यह जरूरी था कि हमारी नायिका मैरी कॉम की संवेदना और अंतर्मन को समझ सके। तभी दर्शकों की फिल्म में रुचि बनी रहती है। फिल्म देखने के बाद दर्शकों ने भी माना कि अन्य कोई अभिनेत्री शायद प्रियंका चोपडा की तरह अभिनय न कर पाती। प्रियंका ने तन-मन से खुद को इस किरदार में ढाला था। वह इस किरदार को जी रही थीं। जिस लगन से उन्होंने अपने शरीर को कसरती बनाया और निरंतर असाध्य मेहनत करती रहीं, वह अन्यत्र दुर्लभ है। इस फिल्म में वह मणिपुर की साधारण लडकी दिखती हैं। उनका यह रूपांतरण विस्मयकारी है। निर्देशक ओमंग ुमार भी संजय की राय से इत्तफाक रखते हैं। उनकी राय में, यही कोशिश रही कि मैरी कॉम का किरदार निभा रही अभिनेत्री दर्शकों के दिलों को छू सके और प्रियंका चोपडा इस कोशिश में कामयाब रहीं।

सफल कमर्शियल फिल्म

प्रियंका चोपडा ऐसे सवालों से खिन्न हो जाती हैं। उन्हें लगता है कि लोग उनकी मेहनत और कोशिश को नकार रहे हैं। वह तर्क देती हैं, अगर फिल्म छोटे पैमाने पर बनती तो शायद किसी हमशक्ल अभिनेत्री के साथ पूरी की जाती। बडे स्केल की फिल्मों के लिए जरूरी होता है कि कलाकार दर्शकों को सिनेमाघरों में खींच सके। फिल्म बिजनेस भी है। वह कहती हैं, मैं जिन दिनों मैरी कॉम की तैयारी कर रही थी, पापा बीमार थे। उनके लिए मैं यह फिल्म करना चाहती थी। दिन-रात मेहनत कर रही थी। समय मिलते ही पापा के पास जाती थी। मुझे शारीरिक-मानसिक तौर पर मैरी कॉम के करीब पहुंचना था। हिंदी फिल्मों की नायिका से उम्मीद रहती है कि वे हमेशा कोमलांगी बनी रहें। जबकि मैरी कॉम कसरती हैं। एक बॉक्सर के लिए उसका मुक्का ही सब कुछ होता है। मुझे अभ्यास से वह चुस्ती-फुर्ती और ताकत हासिल करनी थी। पापा के गुजरने केकुछ दिन बाद ही मैं शूटिंग के लिए निकल गई थी। उस दुख व अवसाद से बाहर निकलने के लिए जरूरी था कि मैं खुद को काम में डुबो दूं।

स्त्री प्रधान फिल्म

फिल्म के पोस्टर पर प्रियंका चोपडा इन एंड एज मैरी कॉम लिखा गया है। प्रियंका इसे बडी उपलब्धि मानती हैं। हिंदी फिल्मों में आम तौर पर हीरो और एक्टर की पूछ होती है। हाल में ही अभिनेत्रियों को महत्व मिलना शुरू हुआ है। महिला प्रधान फिल्में बन रही हैं। प्रियंका कहती हैं, कुछ समय पहले तक इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। फिल्मों के प्रस्ताव आने पर पहला सवाल रहता है कि हीरो कौन है? दर्शक भी हीरो का नाम और चेहरा देखते हैं। सच कहूं तो यह दौर हम अभिनेत्रियों और फिल्मों के लिए अच्छा है। प्रियंका चोपडा कहती हैं, यह फिल्म सिर्फ बॉक्सर मैरी कॉम के मेडल और पुरस्कारों की कहानी नहीं है। वह अचीवर है। देश की किसी सामान्य लडकी की तरह वह गांव में रहती है, लेकिन उसकी सोच अलग है। वह कुछ हासिल करना चाहती है। जुडवा बच्चों की मां बनने के बाद भी रिंग में उतरती है। इसमें उसके पति का सहयोग भी प्रशंसनीय है। मैरी कॉम हर प्रतिकूल स्थितियों को अपने अनुकूल बनाती है। खेल के मैदान के साथ ही वह असल जिंदगी में भी विजेता है।

अजय ब्रह्मात्मज

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