मध्यकालीन एपिक रोमैंस है जोधा अकबर

अनोखी प्रेम कहानी है जोधा अकबर। भव्य सेट्स, बेहतरीन कॉस्ट्यूम और मधुर व कर्णप्रिय संगीत वाली इस पीरियड फिल्म के लिए आशुतोष गोवारीकर को हमेशा याद किया जाएगा। कहानी के शोध से लेकर शूटिंग तक के किस्से सुना रहे हैं अजय ब्रह्मात्मज।

By Edited By: Publish:Mon, 03 Jun 2013 11:20 AM (IST) Updated:Mon, 03 Jun 2013 11:20 AM (IST)
मध्यकालीन एपिक रोमैंस है जोधा अकबर

पांच साल पहले 2008 की फरवरी में रिलीज हुई आशुतोष गोवारीकर की फिल्म जोधा अकबर हिंदी की चंद ऐतिहासिक फिल्मों में से एक है। हिंदी में ऐतिहासिक फिल्में कम बनी हैं। लागत, मेहनत और बारीकी की जरूरतों की वजह से फिल्मकार ऐसी फिल्मों के निर्माण और निर्देशन में रुचि नहीं लेते। निर्माण की मुश्किलों के साथ उन्हें विषय संबंधी विवादों व मतभेदों से भी जूझना पडता है। लगान व स्वदेस के बाद आशुतोष गोवारीकर ने जोधा अकबर जैसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक फिल्म का निर्माण और निर्देशन किया।

कहानी एक शासक की

मुगले आजम देश के हर दर्शक ने कभी न कभी देखी होगी। जब वह रंगीन होकर रिलीज हुई तो उसे नई पीढी के दर्शकों ने भी देखा। अकबर के दौर में उनके बेटे सलीम और कनीज अनारकली की प्रेम कहानी में अतिशय नाटकीयता थी। आज की शब्दावली में बात करें तो जोधा अकबर के. आसिफ की फिल्म मुगलेआजम की सीक्वल लगती है, क्योंकि इसमें अकबर की प्रेम कहानी है। 16वीं सदी की इस प्रेम कहानी ने देश के इतिहास और संस्कृति को प्रभावित किया। बाबर और हुमायूं के बाद मुगल साम्राज्य के तीसरे बादशाह अकबर ने अपनी बादशाहत मजबूत की और देश का राजनीतिक विस्तार किया। ताकत और जोर से छोटी रियासतों को अधीन करने के बजाय अकबर ने रजवाडों के दिलों को जीतने की कोशिश की। जोधा के साथ अकबर का विवाह वास्तव में राजनीतिक और रणनीतिक पहल थी। यह एक गठजोड था, लेकिन जोधा के स्वतंत्र व्यक्तित्व ने अकबर को बहुत प्रभावित किया। दोनों में शादी के बाद रोमैंस हुआ। इस प्रेम कहानी ने भारतीय इतिहास में हिंदू-मुस्लिम एकता की नींव रखी। अकबर ने फतह से अधिक राज करने पर बल दिया। उन्हें यह सीख जोधा ने दी।

शोध और शूटिंग

लगान के बाद आशुतोष गोवारीकर नई कहानी की तलाश में थे। उनके दोस्त हैदर अली ने जोधा अकबर की प्रेम कहानी सुनाई तो वे राजी हो गए। इसमें भव्यता के साथ कुछ नया रचने की चुनौती थी। सहमति के बावजूद जोधा अकबर को जल्दबाजी में रचना मुश्किल काम था। ऐतिहासिक शोध और तैयारी की जरूरत थी। आशुतोष बताते हैं, हैदर अली का विचार मुझे अच्छा लगा, लेकिन उस पर तुरंत फिल्म नहीं बनाई जा सकती थी। लगान के भुवन और स्वदेस के मोहन भार्गव तो मेरी रचना थे। मैंने उन्हें गढा था, इसलिए उनके चरित्र में आजादी ले सकता था। अकबर-जोधा को काल्पनिक तरह से नहीं रचा जा सकता था। ऐतिहासिक साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर ही उन्हें गढना था। मैंने शोध के लिए समय लिया। इस बीच स्वदेस पूरी की।

जोधा अकबर के शोध में लगभग दो साल लगे और 14 महीनों तक शूटिंग चलती रही। आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई ने मुंबई के पास स्थित कर्जत में आगरा के अकबर के किले का सेट लगाया। सेट इतना वास्तविक था कि आगरा निवासी अभिनेता राजबब्बर भी चकित रह गए। मध्यकाल के इस एपिक रोमैंस के पुनसर्ृजन में निर्माता-निर्देशक को हर तैयारी करनी पडी। कॉस्ट्यूम, सेट, संवाद, गीत-संगीत और फिल्मांकन में प्रामाणिकता और बारीकी का खयाल रखना पडा। आशुतोष गोवारीकर ने अपने क्षेत्र के माहिरों को फिल्म के लिए अनुबंधित किया। सभी ने अपनी जिम्मेदारी इस एहसास से निभाई कि वे बडी एवं महत्वपूर्ण फिल्म का हिस्सा हो रहे हैं। हिंदी में गिनी-चुनी ऐतिहासिक फिल्में हैं। ऐतिहासिक फिल्मों में पीरियड पर पूरा ध्यान देना पडता है। यह सावधानी भी रखनी पडती है कि तथ्यात्मक भूल न हो। जोधा अकबर की ऐतिहासिकता पर सवाल उठे। आशुतोष कहते हैं, अगर हम इतिहास का अध्ययन करें तो पाएंगे कि अकबर के समकालीन इतिहासकारों अबुल फजल और बदायूंनी ने भी विपरीत ढंग से तथ्यों की व्याख्या की है। इतिहास का पुनर्लेखन चलता रहता है। हर 50 साल पर ऐतिहासिक तथ्यों व साक्ष्यों को हम वर्तमान के संदर्भ में फिर से देखते हैं। मैंने फिल्म के निर्माण के पहले इतिहासकारों के साथ ही जोधा के राज परिवार से भी संपर्क किया। उन्हें स्क्रिप्ट दी और उनकी रजामंदी और हां के बाद ही हम आगे बढे। सच कहें तो भारत में ऐतिहासिक विषयों पर फिल्म बनाने से फिल्मकार हिचकते हैं। मालूम नहीं कौन कहां से आ खडा हो और फिल्म की प्रामाणिकता व व्याख्या पर सवाल खडा कर दे।

अलग सी प्रेम कहानी

आशुतोष विस्तार से बताते हैं, मैं रोमैंटिक लव स्टोरी बनाना चाहता था। लगान और स्वदेस बडी फिल्में थीं, लेकिन वे लव स्टोरी नहीं थीं। दोनों फिल्मों में रोमैंस मुख्य विषय नहीं था। मुझे 1562 की यह प्रेम कहानी अच्छी लगी कि कैसे अलग-अलग धर्म व संस्कृति के दो लोग साथ आए? उनके बीच कैसे प्रेम हुआ? यह चुनौती भी थी कि जिस पीरियड को हमने देखा नहीं है, उसे पर्दे पर कैसे उतारें? उस दौर के विजुअल साक्ष्य नहीं मिलते। इसमें मुझे नितिन देसाई और अन्य तकनीशियनों से सहायता मिली।

दर्शक याद करें तो धूम-2 के बाद ही जोधा अकबर आई थी। धूम-2 में रितिक रोशन और ऐश्वर्या राय आधुनिक भूमिकाओं में थे। आशुतोष गोवारीकर ने जोधा के लिए ऐश्वर्या राय और अकबर के लिए रितिक रोशन का चुनाव किया। वे बताते हैं, रितिक को मैं उनकी पहली फिल्म से ही देख रहा था। वे उम्दा ऐक्टर हैं। हमें फिल्म में रॉयल फील चाहिए था। उसके लिए अपने एज ग्रुप में रितिक से बेहतर चुनाव नहीं हो सकता था। ऐश्वर्या राय तो सौंदर्य की प्रतिमूर्ति हैं। उन्होंने पहले रेनकोट, चोखेर बाली या शब्द जैसी फिल्मों से यह संकेत दिया था कि वे प्रयोग के लिए तैयार हैं। यह सवाल उन दोनों ने भी पूछा था कि हम धूम-2 कर रहे हैं। कहीं उसकी इमेज का असर तो नहीं पडेगा? तब मैंने उन्हें आश्वस्त किया था। बाद में दर्शकों की स्वीकृति से जाहिर हुआ कि हमारा चुनाव उचित था।

भव्य सेट और कॉस्ट्यूम

फिल्म को वास्तविक लोकेशन पर शूट नहीं किया गया है। आशुतोष ने मशहूर आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई का सहयोग लिया। कर्जत में नितिन देसाई के एनडी स्टूडियो में ही फिल्म का भव्य सेट लगाया गया। इस संबंध में आशुतोष कहते हैं, हम आगरा और जयपुर में शूटिंग कर सकते थे, लेकिन शूटिंग लंबी हो जाती। सब जानते हैं कि आगरा का किला और जयपुर में आमेर का किला पर्यटन स्थल हैं। यहां हमेशा भीड रहती है। पर्यटन विभाग हमें रात में शूटिंग की मंजूरी देता तब भी रोज शाम को शूटिंग के सामान वहां ले जाने होते और सुबह होने पर उन्हें हटाना पडता। ऐसे में महीनों लगते और हमें केवल रात में शूटिंग करनी पडती। इन मुश्किलों को ध्यान में रखते हुए हमने नितिन देसाई को सेट खडा करने की सलाह दी। फिल्म का कॉस्ट्यूम ऑस्कर विजेता भानु अथैया की देखरेख में तैयार किया गया। फिल्म देखते समय तो पता नहीं चलता, लेकिन कोई अध्ययन करे तो पता चलेगा कि हिंदू रजवाडों की वेशभूषा और मुगलों की वेशभूषा के फर्क को हमने बरकरार रखा।

भव्य सेट और कॉस्ट्यूम

फिल्म के गीत-संगीत में पीरियड का भरपूर एहसास है। ए.आर. रहमान का संगीत दर्शकों को मध्यकाल में ले जाता है। रहमान और जावेद अख्तर की जोडी ने कर्णप्रिय गीत-संगीत की रचना की है। जावेद अख्तर के शब्दों में, मुझे आशुतोष ने कहा था कि मुगल पीरियड की फील के बावजूद गीतों के शब्द ऐसे न हों कि उनके अर्थ के लिए डिक्शनरी देखनी पडे। आज के गीत लिखना आसान काम है। 400-500 साल पहले का रोमैंस और वह भी मुगल एवं राजपूत घरानों के प्रेम की बातें करते समय हमें उनके स्टेटस और शालीनता का भी खयाल रखना था। आशुतोष कहते हैं, मुझे खुशी है कि फिल्म के संगीत को दर्शकों ने सराहा।

इस फिल्म के संगीत को सभी ने सराहा। लगान, स्वदेस और जोधा अकबर की वजह से हिंदी फिल्मों के इतिहास में आशुतोष का महत्व हमेशा रहेगा।

अजय ब्रह्मात्मज

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