सुहाग चिह्न दुलहन के सौभाग्य के लिए

हर राज्य की अपनी परंपराएं और रीति-रिवाज होते हैं। यही बात आभूषणों पर भी लागू होती है। हर राज्य के कुछ ़खास पारंपरिक गहने हैं जो विवाहित स्त्री की पहचान होते हैं। पंजाब, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, कश्मीर और उत्तराखंड में कौन से आभूषण हैं सुहाग के प्रतीक, जानें यहां।

By Edited By: Publish:Mon, 01 Oct 2012 04:17 PM (IST) Updated:Mon, 01 Oct 2012 04:17 PM (IST)
सुहाग चिह्न दुलहन के सौभाग्य के लिए

दुलहन के गहने सभी को लुभाते हैं। अलग-अलग राज्यों और संस्कृतियों में विवाह के समय वधू को पहनाए जाने वाले आभूषण भी अलग-अलग होते हैं। कुछ ख्ास गहने होते हैं जिन्हें सुहाग और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। जानें ऐसे ही कुछ गहनों के बारे में।

हर राज्य की अपनी परंपराएं और रीति-रिवाज होते हैं। यही बात आभूषणों पर भी लागू होती है। राज्य के कुछ खास पारंपरिक गहने हैं जो विवाहित स्त्री की पहचान होते हैं। पंजाब, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, कश्मीर और उत्तराखंड में कौन से आभूषण हैं सुहाग के प्रतीक, जानें यहां।

शाखा-पोला

बंगाली वधू के लिए अनिवार्य

बंगाली शादी में एक अनिवार्य आभूषण है शाखा-पोला। शादी वाले दिन सुबह के वक्त दोधी मंगल की यह रस्म निभाई जाती है। इसमें शंख से बनी चूडियों को हल्दी के पानी में डुबोया जाता है। सात सुहागिनें दुलहन को शाखा-पोला पहनाती हैं। इन्हें ईश्वर के सात रूपों का प्रतीक समझा जाता है। पहले यह प्रथा ग्ारीब मछुआरों में प्रचलित थी, जो महंगे आभूषण नहीं ख्ारीद पाते थे। पोला को शाखा व लोहे की चूडी (लोहा बंधानो) के बीच पहनाया जाता है। माना जाता है कि लोहे की चूडी सकारात्मक व नकारात्मक शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखती है।

(जैसा दिल्ली से सर्बनी बिस्वास ने बताया)

महाराष्ट्रीय दुलहन का प्रमुख गहना

मंगलसूत्र प्रमुख सुहाग चिह्न है मराठी वधू का। महाराष्ट्रियन विवाह में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार होता है शुभ मंगल सावधान, जिसमें लगभग 43 रस्में होती हैं। इसी में कुछ रोचक दस्तूर भी निभाए जाते हैं। वर मंत्रोच्चार के बीच वधू के गले में मंगलसूत्र पहनाता है। सप्तपदी या फेरों के बाद वर-वधू को आमने-सामने खडा किया जाता है और दोनों अपने सिर से एक-दूसरे का सिर छूते हैं। इसका अर्थ है कि दोनों एक-दूसरे की तरह सोचेंगे और गृहस्थ जीवन का हर निर्णय मिलकर लेंगे। महाराष्ट्र के अलावा दक्षिण भारतीय शादी में भी मंगलसूत्र दुलहन के लिए ज्ारूरी सुहाग-चिह्न है। यहां मंगलसूत्र में मां लक्ष्मी का गोल्ड पेंडेंट लगा होता है।

(जैसा मुंबई से ऋचा तांडेकर ने बताया)

अठ् और डेजहोर

कश्मीरी वधू का सुहाग अठ् और डेजहोर

कश्मीरी सुहागिन स्त्री का महत्वपूर्ण आभूषण है अठ् और डेजहोर, जिसे आम भाषा में अठेरु भी कहते हैं। अठ् सोने की लंबी चेन होती है और डेजहोर चेन के अंतिम सिरे पर बना गोल्ड पेंडेंट। इस चेन को कान के भीतरी हिस्से में पियर्सिग करके पहना जाता है, जिसमें नीचे की तरफ गोल्ड पेंडेंट लटकता है। कश्मीरी पंडितों में इसकी महत्ता मंगलसूत्र की तरह है। पाणिग्रहण या सप्तपदी से पहले होने वाले देवगुन संस्कार के समय अठेरु पहनाया जाता है। यह आभूषण हमेशा सोने का ही बनाया जाता है और इसे सोने का ही होना भी चाहिए। क्योंकि स्वर्ण को धातुओं में सबसे शुद्ध माना जाता है।

(जैसा जम्मू से यामिनी कौल ने बताया)

नथ

उत्तराखंड में है स्टेटस सिंबल

उत्तराखंड की शादियों में नथ एक स्टेटस सिंबल है। ससुराल पक्ष से लडकी को जितनी बडी सोने की नथ मिलती है, ससुराल का रुतबा उतना ही ज्यादा होता है। साहित्यकार स्व. विद्यासागर नौटियाल की एक मार्मिक कहानी मूक बलिदान पर नथ नामक हिंदी टेलीफिल्म भी बनी थी। नथ के बाद गुलूबंद या चरेऊ भी सुहागिन स्त्रियों की पहचान है। चरेऊ काली मोतियों में गुंथी लंबी माला होती है। मोतियों के बीच सोने के छोटे-छोटे पैटर्न बने होते हैं और इसमें गोल्ड पेंडेंट होता है। इसे अविवाहित लडकियां नहीं पहन सकतीं। गुलूबंद गले से सटा कर पहना जाने वाला नेकलेस है। उत्तराखंड में हर विवाहित स्त्री के लिए चरेउ-मंगलसूत्र या गुलूबंद हमेशा पहने रहना अनिवार्य है।

(जैसा रुद्रपुर (उधम सिंह नगर) से कनिका रावत ने बताया)

बिछिया

सुहाग-निशानी बिहार और यूपी में बिहार में वधू के सुहाग की प्रतीक है बिछिया, जिसे उसके मायके से दिया जाता है। इसे अविवाहित लडकियां नहीं पहन सकतीं। शादी के मंडप में सिंदूरदान और फेरों के बाद लडकी की भाभी उसे बिछिया पहनाती है। पैर की चारों उंगलियों सहित अंगूठे में भी चांदी के रिंग्स पहनाए जाते हैं। अंगूठे में पहनाए जाने वाले रिंग को अनवट कहा जाता है। ये सभी गहने (बिछिया और अनवट) लडकी के ननिहाल से आते हैं। अनवट को विवाह के कुछ दिन बाद उतारा जा सकता है। धार्मिक आयोजनों में इसे पहना जाता है, लेकिन दो उंगलियों में बिछिया पहनना हर सुहागिन के लिए ज्ारूरी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी यह ज्ारूरी है।

(जैसा पटना से किरण सिन्हा ने बताया)

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