खुशियां किस्तों में

ईएमआइ तीन अक्षरों के इस छोटे से शब्द ने पिछले दो दशकों में हमारी जीवनशैली को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है। ़िकस्तों में ची•ाों की ़कीमत चुकाने की सुविधा ने जहां एक ओर हमारा जीवन आसान बनाया है, वहीं इससे मुश्किलें भी बढ़ी हैं। क्या ़कर्•ा लेकर सारी ख़्ाुशियां ख़्ारीदी जा सकती हैं, कहीं इससे हमारा सुकून तो नहीं छिन रहा, क्या हम ़कर्•ा के इस चक्रव्यूह से बाहर निकल पाएंगे? कुछ विशेषज्ञों और मशहूर शख़्सीयतों के साथ इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढ रही हैं विनीता।

By Edited By: Publish:Thu, 01 Nov 2012 02:48 PM (IST) Updated:Thu, 01 Nov 2012 02:48 PM (IST)
खुशियां किस्तों में

एक रेस्टरां के बाहर लगे बोर्ड पर लिखा था-जी भरकर खाएं, बिल आपका पोता देगा, यह देखकर एक व्यक्ति ने अपनी मनपसंद चीजों का आर्डर दिया और खाने के बाद जब वह बाहर जाने के लिए उठने लगा तो वेटर ने उसके सामने बिल लाकर रख दिया। उसने अचरज से पूछा, यह क्या है? वेटर ने शालीनता से कहा, आपके दादा जी का बिल!

कर्ज से मिली सुविधा के उपभोग और िकस्तों में उसके भुगतान का मामला भी कुछ इस लतीफे जैसा ही है।

कर्•ा और िकस्तों का साथ

फिर भी लोग धडल्ले से लोन ले रहे हैं। इसके सिवा उनके पास कोई दूसरा चारा भी तो नहीं है। आख्िार आज के युवाओं को करियर के शुरुआती वर्षो में ही वेल फर्निश्ड घर, कार और आरामदायक लाइफस्टाइल जो चाहिए। इस संबंध में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत पंकज शर्मा कहते हैं, आज 27 वर्ष की उम्र में मेरी गृहस्थी अच्छी तरह सेट हो गई है। हमने मिलकर होम लोन लिया है। हम दोनों की सेलरी से प्रतिमाह बीस-बीस हजार रुपये की ईएमआइ (इक्वेटेड मंथली इंस्टॉलमेंट) कटती है। इससे हमें इन्कम टैक्स में भी छूट मिल जाती है।

संतोषम् परमम् सुखम्?

कर्ज अपने साथ मुसीबतें लेकर आता है। उधार प्रेम की कैंची है। आज नकद, कल उधार, संतोषम् परमम् सुखम्, चादर देखकर पैर फैलाने की कोशिश करनी चाहिए..न जाने ऐसी कितनी ही कहावतें भारतीय जनमानस में सदियों से रची-बसी हैं। अब तक हमारी संस्कृति में उधार और दिखावे की प्रवृत्ति गलत समझी जाती रही है, पर आज पूरा परिदृश्य बदल गया है। बैंक कहने लगे हैं कि हमें आपका ख्ायाल है तभी तो आपको आसान िकस्तों पर कर्ज देते हैं। सारी कंपनियां ग्राहकों को बुला-बुलाकर कह रही हैं, नकद की चिंता छोडो आज ही उधार ले जाओ, वो भी बिना किसी ब्याज के। अगर चादर छोटी है तो डरो मत, पहले पैर तो फैलाओ बडी चादर भी आ जाएगी। बाजारवाद नए जमाने के उपभोक्ताओं से कह रहा है, पहले अपने बच्चों को ख्ार्च करना सिखाओ, कमाना उन्हें अपने आप आ जाएगा। अब तक यही माना जाता था कि कर्ज लेना मजबूरी और शर्म की बात है, पर कर्ज-उधार अब मजबूरी नहीं, बल्कि जरूरत बन चुका है। कर्ज लेने वाले शरमाते नहीं, बल्कि लोगों को गर्व से बताते हैं, मेरी तो 50-50 हजार की दो-दो ईएमआइ चल रही है। अब लोन से लोगों की हैसियत आंकी जाती है, जितना बडा कर्जदार उतना मालदार। बैंक भी लोगों की आमदनी का जरिया और उनकी लोन चुकाने की क्षमता को देखकर ही लोन देते हैं। क्या आज के दौर में आप संतोषम् परमम् सुखम् के दर्शन पर यकीन रखते हैं ? यह पूछने पर एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत नितिन गर्ग कहते हैं, कतई नहीं। जिस दिन हम इस दर्शन को अपनाएंगे उसी दिन से हमारे लिए विकास के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे। जो है, जितना है उसी में ख्ाुश रहने वाला इंसान जीवन को बेहतर बनाने की कोशिशें बंद कर देता है। अपने पास जितना है उससे कुछ और ज्यादा पाने लालसा हर इंसान के दिल में होनी चाहिए। तभी वह ज्यादा मेहनत कर पाएगा। संतोषम् परमम् सुखम् का सिद्धांत संतों के लिए तो ठीक हो सकता है, पर हमारे जैसे सांसारिक लोगों का इससे गुजारा नहीं चलने वाला। हमारी आमदनी सीमित है और ख्ार्च बहुत ज्यादा। रोजमर्रा की जरूरत की चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं। उन्हें हम किसी तरह कतर-ब्योंत करके पूरी कर लेते हैं, लेकिन जब हमें अपने घर के लिए फ्रिज या एसी जैसा कोई बडा सामान खरीदना हो तो उसके लिए हमारे पास पैसे कहां से आएंगे? ऐसे में िकस्तों पर चीजें खरीदना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है।

आदत पड गई है अब

िकस्तों पर प्रॉपर्टी, कार या दूसरे महंगे घरेलू उपकरण ख्ारीदना कुछ लोगों को इस दृष्टि से भी फायदेमंद लगता है कि एक बार में किसी महंगे सामान का पेमेंट करने से पूरे महीने का बजट हिल जाता है, लेकिन हर महीने छोटी-छोटी िकस्तों में भुगतान करने पर अगर हमें सौ रुपये की किसी चीज के लिए डेढ सौ रुपये भी चुकाने पडे तो खलता नहीं है। संदीप पेशे से आर्किटेक्ट हैं। वह कहते हैं, मैं बहुत सोच-समझकर क्रेडिट कार्ड से चीजें ख्ारीदता हूं और सही समय पर उनका भुगतान कर देता हूं। मुझे इससे आज तक कोई समस्या नहीं हुई। जब लोग बिना सोच-समझे क्रेडिट कार्ड का बेहिसाब इस्तेमाल करके भुगतान में देर करते हैं तो बाद में उन्हें फाइन सहित पेमेंट करना पडता है। फिर ऐसे में वे क्रेडिट कार्ड को दोष देते हैं। मैंने कार से लेकर कैमरा तक सारी चीजें ईएमआइ की जरिये ही ख्ारीदी हैं। जैसे ही किसी एक चीज की िकस्तें कटनी बंद हो जाती हैं। मैं किस्तों पर कोई दूसरी नई चीज उठा लाता हूं। ईएमआइ बिलकुल नए जूते की तरह होता है जो, शुरुआत में थोडी तकलीफ जरूर देता है पर बाद में हमें इसकी आदत पड जाती है।

दिल मांगे और

देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन के बाद आकर्षक सेलरी पैकेज से युवा वर्ग की परचेजिंग पावर अचानक बढ गई है। जब हाथों में पैसे हों तो उन्हें ख्ार्च करने की व्यग्रता भी बढ जाती है। आज अपने देश में हर तरह के विदेशी ब्रैंड मौजूद हैं। शो विंडो में सजी चीजें देखकर मन ललचाए और जेब में कैश न हो तो घबराना कैसा? नकद पैसे देकर चीजें ख्ारीदना या किसी रेस्टरां का बिल चुकाना अब आउट ऑफ फैशन हो गया है। डेबिट कार्ड से बिल चुकाएं, अगर अभी अकाउंट में पैसे न हों तब भी चिंता किस बात की? क्रेडिट कार्ड जिंदाबाद। बाजार ने युवा वर्ग की यह नब्ज पकड ली है। अब बाजार वाद का एकमात्र नारा है-जरूरत न हो तो भी युवाओं के लिए रोज नई जरूरतें पैदा करो। शॉपिंग उनका प्रिय शगल बन चुका है। बस, उन्हें रिझाते रहो। वे ख्ाुद-ब-ख्ाुद तुम्हारी चंगुल में आकर फंसेंगे। इसी समस्या पर कुछ साल पहले एक फिल्म बनी थी- ईएमआइ। जिसमें संजय दत्त ने एक रिकवरी एजेंट सत्तार भाई की भूमिका निभाई थी। उनका यह डायलॉग बडा चर्चित हुआ था, लोन लिया है तो चुकाओ, शादी की है तो निभाओ, इस फिल्म में ईएमआइ की वजह से आने वाली मुश्किलों का सटीक विश्लेषण किया गया था।

हम किसी से कम नहीं

अब सवाल यह उठता है कि आख्िार पिछले दस-पंद्रह वर्षो में ऐसी क्या बात हुई, जिसकी वजह से लोग अंधाधुंध ख्ार्च करने लगे। इसके जवाब में आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ डॉ. एस. सी. शर्मा कहते हैं, अर्थशास्त्र में इसे डेमॉन्स्ट्रेशन इफेक्ट कहा जाता है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो अब लोग अपना रूखा-सूखा खा कर ठंडा पानी पीने वाले दर्शन में यकीन नहीं रखते। अब वे दूसरों की घी चुपडी रोटी देखकर सिर्फ ललचाते ही नहीं, बल्कि उसे पाने के लिए जी-जान लगा देते हैं। यही प्रवृत्ति लोगों को बेवजह ज्यादा ख्ार्च करने के लिए प्रेरित कर रही है। बाजार से चीजें ज्यादा ख्ारीदी जा रही हैं। इसे हम अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत मान सकते हैं, पर लंबे समय में इंसान पर इसका नकारात्मक असर पडेगा। उधार का चस्का बहुत बुरा होता है। शुरुआत में तो यह मजा देता है, पर बाद में सजा बन जाता है। बिजनेस क्लास की बात और होती है, उनके बिजनेस में उधार का हिसाब-िकताब अलग ढंग से चलता है। उनका उधार किसी दूरगामी फायदे के लिए होता है, लेकिन जब सीमित आय वाला नौकरीपेशा व्यक्ति क्रेडिट कार्ड से बेतहाशा महंगी ब्रैंडेड चीजों की शॉपिंग करे तो यह उसके लिए घातक साबित होगा। अमेरिका की अर्थव्यवस्था इसका सबसे बडा उदाहरण है। वहां के बैंकों ने लोगों में उधार की प्रवृत्ति को बढावा देने के लिए मिनिमम मार्जिन मनी की सीमा हटा कर चीजों के लिए शत-प्रतिशत फाइनेंसिंग शुरू कर दी। नतीजा यह हुआ कि लोगों ने बिना सोचे-समझे ख्ाूब लोन ले लिया। फिर मंदी के दौर में जब नौकरियां जाने लगीं तो बेहद भयावह स्थिति पैदा हो गई। वहां कर्ज की वजह से डिप्रेशन और आत्महत्या के मामले तेजी से बढने लगे।

नींद बेच कर ख्ारीदी खाट

जब सब कुछ ज्यादा और जल्दी चाहिए तो हमें उसकी कीमत भी उसी हिसाब से चुकानी पडेगी। एक विज्ञापन एजेंसी में कार्यरत रश्मि रावत कहती हैं, हमारी शादी को तीन साल हो चुके हैं, लेकिन फ्लैट और कार की ईएमआइ की वजह से हम अभी तक बच्चे के बारे में सोच नहीं पा रहे। हमारे आने-जाने का कोई समय निश्चित नहीं है। एक ही घर में रहते हुए हमें एक-दूसरे से बातें करने का भी वक्त नहीं मिलता और जब बात होती है तो झगडा ही हो जाता है। मेरे पति 28 साल की उम्र में ही हाई ब्लडप्रेशर के मरीज बन चुके हैं। अपने घर में सुकून से रहने के लिए इतनी मेहनत करके हमने सारी सुविधाएं जुटाई, आज हमारे पास सब कुछ है, पर मन का चैन नहीं है। ऐसा लगता है कि हम सिर्फ कर्ज चुकाने के लिए जी रहे हैं। हमारी हालत नींद बेच कर खाट ख्ारीदने वाले इंसान जैसी हो गई है।

रिश्तों में बढती दूरियां

पैसा इंसान की जरूरतें पूरी करने के लिए होता है, लेकिन जब इंसान सब कुछ भूलकर स्वयं को पैसे का गुलाम बना ले तो यह गुलामी उसका आत्मविश्वास कमजोर कर देती है। मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. अशुम गुप्ता कहती हैं, ईएमआइ कल्चर लोगों को तेजी से वर्कोहॉलिक बना रहा है। कर्ज चुकाने के लिए किसी भी तरह ज्यादा पैसे कमाने की होड लोगों को इतना थका देती है कि इससे उनके व्यवहार में चिडचिडेपन के साथ शारीरिक स्वास्थ्य में भी गिरावट आ रही है। युवा दंपतियों की सेक्स लाइफ खत्म होती जा रही है। पहले दंपतियों के जीवन में माता-पिता और रिश्तेदारों के हस्तक्षेप के कारण समस्या आती थी, पर अब अति व्यस्तता की वजह से रिश्तों में तनाव बढ रहा है।

दिशाहीन मध्यवर्ग

मध्यवर्ग किसी भी समाज की दिशा निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि इससे नीचे वाला तबका इसी की जीवनशैली का अनुसरण करता है। समाजशास्त्री डॉ. ऋतु सारस्वत कहती हैं, आज कम आय वर्ग वाले लोग भी अपने ऊपर हैसियत से बढ कर चीजें ख्ारीदने का दबाव महसूस करने लगे हैं। यह दबाव इंसान को कमजोर बना कर उसे गैरजरूरी समझौतों और भ्रष्टाचार की ओर ले जा रहा है। कर्ज दीमक की तरह समाज को खोखला कर रहा है। इसलिए अब इस आदत पर लगाम लगाना जरूरी है।

तब भी पूरी होती थीं •ारूरतें

पुराने जमाने के लोग तो कर्ज के नाम से भी घबराते हैं। इस संबंध में अवकाश प्राप्त आइएएस अधिकारी राजेंद्र शर्मा कहते हैं, पहले कम वेतन में भी बिना किसी कर्ज-उधार के लोगों की सारी जरूरतें पूरी होती ही थीं। पत्नी ने बडी िकफायत से एक-एक पैसा बचा कर गृहस्थी चलाई। तब मैं अपने दो बेटों को डॉक्टर बना पाया और बेटियों की शादी की, पर एक पैसा भी कर्ज नहीं लिया। आज जब मैं अपने बेटों को एक साथ दो-तीन चीजों की िकस्तें चुकाते देखता हूं तो मुझे बहुत चिंता होती है। निजी कंपनियों की नौकरियों का कोई भरोसा नहीं होता। अगर उन्हें थोडे समय के लिए भी बिना जॉब के रहना पडे तो वे अपनी चीजें कैसे मैनेज करेंगे? मैं उन्हें समझाने की कोशिश करता हूं तो वे हंस कर टाल देते हैं। ..लेकिन हंस कर टाल देना किसी समस्या का समाधान नहीं है। अब हमें बेतहाशा ख्ार्च करने की आदतों को नियंत्रित करने और ईएमआइ की सुविधा के संतुलित इस्तेमाल करने पर विचार करना चाहिए। अन्यथा, हम भी अपनी आने वाली पीढियों पर बहुत बडा कर्ज छोड जाएंगे।

गले का फांस न बन जाए लोन

संदीपनाथ, गीतकार

मैंने हाल ही में मुंबई में फ्लैट ख्ारीदा है और इसके लिए मुझे भी लोन लेना पडा। हर महीने हमारा बजट ईएमआइ के अनुसार निर्धारित होता है। अपने अनुभवों के आधार पर मैं यही कह सकता हूं कि किसी भी व्यक्ति को उतना ही कर्•ा लेना चाहिए, जितना वह आसानी से चुका सके। ब्याज से ही बैंकों की कमाई होती है, इसलिए वे तो यही चाहते हैं कि ग्राहक का लोन लंबे समय तक चलता रहे, पर आप जितनी ज्यादा रकम कटवा कर अपनी िकस्तें चुकाएंगे, आपको उतना ही कम ब्याज देना पडेगा। मैं क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करता हूं, लेकिन सोच-समझकर। मैं झूठे दिखावे में यकीन नहीं रखता। आज होम लोन से लाखों लोगों के सपने साकार हो रहे हैं। यह अच्छी बात है, लेकिन लोन लेते समय इस बात का ध्यान •ारूर रखें कि वह गले का फांस न बन जाए।

ईमानदारी से भरती हूं टैक्स

रतन राजपूत, टीवी कलाकार

जब तक बहुत •ारूरी न हो मैं कर्•ा लेना अच्छा नहीं मानती। हालांकि, लोन आज के •ामाने की •ारूरत बन चुका है और एक सीमा तक इसमें कोई बुराई नहीं है। मेरे कई ऐसे साथी हैं, जिन्होंने बैंक से होम लोन लेकर फ्लैट ख्ारीदा है और हर महीने उसकी िकस्तें चुका रहे हैं। इससे आम लोगों के सपने साकार हो रहे हैं। बचपन से मैं यही सुनती आ रही हूं कि चादर जितनी बडी हो, पैर उतना ही फैलाना चाहिए। इसलिए मुझे यह स्वीकारने में कोई झिझक महसूस नहीं होती कि मैं बहुत सोच-समझकर ख्ार्च करती हूं, ताकि सीमित आय में मेरी सारी •ारूरतें पूरी हो जाएं। कुछ लोग इन्कम टैक्स बचाने के लिए होम लोन का इस्तेमाल करते हैं। मैं इसके पक्ष में नहीं हूं और पूरी ईमानदारी से आयकर भरने में यकीन रखती हूं। अगर मुझे पैसों की •ारूरत हुई तो पहले मैं अपने परिवार के ही किसी सदस्य से उधार मांग काम चलाने की कोशिश करूंगी, ताकि मुझे ब्याज न भरना पडे। जब इससे भी काम नहीं चलेगा तभी मैं किसी बैंक के पास जाऊंगी। मैं तो अपने पास क्रेडिट कार्ड भी नहीं रखती। मुझे यह सब संभालना बडे झंझट का काम लगता है। मेरे पास जितना है, उसी में ख्ाुश और संतुष्ट हूं।

लोन और क्रेडिट कार्ड जैसी चीजें आज की जमाने की जरूरत बन गई हैं क्योंकि आज के युवक करियर के शुरुआती दौर में ही सब कुछ पा लेना चाहते हैं। बंगला, गाडी, महंगे इलेक्ट्रॉनिक गै•ोट्स. उन्हें सब कुछ हर हाल में चाहिए। ऐसे में लोन ही सारे सपने साकार कर सकता है। मैंने अभी तक तो लोन नहीं लिया, पर मौका आया तो जरूर लूंगा। मैंने कई बार के्रडिट कार्ड का इस्तेमाल किया है, लेकिन अभी तक मुझे कोई दिक्कत नहीं आई। जो भी सुविधा आपको दी जाती है अगर उसका इस्तेमाल सही ढंग से किया जाए तो परेशानी कभी नहीं होगी। वैसे मुझे लगता है कि जब कुछ खरीदने जाऊं तो मेरा वॉलेट हमेशा कैश से भरा हो। मैं अपने साथ हमेशा कैश रखता हूं। यंगस्टर्स से यही कहना चाहूंगा कि वे अपनी चाहतें पूरी जरूर करें, लेकिन दूसरों की देखा-देखी बेवजह पैसे न उडाएं। आपके पास जितना है उसी में खुश रहने की कोशिश करें।

लोन ने ऊंचा सोचना सिखाया

प्राची देसाई, अभिनेत्री

हमारी संस्कृति कहती है-संतोषम् परमम् सुखम्। यह अच्छी बात है, लेकिन बडा बनने के लिए कुछ एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी ची•ों हासिल करना •ारूरी है। इसके लिए आपको आक्रामक बनना पडता है। कुछ जोख्िाम भी उठाने पडते हैं। एजुकेशन और होम लोन ने मिडिल क्लास के सपनों को साकार किया। जब तक आप कुछ अलग हट कर नहीं करेंगे, साधारण ही बने रहेंगे। लोन ने लोगों में उद्यमिता की प्रवृत्ति को भी बढावा दिया है। भारतीय समाज के लिए यह बहुत अच्छा बदलाव है।

दुधारी तलवार है कर्•ा

सौरभ शुक्ला, अभिनेता

नौवें दशक में भारत की आर्थिक नीतियों में बडे बदलाव हुए। लोन कल्चर हमारी इकोनॉमी का हिस्सा बन गया। इसने कई तरीके से लोगों को फायदा पहुंचाया तो कई िकस्म के नुकसान भी हुए। आम आदमी की ख्वाहिशें जागीं। आसानी से लोन मिलने पर उसने शानो-शौकत की चीजें ख्ारीदनी शुरू कीं। वह व‌र्ल्ड क्लास लिविंग स्टाइल से रू-ब-रू हुआ। जानने लगा कि दुनिया में लोग किस लेवल का स्टैंडर्ड मेंटेन कर रहे हैं। वह भी उसी राह पर चल पडा। भारतीय उपभोक्ताओं का बदलता रुझान देखकर दुनिया भर के बैंकों ने भारत का रुख्ा करना शुरू किया। इससे पैसे का सर्कुलेशन बढा। आम आदमी में निवेश की प्रवृत्ति विकसित हुई, लेकिन लोन की िकस्तें चुकाने के चक्कर में उसकी मुश्किलें भी बढ गई। सचमुच, यह दुधारी तलवार है।

हम फिर से गुलाम हो गए अमोल गुप्ते, निर्देशक मेरे ख्ायाल से लोन कल्चर ने लोगों को फिर से गुलाम बना दिया है। पहले बैंक लोगों को बहला-फुसलाकर लोन देते हैं, फिर 10 या 16 साल की िकस्तें बनाकर हमें ताउम्र बंधुआ बना देते हैं। फिर हम अपने अंदा•ा में जीने के लिए नहीं, बल्कि कर्•ा चुकाने के लिए काम करते हैं। मेरी फिल्म वन इडियट इसी मुद्दे पर आधारित है। इसमें दिखाया गया है कि एक आम आदमी लोन के भंवर में फंस कर किस तरह अपनी •िांदगी तबाह कर लेता है।

याद रखें कुछ •ारूरी बातें

- होम लोन के लिए निजी के बजाय सरकारी बैंक का चुनाव ज्यादा बेहतर साबित होता है क्योंकि इसमें हिडन चार्जे•ा नहीं होते और प्री-पेमेंट पर कोई अतिरिक्त शुल्क भी नहीं देना पडता।

- होम लोन लेते समय इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि आपकी ईएमआइ टेक होम सेलरी के 40च् से ज्यादा न हो।

- होम लोन के ब्याजदर के मामले में बैंक अपने ग्राहकों को दो तरह के विकल्प देता है-फिक्स्ड और फ्लोटिंग। जब बा•ार की स्थितियां अनिश्चित हों तो फिक्स्ड ब्याज दर का ही चुनाव करना चाहिए। इससे दरें बढने पर भी कोई नुकसान नहीं होगा।

- बैंक हमेशा यही चाहते हैं कि ग्राहक लोन का भुगतान धीरे-धीरे करे, ताकि उसे ब्याज मिलता रहे, पर फायदा इसी में है कि आप अपना बजट देखते हुए शीघ्र लोन चुकाने की कोशिश करें।

- होम या एजुकेशन लोन के मामले में सिर्फ एजेंट पर भरोसा न करें क्योंकि लोन दिलाने के नाम पर ग्राहकों से धोखाधडी के भी कई मामले सामने आए हैं। बेहतर यही होगा कि लोन लेने से पहले संबंधित बैंक के ब्रांच में ख्ाुद जाकर सारी जानकारी हासिल करें।

- क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल से पहले संबंधित बैंक के नियमों और शर्तो को उसकी वेबसाइट पर ध्यान से पढें।

- क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि उसका बिल आपकी मासिक आय के 20च् से ज्यादा न हो।

- क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते समय कुछ लोग यह भूल कर देते हैं कि वे हर महीने बैंक द्वारा निर्धारित न्यूनतम राशि का तो भुगतान कर देते हैं और सोचते हैं कि ख्ारीदे गए सामान की कीमत का बाद में भुगतान हो जाएगा। इससे उनकी मूल देनदारी कम नहीं होती और ब्याज भी बढता जाता है। इसलिए बैंक द्वारा निर्धारित 30 या 35 दिनों की अवधि के भीतर ही सारी बकाया राशि का भुगतान कर देना चाहिए।

- डेबिट कार्ड की तरह क्रेडिट कार्ड से भी एटीएम से पैसे निकालने की भी सुविधा मिलती है, पर इस पर 4च् तक कैश एडवांस चार्ज लगता है और इसका वार्षिक ब्याज 49च् तक भी जा सकता है। ध्यान रहे कि क्रेडिट कार्ड से पैसे निकालने पर क्रेडिट पीरियड की कोई छूट नहीं मिलती, बल्कि उसी दिन से ब्याज लगना शुरू हो जाता है। अत: पैसे निकालने के लिए क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल हमेशा आखिरी विकल्प के रूप में करना चाहिए।

- अगर क्रेडिट कार्ड का बिल ज्यादा हो तो उसे जल्द से जल्द चुका कर कैंसल कर दें और नया क्रेडिट कार्ड बनवाएं।

- आकस्मिक •ारूरत पडने पर ही क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करें, अन्यथा डेबिट कार्ड ज्यादा सुरक्षित विकल्प है।

(निवेश सलाहकार कमलाकर मिश्र से बातचीत पर आधारित)

इंटरव्यू : मुंबई से अमित कर्ण, दिल्ली से रतन एवं इला श्रीवास्तव

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