विलुप्त ना हो जाए मेवाड़ की पहली राजधानी नागदा की संपदा, यहां मौजूद है 1100 साल पुरानी सास-बहू मंदिर

उदयपुर से लगभग 23 किलोमीटर आगे एकलिंगजी मार्ग पर वर्तमान में यह छोटा सा गांव है जहां 11 वीं सदी का विश्व विख्यात सहस्त्रबाहू का मंदिर है जिसे सास-बहू का मंदिर भी कहा जाता है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Mon, 06 May 2019 01:01 PM (IST) Updated:Mon, 06 May 2019 01:01 PM (IST)
विलुप्त ना हो जाए मेवाड़ की पहली राजधानी नागदा की संपदा, यहां मौजूद है 1100 साल पुरानी सास-बहू मंदिर
विलुप्त ना हो जाए मेवाड़ की पहली राजधानी नागदा की संपदा, यहां मौजूद है 1100 साल पुरानी सास-बहू मंदिर

उदयपुर, सुभाष शर्मा। मेवाड़ के चौथे राणा नागादित्य द्वारा छठवीं शताब्दी में स्थापित किया गया नागदा शहर जो बगेला झील के किनारे बसा था और जिसे मेवाड़ की प्रथम राजधानी माना जाता है, इन दिनों यहां सन्नाटा पसरा रहता है। जहां कभी राजा-महाराजाओं के गढ़ हुआ करते थे, वह बिखर चुके हैं और मेवाड़ की कई धरोहरें, प्राचीन प्रतिमाएं आज भी जहां-तहां बिखरी पड़ी है लेकिन संरक्षण के अभाव में जीर्ण-शीर्ण हालत में होती जा रही है। इसे संरक्षित नहीं किया गया तो यह सब पुरा संपदा विलुप्त हो जाएगी।

उदयपुर से लगभग 23 किलोमीटर आगे एकलिंगजी मार्ग पर वर्तमान में यह छोटा सा गांव है, जहां 11 वीं सदी का विश्व विख्यात सहस्त्रबाहू का मंदिर है जिसे सास-बहू का मंदिर भी कहा जाता है। मेवाड़ की पहचान रहे इस कस्बे के हालात देखकर इतिहासविद्, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रबुद्धजन सभी गंभीर चिंता जताते हैं। पिछले दिनों नागदा की दशा और दिशा को लेकर इतिहासकारों ने अपनी चिंता जिला प्रशासन के समक्ष जताई और इसे संरक्षित करने की मांग भी की।

भारतीय संस्कृति, स्थापत्य कला, मूर्तिकला और तक्षित पाषाण की दृष्टि से यह मेवाड़-राजस्थान का ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष का महत्वपूर्ण स्थल है। जहां आठवीं और दसवीं शताब्दील के मंदिरों में ज्यादातर अमूल्य सामग्री विलुप्त हो चुकी है। इसके बावजूद आज भी यहां बहुत कुछ है।

इस गांव में मौजूद पुरा संपदा को लेकर इतिहासकार डॉ. राजशेखर व्यास कहते हैं कि सरकार और समाज को आगे बढक़र बचे हुए मंदिरों और मूतियों के संरक्षण के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए। इनका जीर्णाेद्धार कराने के लिए आगे आना चाहिए। इस कस्बे में सास-बहू मंदिर, खुम्माण रावल देवल तथा परकोटे के अवशेष मेवाड़ के तेरह सौ साल के गौरवमयी इतिहास के गवाह हैं। यहां आदिबुद्ध मंदिर मौजूद है, जिसे अद्भुतजी कहते हैं। जिसके परिसर में कई मूल्यवान मूर्तियां बेतरतीब ढंग से पड़ी हुई है। यह क्षेत्र बौद्ध, जैन और सनातन संस्कृतियों को लेकर विश्व विख्यात रहा है।

यहां मौजूद है सास-बहू मंदिर

नागदा की पहचान सास-बहू मंदिर के लिए भी है। इतिहासकार बताते हैं कि अन्य कहीं ऐसा नहीं जहां सास और बहू के लिए मंदिर बनाया गया है। इस मंदिर का निर्माण 1100 साल पहले कच्छपघात राजवंश के राजा महिपाल और रत्नपाल ने बनवाया था। बड़ा मंदिर मां के लिए और छोटा मंदिर अपनी रानी के लिए बनवाया था। तब से ही ये मंदिर सास-बहू के नाम से मशहूर हो गया था।

इस मंदिर में भगवान विष्णु की 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी सौ भुजाओं वाली मूर्ति लगी हुई थी, जिसकी वजह से इस मंदिर को सहस्त्रबाहू मंदिर भी कहा जाता है। जब दुर्ग पर मुगलों ने कब्जा किया था, तो उन्होंने दोनों सास-बहू मंदिर में लगी प्रतिमाओं को खंडित कर दिया था और उसी समय मंदिर को चूने और रेत से भरवाकर बंद करवा दिया था। तब से ही ये मंदिर एक रेत के टापू जैसे लगने लगा था। लेकिन 19वीं सदी में जब अंग्रेजों ने दुर्ग पर कब्जा किया तो उन्होंने इस मंदिर को दोबारा आम लोगों के लिए खुलवाया।  

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