पर्यावरण के लिए गुरबचन जैसा जज्‍बा जरूरी, ऐसी जगह नहीं करते बच्चों की शादी

यदि पर्यावरण को बचाना है तो तरनतारन के किसान गुरबचन सिंह जैसा जज्‍बा जरूरी है। गुरबचन खुद तो पराली नहीं जलाते, दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Tue, 09 Oct 2018 12:35 PM (IST) Updated:Tue, 09 Oct 2018 01:31 PM (IST)
पर्यावरण के लिए गुरबचन जैसा जज्‍बा जरूरी, ऐसी जगह नहीं करते बच्चों की शादी
पर्यावरण के लिए गुरबचन जैसा जज्‍बा जरूरी, ऐसी जगह नहीं करते बच्चों की शादी

तरनतारन, [धर्मबीर सिंह मल्हार]। य‍दि पर्यावरण को बचाना है तो तरनतारन के गांव बुर्ज देवा सिंह के किसान गुरबचन सिंह जैसा जज्‍बा होना जरूरी है। गुरबचन 40 एकड़ जमीन के मालिक हैं। वह वर्ष 2000 में धान की कटाई के बाद पराली को आग लगाने से तौबा कर चुके हैं। 2008 से पराली न जलाने के इतने अच्छे नतीजे आने लगे कि उन्होंने फैसला किया कि अपने बच्चों की शादी वहीं करेंगे, जहां पराली को आग नहीं लगाई जाती।

पट्टी के बुर्ज देवा सिंह के किसान गुरबचन सिंह पराली जलाने वाले गांव में बच्‍चों का रिश्‍ता

गुरबचन सिंह ने अपने बड़े बेटे गुरदेव सिंह का रिश्ता उस घर में किया, जिन्होंने पराली न जलाने का संकल्प लिया। आने वाले दिनों में गुरबचन सिंह अपनी लड़की की शादी भी उसी घर में करने जा रहे हैं, जिस परिवार ने उनकी बेटी को बहू बनाने से पहले ही पराली न जलाने की कसम ली है। गुरबचन सिंह अपनी बेटी के लिए नई हैप्पी सीडर मशीन भी खरीद ली है।

वह अपने पिता गुरदेव सिंह के साथ मिलकर खेती करते हैं। ग्रेजुएश्न तक पढ़ाई कर चुके किसान गुरबचन सिंह ने बताया कि 2008 में गेहूं की कटाई के बाद पहली बार हैप्पी सीडर मशीन का प्रयोग करके उन्हें काफी लाभ हुआ। हैप्पी सीडर मशीन इस परिवार को इतनी रास आई कि वे पीएयू के इंजीनियर विभाग के अधिकारी एचएस सिद्धू व हैप्पी सीडर मशीन बनाने वाली सोसायटी को धन्यवाद करते नहीं थकते।

पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करने वाले किसान गुरबचन सिंह को सम्‍मानित करते अधिकारी।

गुरबचन सिंह ने बताया कि पराली न जलाकर हैप्पी सीडर मशीन के प्रयोग से इतना लाभ हुआ कि धान की फसल बिना किसी खाद व स्प्रे के होती है। केवल गेहूं की फसल के दौरान आधी खाद डालनी पड़ती है। इस फसल में किसी स्प्रे की जरूरत नहीं पड़ती। इतना ही नहीं फसल का झाड़ भी बढ़ता है। उन्होंने बताया कि पहली बार 1;24 लाख में चार किसानों ने मिलकर हैप्पी सीडर मशीन खरीदी थी। इस मशीन ने चारों घरों की पौ बारह कर डाली। अब किसान गुरबचन सिंह रोज एक दर्जन के करीब उन किसानों को पराली न जलाने लिए प्रेरित करते हैं।

गुरबचन सिंह हैं रोल मॉडल: डीसी

किसान गुरबचन सिंह को डीसी प्रदीप सभ्रवाल सम्मानित करने लिए उनके घर पहुंचे। डीसी सभ्रवाल ने किसान के उद्यम पर खुशी जाहिर करते कहा कि गुरबचन सिंह इलाके के किसानों लिए रोल मॉडल है। उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में किसान गुरबचन सिंह को प्रशासन की ओर से विशेष सम्मान दिया जाएगा। गुरबचन सिंह कहते हैं कि पहले कभी उनकी सुध लेने पटवारी तक नहीं आया। डीसी साहब को पता चला, तो वह तुरंत घर पहुंचे।

'' पराली जलाने से धरती मां का कलेजा आग से फट जाता है। किसानों को चाहिए कि धरती मां को प्यार करते हुए पराली को आग न लगाए। इसे धरती के बेशुमार जीव जंतु भी बच जाएंगे।

                                                                                                               -गुरबचन सिंह, किसान।

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पद्मश्री संत सीचेवाल बोले- अपनी आने वाली पीढ़ी को बचाएं

हरनेक सिंह जैनपूरी, कपूरथला।  पद्मश्री संत सींचेवाल ने कहा कि पराली को आग लगाने से पर्यावरण ही खराब नहीं होता, बल्कि इससे मित्र जीव जंतु व वृक्ष भी जल जाते हैं। हवा दूषित होने से हमारे बच्चे, बुजुर्ग व मरीजों के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है। जिंदा रहने के लिए हवा पानी अहम तत्व है, जिन्हें आनी वाली पीढिय़ों के लिए बचा कर रखना हम सभी का कर्तव्य है।

एक खास बातचीत में सींचेवाल ने कहा,किसान पराली को आग न लगाएं। इससे धरती का सीना सड़ जाता है। धरती की उपजाऊ शक्ति भी घट जाती है। मित्र कीटों के मरने से फसलों को ज्यादा बीमारियां लगती हैं। 67 फीसद खाद पराली में रह जाती है और बाकी 33 फीसद फसल को लगती है। इस वजह से पराली को खेत में जोतने से 60 फीसद खाद की पूर्ति हो जाती है।

उन्‍होंने कहा कि पराली को खेत में मिलाने के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की कोशिशों से मल्चर व अन्य कई साधन आ चुके हैं। इससे खेत को आसानी से अगली फसल के लिए तैयार किया जा सकता है। कंबाइन से धान काटने के बाद हैप्पी सीडर से सीधे बिजाई करके लागत को कम किया जा सकता है।

उन्‍होंने कहा कि कुदरती खेती के रुझान को त्याग कर आधुनिक खेती के कारण मानव स्वास्थ्य पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है। खाद व रसायनों के अधिक इस्तेमाल से हम बीमारियों को स्वयं दावत दे रहे हैं। हमारे बुजुर्ग कुदरती खेती करते थे। गोबर व मलमूत्र को खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था।

उन्‍हाेंने कहा कि हवा व पानी शुद्ध होते थे, लेकिन पैसे की होड़ में हमारा वातावरण ही प्रदूषित नहीं हुआ, बल्कि हमारी गलतियों से कुदरती जल स्रोत भी दूषित हो गए हैं। गुरबाणी के अनुसार, 'पवन गुरु, पानी पिता, माता धरती' के महत्व को समझते हुए कुदरती नियमों का उल्लंघन न करें। गुरबाणी व गुरुओं के उपदेशों का पालन करते हुए अपना, अपने परिवार एवं अपने समाज को स्वस्थ बनाएं।

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