जलियांवाला बाग नरसंहार की शताब्दी पर शहीदों को किया नमन

सुनाम ऊधम सिंह वाला (संगरूर) अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के सौ वर्ष पूरे होने पर राष्ट्रीय स्तर पर नरसंहार के शहीदों को नमन किया जा रहा है। शताब्दी समारोह में हरेक सियासी दल के नेता शामिल हुए हैं और पिछले करीब दो अढाई दशक से तमाम सियासी दलों की सरकारें केंद्र व राज्य में रही हैं। लेकिन इस नरसंहार का बदला लेकर देश का स्वाभिमान लौटाने वाले जंग ए आजादी के महानायक ऊधम सिंह की यादगार बनाने की मांग कोई भी सियासी दल पूरा नहीं कर सका है। ऐसे में सियासी दलों की नीति व नीयत पर सवाल उठने लाजिमी है। 2019 के लोकसभा चुनाव का दौर जारी है और शहीद ऊधम सिंह की नगरी के लोगों के जहन में फिर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कब बनेगी शहीद की यादगार? क्या चुनाव में फिर से शहीद की आड में सियासत का दौर जारी रहेगा और यादगार बनाने का लॉलीपाप थमाया जाएगा?

By JagranEdited By: Publish:Sat, 13 Apr 2019 05:29 PM (IST) Updated:Sat, 13 Apr 2019 05:29 PM (IST)
जलियांवाला बाग नरसंहार की शताब्दी पर शहीदों को किया नमन
जलियांवाला बाग नरसंहार की शताब्दी पर शहीदों को किया नमन

सुशील कांसल, सुनाम ऊधम सिंह वाला (संगरूर) : अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के सौ वर्ष पूरे होने पर राष्ट्रीय स्तर पर नरसंहार के शहीदों को नमन किया जा रहा है। शताब्दी समारोह में हर एक सियासी दल के नेता शामिल हुए हैं और पिछले करीब दो अढ़ाई दशक से तमाम सियासी दलों की सरकारें, केंद्र व राज्य में रही हैं। लेकिन इस नरसंहार का बदला लेकर देश का स्वाभिमान लौटाने वाले जंग ए आजादी के महानायक ऊधम सिंह की यादगार बनाने की मांग कोई भी सियासी दल पूरा नहीं कर सका है। ऐसे में सियासी दलों की नीति व नीयत पर सवाल उठने लाजिमी है। 2019 के लोकसभा चुनाव का दौर जारी है और शहीद ऊधम सिंह की नगरी के लोगों के जहन में फिर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कब बनेगी शहीद की यादगार? क्या चुनाव में फिर से शहीद की आड़ में सियासत का दौर जारी रहेगा और यादगार बनाने का लॉलीपाप थमाया जाएगा। शहादत को गुमनामी से बाहर निकाला था ज्ञानी जैल सिंह ने

बता दें पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने शहीद ऊधम सिंह की शहादत को गुमनामी से बाहर निकालने की पहलकदमी 1974 में की थी। केंद्र सरकार के सहयोग से उन्होंने ऊधम सिंह का पार्थिव शरीर, इंग्लैंड से भारत मंगवाया और पूरे सम्मान से अंतिम संस्कार करवाया था। तब सरकार की ओर से शहीद के रिश्तेदारों को वारिस का दर्जा भी दिया गया था। फिर 1992 में बेअंत सिंह सरकार ने राज्य स्तर पर शहीद ऊधम सिंह का बलिदान दिवस 31जुलाई मनाने की परंपरा शुरू हुई। तब शहीद की भव्य यादगार बनाने की मांग उठी। इसके बाद सत्ता में आईं कई सरकारों ने शहीद की यादगार बनाने के वायदे किए लेकिन परिणाम वही ढाक से तीन पात। केंद्र में भी तमाम दलों की सरकारें रहीं और संगरूर ने आम आदमी पार्टी के नेता को भी संसद भवन में भेजा। इससे पहले कई अन्य दलों के नेता भी संसद पहुंचे। पंजाब में कांग्रेस व अकाली भाजपा की सरकारें अस्तित्व में आईं और इस मुद्दे को लेकर ढेरों वायदे भी होते रहे। संगरूर जिला दो सीएम सुरजीत सिंह बरनाला व राजिदर कौर भट्ठल दे चुका है। जबकि केंद्र में सुखदेव सिंह ढींडसा कैबिनट मंत्री रह चुके हैं। प्रदेश की सरकार में इस जिले के कई नेता कैबिनट मंत्री बन चुके हैं। लेकिन उक्त मांग आज भी लंबित है। चंद पलों में सम्मान की महक हो जाती है खत्म : वारिस

सत्ता में रहे राजनीतिक दलों के प्रति शहीद की नगरी के लोग तथा उनके वारिस भी आहत हैं। शनिवार को शहीद ऊधम सिंह के पैतृक घर में श्रद्धांजलि देने पहुंचे उनके रिश्तेदार हरदियाल सिंह, शाम सिंह, मलकीत सिंह, जीत सिंह, गुरमीत सिंह व रणजीत कौर ने कहा कि शहीद की यादगार बनाने पर अब तक सियासी खेल ही चलता रहा है। शहीद का पैतिृक घर पचास गज जमीन में है। कई बार इस घर को बडा करने की मांग उठाई गई है। शहीद को लोकसभा, राज्यसभा व विधानसभा में याद करने तथा राष्ट्रीय शहीद का दर्जा देने की मांग को अब तक नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने कहा कि शहीद के बलिदान दिवस पर परिजनों का सम्मान देने की महक स्टेज से उतरते ही खत्म हो जाती है।

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