संगरूर से अरविद खन्ना को भाजपा ने मैदान में उतारा, कैबिनेट मंत्री विजयइंद्र सिंगला से मिलेगी चुनौती

कांग्रेस को अलविदा कहकर हाल ही में भाजपा में शामिल हुए पूर्व विधायक अरविद खन्ना को पार्टी ने संगरूर से टिकट देकर चुनावी अखाड़े में भेज दिया है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 21 Jan 2022 11:13 PM (IST) Updated:Fri, 21 Jan 2022 11:13 PM (IST)
संगरूर से अरविद खन्ना को भाजपा ने मैदान में उतारा, कैबिनेट मंत्री विजयइंद्र सिंगला से मिलेगी चुनौती
संगरूर से अरविद खन्ना को भाजपा ने मैदान में उतारा, कैबिनेट मंत्री विजयइंद्र सिंगला से मिलेगी चुनौती

सचिन धनजस, संगरूर : कांग्रेस को अलविदा कहकर हाल ही में भाजपा में शामिल हुए पूर्व विधायक अरविद खन्ना को पार्टी ने संगरूर से टिकट देकर चुनावी अखाड़े में भेज दिया है। भाजपा में शामिल होने के बाद से ही खन्ना संगरूर की राजनीति में सरगर्म थे और लगातार संगरूर की जनता से मिल रहे हैं। संगरूर व धूरी से विधायक रहे अरविद खन्ना 2015 में सियासत को अलविदा कहकर चले गए थे, लेकिन भाजपा की नीतियों से खुश होकर उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी दोबारा से शुरू की है।

दैनिक जागरण से बातचीत में खन्ना ने कहा कि पार्टी ने जो उन पर भरोसा जताया है, वह उसे पूरा करेंगे। जनता के मिल रहे प्यार से वह संगरूर सीट जीतकर भाजपा की झोली में डालेंगे। उन्होंने कहा कि संगरूर के कई मुद्दे हैं, लेकिन उनकी प्राथमिकता स्वास्थ्य सुविधा, बेरोजगारी दूर करना व शिक्षा स्तर को ऊंचा उठाना होगा। साथ ही जनता को स्वच्छ व भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देना रहेगा। सिगला से मिलेगी सीधी चुनौती

यूं तो विधानसभा हलका में चौतरफा मुकाबला होने की संभावना बढ़ गई है, लेकिन अरविद खन्ना को कैबिनेट मंत्री विजयइंद्र सिगला से सीधी चुनौती मिलनी लगभग तय है। सिगला का वोट बैंक भी शहरी है, जबकि अरविद खन्ना का वोट बैंक भी शहरी है। कांग्रेस के दम पर सिगला गांवों में वोट मांगेंगे, जबकि अपनी उम्मीद फाउंडेशन के माध्यम से करवाए गए कार्यों व स्व रोजगार के नाम पर जनता से वोट मांगेंगे। लिहाजा, आगामी दिनों में संगरूर की राजनीति काफी दिलचस्प होने वाली है।

2002 व 2012 में रहे विधायक

दिल्ली के बड़े व्यवसायी अरविद खन्ना ने 1997 में संगरूर में आकर अपनी उम्मीद फाउंडेशन शुरू की थी। उम्मीद फाउंडेशन के माध्यम से वह जिला संगरूर में काफी लोकप्रिय हुए। तब खन्ना ने 1998 में अकाली दल से अपनी राजनीति शुरू की। 2002 में संगरूर से कांग्रेसी विधायक बने अरविद खन्ना को 42339 मत हासिल हुए थे, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी रणजीत बालियां को 23207 मत हासिल हुए थे और खन्ना ने 19132 मतों से जीत हासिल की थी। 2004 में विधायक खन्ना ने संसदीय चुनाव भी लड़ा, तब खन्ना को 2 लाख 59 हजार, 551 मत हासिल हुए और उनके प्रतिद्वंद्वी सुखदेव सिंह ढींडसा 27277 मतों से विजयी हुए थे। वर्ष-2007 में वह चुनाव नहीं लड़े थे, जबकि 2012 में अरविद खन्ना संगरूर से टिकट चाहते थे, लेकिन तब सुरिदरपाल सीबिया को टिकट मिली और अरविद खन्ना को धूरी से टिकट मिली और उन्हें धूरी में 51536 मत हासिल हुए, जबकि प्रतिद्वंद्वी को गोबिद लोंगोवाल को 39063 मत हासिल हुए थे और खन्ना 12473 मतों से विजयी हुए थे। 2015 में घरेलू समस्याओं के चलते उन्होंने अपने विधायक पद से त्यागपत्र दे दिया था और फिर से अब उन्होंने भाजपा के बैनर तले अपनी राजनीति संगरूर की। 11 हजार सदस्यों का रहा है उम्मीद परिवार

अरविद खन्ना की उम्मीद फाउंडेशन के साथ विधानसभा हलका संगरूर की 7500 महिलाएं सीधे रूप से जुड़ी हुई थीं, जिन्हें फाउंडेशन द्वारा सेल्फ-हेल्प ग्रुप के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाया था, जबकि 11000 उम्मीद फाउंडेशन परिवार के सदस्य थे, जिन्होंने बकायदा तौर पर फाउंडेशन की सदस्यता ग्रहण की हुई थी। फाउंडेशन द्वारा गांव-गांव जाकर डाक्टरों की मदद से मेडिकल सुविधा दी जाती रही है। कैप्टन की बुआ के पुत्र हैं अरविद खन्ना

इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले अरविद खन्ना का जन्म 29 मई 1967 को आर्मी आफिसर विपन खन्ना के घर हुआ। अरविद खन्ना की माता नागेंद्र कौर खन्ना पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह की बेटी हैं और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदर सिंह की बुआ हैं।

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