लापरवाही लील रही जिंदगी

जागरण संवाददाता, संगरूर सड़क हादसों की मुख्य वजह है लापरवाही। हादसों की भेंट चढ़ती कीमती ¨जदगियों

By Edited By: Publish:Tue, 06 Dec 2016 01:02 AM (IST) Updated:Tue, 06 Dec 2016 01:02 AM (IST)
लापरवाही लील रही जिंदगी

जागरण संवाददाता, संगरूर

सड़क हादसों की मुख्य वजह है लापरवाही। हादसों की भेंट चढ़ती कीमती ¨जदगियों के खून से सड़कें हर दिन लाल हो रही हैं, लेकिन इन्हें रोकने के लिए न तो ट्रैफिक पुलिस गंभीर है, न ही सरकार औ न ही वाहन चालक। खस्ताहाल वाहनों को आज भी सड़कों पर दौड़ने का अधिकार है। वहीं जुगाड़ से बनाए गए वाहन भी सड़कों को बेखौफ दौड़ रहे हैं। हालात इस कदर बदतर हैं कि शहरों में ट्रैफिक को कंट्रोल करने के लिए ट्रैफिक सिग्नल लाइटें ही नहीं हैं। इसी कारण चौकों पर अनियंत्रित वाहन आपस में भिड़ जाते हैं। वहीं सड़कों पर रात के समय रोशनी का प्रबंध भी नहीं हैं, केवल वाहनों की लाइटों पर ही वाहन चालकों को रोशनी मिल पाती है। ऐसे हालातों में सड़क हादसों पर अंकुश लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगता है।

बंद पड़ी ट्रैफिक लाइटें

सड़कों पर सरपट दौड़ते ट्रैफिक को कंट्रोल करने में अहम भूमिका अदा करने वाली ट्रैफिक सिग्नल लाइटों का जिलेभर में अभाव है। संगरूर शहर के बस स्टैंड, सुनाम के आइटीआइ चौक व मालेरकोटला के ग्रेवाल चौक में ही सिग्नल लाइटें हैं, लेकिन यह लाइटें पिछले करीब 3 वर्षों से बंद ही पड़ी हुई हैं, जबकि अहमदगढ़, धूरी, भवानीगढ़, लहरागागा, दिड़बा सहित अन्य मुख्य सड़कों पर भी ट्रैफिक लाइटें नहीं है। ट्रैफिक पुलिस ने जिले भर में 32 के करीब सड़क हादसे के खतरनाक मुख्य स्थान घोषित तो किए हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि यहां पर भी ट्रैफिक लाइटें नहीं हैं।

वाहनों की तेज रफ्तार पर नहीं कोई कंट्रोल

सड़क सुरक्षा में लंबे समय से कार्य कर रही पीपल्स फॉर ट्रांस्पेरेंसी के सचिव कलम आनंद का कहना है कि भारतीय सड़कों पर वाहनों की स्पीड लीमिट अधिकतम 65 किलोमीटर प्रति घंटा है। इसके बावजूद भी भारत में एसयूवी गाड़ियां सड़कों पर उतारी जा रही हैं। वाहन में ही रफ्तार को कंट्रोल करने का उपकरण लगाया जाना चाहिए, ताकि वाहन तेज रफ्तार न दौड़ सकें। रफ्तार पर कंट्रोल करके ही सड़क हादसों को कंट्रोल किया जा सकता है।

जुगाड़ू वाहन व फिटनेस जांच सिर्फ खानापूर्ति

जुगाड़ से बनाए गए वाहन, पीटर रेहड़ा जहां सरेआम सड़कों पर दौड़ते हैं, वहीं वाहनों की फिटनेस जांचने में भी विभाग द्वारा लापरवाही बरती जा रही है। बेशक विभाग द्वारा वाहनों की फिटनेट की जांच की जाती है, लेकिन यह जांच केवल कागजों तक ही सीमित हैं। स्कूली बसों में ठेके के तौर पर चलाई जाती ट्रांसपोर्ट में ऐसे ही वाहनों को खपा दिया जाता है, जो गंभीर ¨चता का विषय है। ट्रैफिक पुलिस व परिवहन विभाग इसके प्रति कतई गंभीर नहीं है।

सड़कों किनारे खड़े वाहन, हादसों को न्यौता

सड़कों किनारे खड़े रहने वाले ट्रक व अन्य वाहन सड़क हादसों का सबसे अधिक सबब बनते हैं। रात के समय इन वाहनों से अन्य वाहन टकरा जाते हैं। सड़कों किनारे पार्किग की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि सड़क पर खराब होने वाले वाहनों को इस पार्किंग में खड़ा किया जा सके। संगरूर-धूरी रोड पर मौजूद फैक्ट्री के बाहर, दिड़बा रोड पर इंडियन ऑयल कंपनी सहित अन्य स्थान इन ट्रकों की पार्किंग के मुख्य स्थान हैं, जहां कई कीमती ¨जदगियां जा चुकी हैं, लेकिन इन ट्रकों की अन्य जगह पर पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं है।

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