नो हेलमेट, नो पेट्रोल योजना ने तोड़ा दम, ढाई साल से कागजों में दफन

करीब ढाई साल पहले शहर में ट्रैफिक नियमों का पालन करवाने के लिए शुरू की गई नो हेलमेट नो पेट्रोल योजना की हवा निकल चुकी है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 06 Jan 2019 11:56 PM (IST) Updated:Sun, 06 Jan 2019 11:56 PM (IST)
नो हेलमेट, नो पेट्रोल योजना ने तोड़ा दम, ढाई साल से कागजों में दफन
नो हेलमेट, नो पेट्रोल योजना ने तोड़ा दम, ढाई साल से कागजों में दफन

संस, पठानकोट : करीब ढाई साल पहले शहर में ट्रैफिक नियमों का पालन करवाने के लिए शुरू की गई नो हेलमेट नो पेट्रोल योजना की हवा निकल चुकी है। इस योजना को अपनाना तो दूर की बात है अब शहर के लोग इस योजना को भूलते जा रहे हैं। आलम यह है कि न तो किसी पेट्रोल पंप पर यह योजना लागू होती दिखती है और न ही शहर में हेलमेट पहनने वालों की संख्या कुछ ज्यादा है। अधिकतर दोपहिया वाहन चालक बिना हेलमेट के आज भी घूम रहे हैं। जो नाके पर पकड़ा जाए उस पर कार्रवाई तो होती है, लेकिन पूरी तरह से हेल्मेट पहनने का नियम लागू नहीं हो पा रहा है। लोगों को हेलमेट पहनने के लिए मजबूर करने के लिए बनाई गई यह योजना ही लागू नहीं हो पाई है तो ऐसे में इस नियम के लागू हो पाने की उम्मीद करना भी मुश्किल है। काबिलेगौर हो कि साल 2016 में नो हेलमेट नो पेट्रोल नाम की एक योजना जिला प्रशासन ने शुरू की थी। इस योजना का उद्देश्य शहर में हर दोपहिया वाहन चालक को हेलमेट पहनाना था। ताकि कोई भी वाहन चालक बिना हेलमेट पहने बाइक, स्कूटर न चलाए और हादसों में वाहन चालकों की जान को खतरा भी न हो। इस योजना के तहत हर पेट्रोल पंप पर वाहन चालकों को पेट्रोल तभी दिया जाना था अगर वाहन चालक ने हेलमेट पहना हो। अगर हेलमेट पहने बगैर कोई दोपहिया वाहन चालक पेट्रोल पंप पर जाता तो उसे पेट्रोल नहीं दिया जाना था। लेकिन यह योजना चंद दिन भी लागू नहीं हो पाई थी। हालाकि पेट्रोल पंपों ने इस योजना में जिला प्रशासन को सहयोग करने की बात जरूरी की थी। लेकिन किसी भी पेट्रोल पंप पर यह योजना लागू नहीं हो पाई। अब इस योजना का जिक्त्र भी शहर में नहीं होता है। हालाकि इस योजना के पुराने बैनर कुछ पेट्रोल पंपों पर टंगे हुए जरूर दिख जाते हैं। लेकिन यह पुराने बैनर इस योजना को आगे बढ़ाने में तब तक सहायक साबित नहीं होंगे जब तक व्यवस्था में बदलाव नहीं आएगा। इस योजना के नाकामयाब होने के पीछे का कारण सिर्फ पेट्रोल पंप ही नहीं हैं। बल्कि प्रशासन और आम लोग भी उतने ही कसूरवार दिख रहे हैं। लोगों की सड़क सुरक्षा के तहत ही यह नियम बनाया गया है लेकिन खुद लोग ही इस योजना के प्रति सजग नहीं हैं। अब यह उम्मीद करना भी मुश्किल लगता है कि पूरी तरह से खत्म हो चुकी यह योजना दोबारा कभी लागू हो पाएगी।

शिकायत के इंतजार में प्रशासनिक अधिकारी

वहीं हैरत की बात तो यह है कि जिला प्रशासन इस योजना में अड़चन बन रहे लोगों और पेट्रोल पंपों के खिलाफ शिकायत आने के इंतजार में बैठा है। प्रशासन का यही कहना है कि यदि कोई इस संबंधी शिकायत देता है तो फिर उसके बाद ही योजना में अड़चन बनने वाले पर कार्रवाई होगी। प्रशासन की इसी कार्यशैली के कारण आलम ऐसा है कि आज तक इस योजना के असफल होने के पीछे किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सका है। क्योंकि प्रशासन खुद किसी को नहीं पकड़ना चाहता है और किसी की शिकायत आने पर ही जाच और कार्रवाई करना चाहता है। इसके लिए एक कमेटी बनाई गई है। कमेटी को अगर कोई शिकायत देता है तो प्रशासन उसकी जाच करेगा एंव जाच के आधार पर ही कार्रवाई होगी।

नहीं आई कोई शिकायत

नो हेलमेट नो पेट्रोल योजना के नोडल अफसर मर्नंजदर ने बताया कि उक्त योजना में अड़चन बन रहे किसी व्यक्ति या संस्थान के खिलाफ कोई भी शिकायत आज तक नहीं आई है। यदि कोई शिकायत आती है तो उसकी जाच की जाएगी और जो भी जाच में सामने आएगा उसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी। योजना के असफल होने की बात पर उन्होंने कहा कि इसके लिए हर माह मर्ींटग की जाती है।

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