मानव जीवन बिना ईश्वर प्राप्ति असंभव : दिव्यानंद जी

स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने कहा कि मानव शरीर देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। स्वर्ग के देवता भी भारत वासियों की साधना और सत्कर्म को देखकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि प्रभु जिस प्रकार इन लोगों को आपने भारत वर्ष में जन्म दिया है ऐसे ही जब हमारा पुण्य क्षीण हो जाए और हम मृत्युलोक में जाएं तो हमें भारतवर्ष में ही मानव तन प्रदान करना। मानव तन प्राप्त करने के लिए चर और अचर सभी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। जैसे वृक्ष से एक बार पता गिर जाता है वह पता दोबारा वृक्ष में नहीं लगता, ऐसे ही एक बार असावधानी से जो मानव जीवन व्यर्थ हो गया, तो करोड़ों वर्ष तक दोबारा नहीं मिलेगा।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 21 Jan 2019 10:48 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jan 2019 10:48 PM (IST)
मानव जीवन बिना ईश्वर प्राप्ति असंभव : दिव्यानंद जी
मानव जीवन बिना ईश्वर प्राप्ति असंभव : दिव्यानंद जी

संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब : स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने कहा कि मानव शरीर देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। स्वर्ग के देवता भी भारत वासियों की साधना और सत्कर्म को देखकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि प्रभु जिस प्रकार इन लोगों को आपने भारत वर्ष में जन्म दिया है ऐसे ही जब हमारा पुण्य क्षीण हो जाए और हम मृत्युलोक में जाएं तो हमें भारतवर्ष में ही मानव तन प्रदान करना। मानव तन प्राप्त करने के लिए चर और अचर सभी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। जैसे वृक्ष से एक बार पता गिर जाता है वह पता दोबारा वृक्ष में नहीं लगता, ऐसे ही एक बार असावधानी से जो मानव जीवन व्यर्थ हो गया, तो करोड़ों वर्ष तक दोबारा नहीं मिलेगा। मानव जीवन के बिना ईश्वर प्राप्ति असंभव है। स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने ये विचार श्री रघुनाथ मंदिर में शुरू हुए माघ महात्मय कथा कार्यक्रम के प्रथम दिन श्रद्धालुओं के समक्ष प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आज हर व्यक्ति का जीवन अशांत है। जैसे कछुआ अपने अंगों को सुकोड़ लेता है उसी प्रकार जब मानव अपनी इंद्रियों को वासनाओं से समेट कर ब्रह्मारंध्र की और मोड़ लेता है, तभी उसकी बुद्धि निर्मल और शांत हो जाती है। उसके बिना कोई बूटी नहीं है जो आप को शांति दे सके। इंद्रियां जब विषयों से मुड़ जाएंगी और मन भोगों से हट जाएगा तुरंत शांति मिलेगी। स्वामी जी के परम शिष्य वेदांताचार्य स्वामी विवेकानंद जी महाराज ने भक्ति की परिभाषा देते हुए बताया कि भक्ति में कपट नहीं होना चाहिए। जहां भक्ति करते समय मन में कपट आ गया वहां प्रभु की कृपा होनी असंभव है। इसलिए भक्त का मन साफ होना चाहिए। स्वामी जी ने कहा कि भक्त को मंदिर में जाकर आराम से कुछ देर बैठकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए और प्रभु के चरणों में ध्यान लगाना चाहिए। कई बार देखा जाता है कि कई लोग जल्दबाजी के चक्कर में मंदिर के द्वार तक आकर बाहर से ही माथा टेककर चले जाते हैं, मगर यह उचित नहीं। मंदिर जाओ तो अपना कुछ समय मंदिर में भगवान को समर्पित कर दो। मन को प्रभु में लगाने की कोशिश करो तभी प्रभु कृपा होगी। उन्होंने कहा कि मनुष्य को कोई बात बोलने से पहले हजार बार सोच-विचार करना चाहिए कि कहीं उसके द्वारा कही गई बात से किसी के मन को ठेस तो नहीं पहुंच रही है। अकसर होता है कि गुस्से में मनुष्य सामने वाले को काफी बुरा-भला कह जाता है। मगर बाद में उसे खुद पर पछतावा होता है। तब तक देर हो चुकी होती है, क्योंकि जिस तरह तरकश से निकला तीर कमान में लौटकर नहीं आता उसी तरह जुबान से निकले कड़वे वचन वापस नहीं लौटते। मनुष्य को हमेशा नम्रता धारण करनी चाहिए। कभी दुश्मन को भी कटु वचन नहीं बोलने चाहिए। दुश्मन की बुराई का बदला भी अच्छाई से चुकाना चाहिए। अगर हम भी दूसरों की तरह बुरा व्यवहार करेंगे तो उसमें और हममें क्या अंतर रह जाएगा। मंदिर के पुजारी पं. आदेश शर्मा मन्नू ने स्वामी जी महाराज का तिलक पूजन कर अभिनंदन किया। इस अवसर पर अशोक तेरिया, टीटू बिरला, सुभाष ग्रोवर, सुभाष गुंबर, कुशल गिरधर, नीला कुब्बा समेत अन्य भी उपस्थित थे।

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