छह साल के Research के बाद PAU ने बनाया प्रदूषणरहित अनोखा गीजर, कीमत मात्र साढ़े सात हजार

Punjab Agricultural University ने महज साढे़ सात हजार रुपये की लागत से पराली (Stubble) से चलने वाला गीजर तैयार किया है।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Thu, 28 Nov 2019 04:30 PM (IST) Updated:Fri, 29 Nov 2019 01:16 PM (IST)
छह साल के Research के बाद PAU ने बनाया प्रदूषणरहित अनोखा गीजर, कीमत मात्र साढ़े सात हजार
छह साल के Research के बाद PAU ने बनाया प्रदूषणरहित अनोखा गीजर, कीमत मात्र साढ़े सात हजार

लुधियाना [आशा मेहता]। Punjab Agricultural University ने महज साढे़ सात हजार रुपये की लागत से पराली से चलने वाला गीजर तैयार किया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस गीजर से प्रदूषण नहीं होगा। PAU के Department of Renewable Energy Engineering के Assistant Agricultural Engineer डॉ. वरिंदर सिंह सैंबी ने PAU के Director extension education डॉ. जसकरण माहल के आइडिया पर इस गीजर को तैयार किया है।

डॉ. माहल ने यह आइडिया 2013-14 में गांवों में पानी गर्म करने के लिए इस्तेमाल में लाए जा रहे गोबर के उपलों से चलने वाले हमाम को देखकर दिया था। छह साल के शोध, कृषि विज्ञान केंद्र व फार्मर फील्ड पर सफल ट्रायल के बाद 100 लीटर क्षमता वाले पराली गीजर को घरेलू और काॅमर्शियल तौर पर इस्तेमाल में लाने की सिफारिश की गई है।

बेलर से बनाई आयताकार पराली बेल (गांठ) से गर्म होगा पानी

शोधकर्ता डाॅ. वरिंदर सिंह सैंबी के अनुसार PAU ने स्मॉल स्केल लेवल पर किसानों को आप्शन देने के लिए बिना बिजली के पराली गीजर तैयार किया है। इससे एक तो गर्म पानी की जरूरत पूरी हो जाएगी और दूसरा पराली का इस्तेमाल भी हो जाएगा। बेलर से बनाई गई आयताकार बेल (चौरस गांठें) पराली गीजर के लिए उपयुक्त है। गीजर चलाने से पहले इसे पानी से भरना होता है। पानी भरने व निकासी के लिए अलग-अलग पाइप लगी हैं।

शोध में देखा गया पराली की Heating value करीब 15 मेगाजूल प्रति किलो है। पराली की 15 किलो की एक गांठ में करीब 225 मेगाजूल ऊर्जा होती है, जो कि 5.1 लीटर डीजल से पैदा ऊर्जा के बराबर है। पराली से चलने वाले गीजर में एक बेल से करीब सौ लीटर पानी गर्म किया जा सकता है और इसे 24 घंटे तक गर्म रखा जा सकता है। सर्दी के दिनों में तीन से चार घंटे में पानी 45-50 डिग्री तक गर्म हो जाता है। अगर गीजर में आयताकार पराली बेल के साथ लकड़ी, पत्ते व गोबर के उपले इस्तेमाल में लाएं तो पानी का टेंपरेचर 60 डिग्री तक हो जाता है।

शोध के दौरान पराली गीजर की Water heating efficiency (पानी गर्म करने की निपुणता) को भी परखा गया तो यह 15 से 20 प्रतिशत रही। Water heating efficiency बिजली वाले गीजर व डीजल भट्ठी वाले गीजर के बराबर देखी गई। डाॅ. सैंबी के अनुसार जब पराली गीजर को इस्तेमाल करते हैं तो वातावरण दूषित नहीं होता। यह Carbon neutral activity श्रेणी में आता है। किसान Field trial के दौरान किसान गीजर से काफी संतुष्ट दिखे हैं।

ऐसे काम करता है पराली वाला गीजर

फ्रिज के आकार वाले इस गीजर में बीच में पराली जलाने और चारों तरफ पानी एकत्र करने के लिए स्थान बना होता है। इसके ऊपर में एक ढक्कन लगा है। ढक्कन को हटाकर बीच वाले हिस्से में पराली 15 किलो पराली की गांठ डाली जाती है। इसके बाद पराली को आग लगा दी जाती है। इस प्रकार तीन से चार घंटे में पानी गर्म हो जाता है। पराली की राख नीचे बनी जाली से नीचे गिर जाती है।

पंजाब के किसानों के पास चौरस गांठें बनाने वाले बेलर ज्यादा

डॉ. सैंबी के अनुसार ज्यादा से ज्यादा किसानों को इस गीजर का लाभ उठाना चाहिए। पंजाब में काफी किसानों के पास चौरस गांठें बनाने वाला बेलर है। किसान आसानी से 100 से अधिक आयताकार बेलें एक छोटे शेड में पूरी सर्दी के लिए इकट्ठी करके रख सकते हैं। अगर किसी किसान के पास आयताकार बेल बनाने वाला बेलर नहीं है तो वह पराली से चलने वाले बिजली घरों से ले सकता हैं। पंजाब में पराली से चलने वाले बिजली घर श्री मुक्तसर साहिब, फाजिल्का, पटियाला, होशियारपुर, जालंधर व मानसा में चल रहे हैं।

पंजाब में पैदा होती है 200 लाख टन पराली

बकौल डाॅ. सैंबी पंजाब में करीब 30 लाख हेक्टेयर से अधिक रकबे में धान की खेती होती है। इससे करीब 200 लाख टन से अधिक पराली पैदा हो रही है। खेतों में पड़ी पराली ज्यादातर किसानों के लिए अगली फसल मुख्य तौर पर गेहूं, आलू व दूसरी सबिजयों की बिजाई में मुशिकलें पैदा करते हुए मुसीबत बन जाती है। पराली जलाने के दुष्प्रभावों को जानते हुए भी धान की कटाई और अगली फसल की बिजाई में कम समय को देखते हुए पराली को जला दिया जाता है।

PRSC के Agro Eco Systems व Crop Modeling Division से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इस साल 23 सितंबर से 25 नवंबर तक पंजाब के 22 जिलों में खेतों में पराली जलाने के 52942 मामले Satellite की तस्वीरों में कैद हुए हैं। वर्ष 2018 में यह आंकड़ा 51,751 और वर्ष 2017 में 50,841 था।

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