लुधियाना में अस्पताल की लापरवाही से हुई नवजात की मृत्यु, 35 लाख हर्जाना भरने के आदेश

लुधियाना के सिविल लाइंस स्थित हांडा अस्पताल को नवजात की मौत के मामले में दोषी मानते हुए पीडि़त माता-पिता को 35 लाख रुपये हर्जाना देने के आदेश दिए हैं। यह फैसला शनिवार को आयोग के अध्यक्ष जस्टिस परमजीत सिंह धालीवाल सदस्य राजेंद्र कुमार गोयल व किरण सिब्बल ने सुनाया है।

By Vikas_KumarEdited By: Publish:Sun, 23 May 2021 07:53 AM (IST) Updated:Sun, 23 May 2021 07:53 AM (IST)
लुधियाना में अस्पताल की लापरवाही से हुई नवजात की मृत्यु, 35 लाख हर्जाना भरने के आदेश
लुधियाना के हांडा अस्पताल को पंजाब उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग ने नवजात की मौत के मामले में दोषी माना।

लुधियाना, जेएनएन। पंजाब उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग ने लुधियाना के सिविल लाइंस स्थित हांडा अस्पताल को नवजात की मौत के मामले में दोषी मानते हुए पीडि़त माता-पिता को 35 लाख रुपये हर्जाना देने के आदेश दिए हैं। यह फैसला शनिवार को आयोग के अध्यक्ष जस्टिस परमजीत सिंह धालीवाल, सदस्य राजेंद्र कुमार गोयल व किरण सिब्बल ने सुनाया है। साथ ही मुकदमे पर खर्च किए 33 हजार रुपये भी अदा करने के को कहा है। आयोग ने कहा कि आम आदमी डाक्टर को भगवान की नजर से देखता है। उससे अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए मरीज और डाक्टर के बीच रिश्ते को और मजबूत करे।

लुधियाना के ऊधम सिंह नगर के रहने वाले दंपती करण व पुलकित कपूर ने उपभोक्ता आयोग से शिकायत की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि 27 नवंबर 2015 से 26 जुलाई 2016 के बीच अस्पताल मां और पेट में पल रहे बच्चे को तंदरुस्त बताता रहा। हर बार उन्हें नार्मल डिलीवरी की बात कही गई। पहले डिलीवरी की तारीख 26 जुलाई थी लेकिन बाद में उसे बदलकर तीन अगस्त कर दिया गया। आपरेशन की न तो आवश्यकता थी न उन्हें कोई सुझाव दिया गया। प्रसव पीड़ा होने पर महिला को हांडा अस्पताल ले जाया गया। डाक्टर ने बार-बार अनुरोध करने पर भी ढाई घंटे बाद उसकी जांच की और दर्द सहन करने के लिए कहा। पहली जांच के छह घंटे बाद रात साढ़े दस बजे डाक्टर प्रतिभा उसे देखने आई।

नवजात को अपनी कार में ले गए डाक्टर प्रदीप, मां को नहीं दी इजाजत

उसने कहा कि बच्चा संकट में है और आपरेशन करना होगा। उसने कोई संवेदनशीलता और सहानुभूति नहीं दिखाई। आपरेशन से रात 11:04 बजे बच्चे का जन्म हुआ। उन्होंने बाल रोग विशेषज्ञ से डीएमसी अस्पताल से एंबुलेंस की व्यवस्था करने का आग्रह किया लेकिन डाक्टर प्रदीप नवजात को अपनी कार में ले गए। मां को बच्चे के साथ जाने की इजाजत नहीं थी। डाक्टर ने उसे बताया कि नवजात के गले में श्वास नली डाल दी है। वार्ड ब्वाय साथ जाएगा और बच्चे को कुछ नहीं होगा। श्वास नली के अलावा कार में कोई उपकरण नहीं था।

डीएमसी अस्पताल पहुंचने तक नवजात का रंग नीला हो गया था। वह बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रहा था। डीएमसी अस्पताल के डाक्टरों ने बताया बच्चा गंभीर रूप से बीमार था। आक्सीजन की कमी के कारण मस्तिष्क प्रणाली को अपूरणीय क्षति हुई थी। नवजात के इलाज पर 1.25 लाख रुपये खर्च किए लेकिन अगले दिन रात 9.30 बजे उसकी मौत हो गई।

अस्पताल ने निराधार बताए थे आरोप :

अस्पताल प्रशासन ने आरोपों को निराधार बताते हुए आयोग से कहा कि उन्होंने सही तरीके से इलाज किया था। अस्पताल से रुपये लेने के लिए झूठी शिकायत दायर की गई है।

आयोग ने की टिप्पणी :

आयोग ने फैसले में कहा कि सेवा में कमी और लापरवाही के कारण हुए नुकसान की भरपाई शिकायतकर्ताओं को रुपये देकर नहीं की जा सकती है। नवजात का अचानक नुकसान का कारण सरासर चिकित्सा लापरवाही है। इसके साथ बच्चे के प्यार और स्नेह की कमी, मानसिक पीड़ा, उत्पीडऩ, और परिहार्य दर्द जो शिकायतकर्ताओं को हुई है उसे देखते हुए अस्पताल शिकायतकर्ताओं को आठ प्रतिशत ब्याज सहित हर्जाना चुकाए।

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