महासाध्वी वीणा को अपना काम खुद करने में विश्वास

कृष्ण गोपाल लुधियाना तपचंद्रिका श्रमणी गौरव सरलमना महासाध्वी गुरुणी मैयां वीणा म. सा. ठाणा

By JagranEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 06:36 PM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 06:36 PM (IST)
महासाध्वी वीणा को अपना काम खुद करने में विश्वास
महासाध्वी वीणा को अपना काम खुद करने में विश्वास

कृष्ण गोपाल, लुधियाना : तपचंद्रिका श्रमणी गौरव सरलमना महासाध्वी गुरुणी मैयां वीणा म. सा. ठाणा-5 की 53वीं दीक्षा जयंती उत्सव 21 से 26 सितंबर तक जैन स्थानक सिविल लाइंस के प्रांगण में करवाया जा रहा है।

महासाध्वी श्री वीणा जी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय:-

जन्म:- 18 अक्तूबर 1951, कृष्ण चतुर्थी।

जन्म स्थान:- होशियारपुर (पंजाब)

जन्म नाम:- श्री वीणा जी।

माता :- सुश्राविका शांतमूर्ति रत्न देवी नाहर।

पिता :- स्वतंत्रता सेनानी श्री जगन्नाथ जी नाहर।

दादी :- सुश्राविका पूर्ण देवी नाहर।

दादा :- कर्मठ सुश्रावक तपस्वी आत्मा लाल मेहरचंद नाहर।

वंश:- नाहर, जाति-ओसवाल।

दीक्षा सन:- 21 सितबर 1969

दीक्षा तिथि:- भाद्रो, सुदी दसवीं।

दीक्षा स्थान:- दिल्ली लाल किला, रामलीला मैदान।

अनमोल उपस्थिति :- आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषि महाराज।

दीक्षा गुरु :- शेर-ए- पंजाब स्वामी श्री प्रेमचंद महाराज।

बड़ी दीक्षा का पाठ:- पंजाब प्रवर्तक श्रमण श्री फूलचंद जी महाराज।

दीक्षा नाम:- श्री शिक्षा जी महाराज।

दीक्षा नाम प्रदाता:- श्रमण श्री फूलचंद जी महाराज।

गुरुणी :- शासन दीपिका- संगीत भारती श्री शिमला जी महाराज।

दादा गुरुणी :- संयम सुमेरु श्री सावित्री जी महाराज।

पड़दादा गुरुणी :- पादोपगमन संथारा साधिका महासाध्वी श्री लज्जावती महाराज।

लोकिक एवं आध्यात्मिक अध्ययन :- एमए प्रभाकर विशारद धार्मिक।

पदालंकृत :- तप चंद्रिका श्रमणी गौरव- श्री सुमन मुनि जी म. द्वारा प्रदत्त।

समता विभूति:- आचार्य श्री सुभद्र मुनि द्वारा प्रदत्त। श्री माया राम महाराज के गच्छ से।

विशेषताएं :- मितभाषी, स्वाध्याय में लीन, आत्म साक्षात्कार में पुरुषार्थी, दोनों हाथों से सर्वजनों को आशीर्वाद देना, तप में लीन रहना। 50 वर्ष से तप में कोई पारणा नहीं। प्रत्येक प्रश्न का स्टीक उत्तर, 48 वर्षों से गर्म वस्त्र का त्याग, क्रोध आदि कषायों से दूर।

रुचि:- ज्यादा से ज्यादा अपनी आत्मा को तप में लीन करना। स्वयं का कार्य स्वयं करने में विश्वास। प्रत्येक जीवात्मा के प्रति दया के भाव रखना। इसी में सुख अनुभव करना आदि।

- प्रस्तुति प्रवचन प्रभाविका साध्वी रत्न संचिता

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