Kartarpur Corridor का बेसब्री से हो रहा इंतजार, जरा ये भी पढ़ लें... ऐसे हुआ था इस गुरुद्वारे का जीर्णोद्धार

करतारपुर कॉरिडोर का आज संगत को बेसब्री से इंतजार है लेकिन 19 साल पहले तक इस गुरुद्वारे में जाने की कोई जहमत भी नहीं उठाता था। तब जेबी सिंह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Mon, 30 Sep 2019 11:55 AM (IST) Updated:Mon, 30 Sep 2019 06:44 PM (IST)
Kartarpur Corridor का बेसब्री से हो रहा इंतजार, जरा ये भी पढ़ लें... ऐसे हुआ था इस गुरुद्वारे का जीर्णोद्धार
Kartarpur Corridor का बेसब्री से हो रहा इंतजार, जरा ये भी पढ़ लें... ऐसे हुआ था इस गुरुद्वारे का जीर्णोद्धार

लुधियाना [भूपेंदर सिंह भाटिया]। गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर पाकिस्तान के करतारपुर में बने ऐतिहासिक गुरुद्वारे तक जाने वाले कॉरिडोर का आज संगत को बेसब्री से इंतजार है, लेकिन 19 साल पहले तक इस गुरुद्वारे में जाने की कोई जहमत भी नहीं उठाता था। तब अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के जेबी सिंह ने लाखों डॉलर खर्च कर इसका जीर्णोद्धार किया।

अमेरिका से टेलीफोन पर दैनिक जागरण से विशेष वार्ता में जेबी सिंह ने बताया कि 2001 में उन्होंने गुरुद्वारा साहिब को संवारने की सोची तो किसी ने पल्ला तक नहीं पकड़ाया। कुछ कहते थे कि बॉर्डर होने के कारण पाकिस्तान इजाजत नहीं देगा तो कोई कहता जीर्णोद्धार हो भी गया तो वहां श्री गुरुग्रंथ साहिब का प्रकाश नहीं हो पाएगा। दिल्ली में कुछ लोगों से बात की तो उन्होंने कारसेवा करने वालों को पैसे देने तक की सलाह दी। पर उन्होंने खुद ही करतारपुर जाकर गुरुद्वारा साहिब को संवारने की ठानी।

मूलरूप से होशियारपुर के गांव माहिलपुर के निवासी जेबी सिंह ने बताया कि वर्ष 2001 में सवा लाख डॉलर (उस समय के एक करोड़ पाकिस्तानी रुपये) खर्च कर उन्होंने साढ़े छह महीने में गुरुद्वारा साहिब को नया स्वरूप दिया। यह सब उन्होंने मीडिया की सुर्खियों में आने के लिए नहीं, बल्कि बाबा जी की सेवा के लिए किया। उसी कारण इतने साल तक यह बात सामने नहीं आई। बोले-अब इस बात से खुश हूं कि दोनों देश कॉरिडोर खोलने को तैयार हो रहे हैं। उन्हें हमेशा से उम्मीद थी कि एक दिन भारत से बाबा नानक के श्रद्धालु यहां आकर दर्शन करेंगे।

दिक्कतें आईं, हिम्मत नहीं हारीी

बकौल जेबी सिंह, पहली बार पाकिस्तान पहुंच वक्फ बोर्ड के अधिकारियों से संपर्क किया तो वे मुझे उन सिखों की तरह समझने लगे जो वहां जाकर गुरुद्वारा संवारने की बात तो करते थे, लेकिन लौटकर संपर्क नहीं करते। जब दूसरी बार पहुंचा तो वक्फ बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन लेफ्टिनेंट जनरल जावेद नसीर व पाकिस्तान गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष श्याम सिंह से बैठक की और वे सहयोग के लिए राजी हो गए।

नहीं छोड़ी जिद: श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश करवाकर ही माने

नवंबर 2001 में गुरुद्वारा को संवारने के बाद उन्होंने पाकिस्तान गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान श्याम सिंह से आग्रह किया कि लाहौर से गुरुग्रंथ साहिब लाकर प्रकाश किया जाए। वह टालमटोल करने लगे। कहा-बॉर्डर एरिया है। सेना इजाजत नहीं देगी। सुखमणि साहिब का पाठ करवा देते हैं, लेकिन वह बाबा जी की बीड़ लाने की जिद पर ही अड़े रहे। पाक प्रशासन को झुकना पड़ा और 11 सितंबर 2001 को गुरुग्रंथ साहिब का प्रकाश हुआ।

दरवाजों पर सफेद रंग क्यों?

सिख श्रद्धालु गुरदासपुर के डेरा बाबा नानक से आज जब दूरबीन से गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करते हैं तो उन्हें दूर से सफेद इमारत नजर आती है। गुरुद्वारा साहिब के जीर्णोद्धार के समय दरवाजे के रंग पर भी सवाल उठे थे। जेबी सिंह के अनुसार पाकिस्तानी नागरिकों ने सवाल किया था कि सिखों के धार्मिक स्थलों के दरवाजे केसरिया या पीले होते हैं। आप सफेद क्यों करवा रहे हो। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि गुरुद्वारा साहिब से लगभग दो मील दूर भारत से जब लोग दर्शन करेंगे तो उन्हें सफेद इमारत नजर आएगी।

2001 से पहले ऐसी थी हालत

जेबी सिंह ने बताया कि उस समय गुरुद्वारा साहिब की तरफ कोई नहीं जाता था। जर्जर इमारत और दीवारों में सीलन थी। फर्श की टाइल्स टूट चुकी थीं। साढ़े तीन फुट की बाबा नानक वाली ईंटों की हालत भी खस्ता हो चुकी थी। यहां तक कि गुरुद्वारा साहिब तक जाने का रास्ता भी नहीं था। गुरुद्वारा साहिब को संवारने के बाद ढाई मील दूर से बिजली की तारें लगवाई। रोशनी की व्यवस्था की। पांच ट्यूबवेल तक लगवाए। उसके बाद गुरुद्वारा साहिब के पास पौने 47 एकड़ जमीन खरीदी ताकि श्रद्धालुओं को यहां आने में समस्या न हो।

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