नारी सशक्तिकरण : खुद दिव्यांग पर बेसहारों का सहारा हैं 'समर्थ दीदी' Ludhiana News

यह समर्थ दीदी कोई और नहीं बल्कि एडवोकेट दीप्ति सलूजा हैं। दीप्ति ने दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद एक ऐसा मुकाम हासिल किया है जो अच्छे-अच्छों को हासिल नहीं हो पाता।

By Vikas KumarEdited By: Publish:Sun, 11 Aug 2019 02:06 PM (IST) Updated:Sun, 11 Aug 2019 04:41 PM (IST)
नारी सशक्तिकरण : खुद दिव्यांग पर बेसहारों का सहारा हैं 'समर्थ दीदी'  Ludhiana News
नारी सशक्तिकरण : खुद दिव्यांग पर बेसहारों का सहारा हैं 'समर्थ दीदी' Ludhiana News

लुधियाना, भूपेंदर सिंह भाटिया। लुधियाना कोर्ट परिसर स्थित लेडीज लायर्स चैंबर नंबर पांच। वैसे तो यह चैंबर आम चैंबरों की तरह ही है। लेकिन इस चैंबर में व्हील चेयर पर बैठी एक महिला इसे आम से खास बना दिया है। यहां से गुजरने वाला हर शख्स इस महिला को सलाम जरूर करता है। भले वह वकील हों या फिर कोई अन्य। सब उन्हें 'समर्थ दीदी' के नाम से जानते हैं।

यह समर्थ दीदी कोई और नहीं बल्कि एडवोकेट दीप्ति सलूजा हैं। दीप्ति ने दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद एक ऐसा मुकाम हासिल किया है जो अच्छे-अच्छों को हासिल नहीं हो पाता। इतना ही नहीं, कभी दिव्यांग होने के कारण खुद को बेसहारा समझने वाली दीप्ति आज महिलाओं का सहारा बनती जा रही हैं। किसी भी तरह की कानूनी जानकारी लेनी हो, वह बिना किसी फीस के मदद करती हैं। उनके द्वारा बनाई गई एनजीओ 'समर्थ' के जरिए महिलाओं को ही नहीं, गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए आशा की किरण भी है, जो इलाज करवाने में समर्थ नहीं हैं। उनका कहना है कि लोगों की गरिमा बनाए रखते हुए उन्हें उनका हक दिलाना ही उनका उद्देश्य है।

दिलचस्प है वकील बनने की कहानी

सीएमसी के मोहन सिंह नगर में रहने वाली दीप्ति की एडवोकेट बनने की भी बड़ी रोचक कहानी है। जब उनकी उम्र 35 साल थी, तो वह बुटीक चलाती थीं। उन्होंने अपना कारोबार बढ़ाना था। सरकारी स्कीम पाने के लिए आवेदन किया। पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद उन्हें सरकारी स्कीम के लिए काफी धक्के खाने पड़े। उसके बाद उनके परिचित के वकील ने उन्हें स्कीम पाने की प्रक्रिया बताई, जिसमें वह सफल हो गईं। उसके बाद उन्होंने अपने जैसे जरूरतमंद लोगों को समर्थ बनाने की ठानी और माता-पिता से एलएलबी करने की बात कही। पहले तो अभिभावक चकित हुए कि इस उम्र में वह एलएलबी कर पाएगी, जबकि वह खुद दिव्यांग हैं। हालांकि अभिभावकों ने बेटी की जिद मान ली और दीप्ति ने पूरी लगन से पढ़ाई कर एलएलबी पूरी कर ली। बकौल दीप्ति डिग्री पाने के बाद भी कोई सीनियर वकील दिव्यांग को अपने साथ काम में रखने को तैयार नहीं हुआ। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और खुद प्रैक्टिस शुरू कर दी।

दिन को वकालत, शाम को शुरू होती है समाज सेवा

पूरे दिन वकालत करने के बाद रात को लगती है दीप्ति की अदालत। यानि लोगों की समस्याएं सुनने का काम रात आठ बजे शुरू होता है। वह फोन पर ही लोगों की समस्याएं सुनती हैं और उनका समाधान करती हैं। दीप्ति कहती हैं कि रात आठ बजे के बाद उनके पास फोन आने शुरू हो जाते हैं। पंजाब ही नहीं, महाराष्ट्र, बंगाल, गुजरात जैसे राज्यों से लोग फोन पर अपनी समस्याएं बताते हैं। वह उन्हें उनका अधिकार दिलाने की प्रक्रिया बताती हैं।

सोशल साइट से बांटती हैं जानकारियां

दीप्ति अपने कामों की जानकारी लोगों तक फेसबुक के माध्यम से पहुंचा रही हैं। दीप्ति के पास घरेलू ङ्क्षहसा के कई केस पहुंचते हैं। वह कहती हैं कि पहले तो वह उनमें आपसी तालमेल के जरिये समस्या हल करने की कोशिश करती हैं, लेकिन जब कोई हल नहीं निकलता तो वह पीडि़त को कानूनी अधिकारों की जानकारी देती हैं।  दीप्ति लोगों को संदेश देती हैं कि किस्मत के भरोसे रहने वाले को उतना ही मिलता है, जितना प्रयास करने वाले छोड़ देते हैं।

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