गजब के हैं ये इंडियन 'जुगाड़', इनकी तकनीकी जानकर आप रह जाएंगे दंग

जरूरत हाथों की कला और दिमाग की कल्पनाशीलता से मिल जाए तो व्यक्ति को हुनर का धनी बना देती है। आइए जानते हैं कुछ एेसे ही लोेगों द्वारा बनाए गए जुगाड़ के बारे में...

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Mon, 14 Jan 2019 06:06 PM (IST) Updated:Tue, 15 Jan 2019 09:08 AM (IST)
गजब के हैं ये इंडियन 'जुगाड़', इनकी तकनीकी जानकर आप रह जाएंगे दंग
गजब के हैं ये इंडियन 'जुगाड़', इनकी तकनीकी जानकर आप रह जाएंगे दंग

जालंधर [वंदना वालिया बाली]। जब जरूरत हाथों की कला और दिमाग की कल्पनाशीलता से मिल जाए तो व्यक्ति को हुनर का धनी बना देती है। लोग अपनी कल्पना से ऐसे ‘जुगाड़’ तैयार कर लेते हैं कि देखने वाले दंग रह जाएं। आइए आपकी मुलाकात कुछ ऐसे ही हुनरमंद लोगों से करवाएं, जिन्होंने अपनी रचनात्मकता से दिलों को जीता है...

रिमोट कंट्रोल से चलता ट्रैक्टर

राजस्थान के बारां जिले के बमोरी कलां गांव के योगेश नागर ने मात्र 20 वर्ष की आयु में ट्रैक्टर को रिमोट कंट्रोल से चलाकर सभी को दांतों तले अंगुलियां दबाने पर मजबूर कर दिया। यह जुगाड़ी आविष्कार उन्होंने पिता रामबाबू नागर के लिए किया। दरअसल पिता की सेहत खराब होने के कारण वे खेत में काम करने में असमर्थ हो गए थे। कोटा में बीएससी की पढ़ाई कर रहे योगेश को इसी कारण गांव लौटना पड़ा। यहां उन्होंने कुछ दिन खेतों में ट्रैक्टर चलाया जिसके बाद कुछ ऐसा करने की सोची जिससे पिता घर बैठे ही खेत का काम कर पाएं।

उन्होंने पहले मात्र दो हजार रुपये से कुछ सामान लेकर रिमोट बनाया, जिससे ट्रैक्टर आगे व पीछे चलने लगा। पिता के कुछ दोस्तों से आर्थिक मदद लेकर 50 हजार रुपये में रिमोट कंट्रोल से सिग्नल के जरिए ट्रैक्टर चलाने में सफलता हासिल कर ली। डेढ़ किलोमीटर की रेंज तक रिमोट से चलने में सक्षम यह ट्रैक्टर हर वह काम करता है जो एक साधारण ट्रैक्टर से किए जाते हैं। इंदौर में बीटेक की पढ़ाई कर रहे योगेश सेना के लिए ऐसा ही टैंक बनाना चाहता है जो दुर्गम परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जा सके।

इकोफ्रेंडली जुगाड़

मेरठ के शिवाय गांव के 63 वर्षीय राजेश कुमार ने पढ़ाई भले ही 8वीं तक की है, लेकिन उनके जुगाड़ी आविष्कारों से न केवल इलाकावासी बल्कि आइआइटी, अहमदाबाद के स्टूडेंट्स भी सीख लेते हैं। पेशे से किसान राजेश ने अनेक उपकरण बनाए हैं, जो कम खर्च में जीवन को आसान बनाने में सक्षम हैं।

इकोफ्रेंडली आविष्कार करने वाले राजेश कहते हैं कि किसान होने के नाते वे किसानों की दिक्कतों को समझते हैं, इसलिए पशुओं से खेत जोतने या बैठकर निराई-गुड़ाई करने के बजाय उन्होंने कम लागत वाले मोटर वीडर के बारे में सोचा। उन्होंने सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करके इसे तैयार किया, ताकि पेट्रोल या डीजल का खर्च भी न हो और प्रदूषण भी कम हो।

उन्होंने कार के वाइपर में इस्तेमाल होने वाली मोटर तथा स्कूटर को स्टार्ट करने वाले बटन व हैंडल लगाकर सौर ऊर्जा से चलने वाला यह यंत्र तैयार किया। वे इस सौर हल को राष्ट्रपति भवन तथा रामेश्वरम् स्थित पूर्व राष्ट्रपति स्व. अब्दुल कलाम की समाधिस्थल पर आयोजित कार्यक्रम में भी प्रदर्शित कर चुके हैं। इसके अलावा मां की आटा चक्की को भी उन्होंने मॉडीफाई किया है। उस पर भी मोटर लगाकर उसे सौर ऊर्जा से चलाया जाता है।

यह चक्की सुबह दस बजे से दोपहर तीन बजे तक करीब 10 किलोग्राम आटा पीस लेती है। इसके अलावा उन्होंने करीब चार साल पहले गैस की लंबी लाइनों से तंग आकर घर पर ही बायो गैस प्लांट तैयार कर लिया था। पांच ड्रमों से बना यह प्लांट कुछ यूं डिजाइन किया गया था कि एक बार ड्रम भर दिए जाने पर छह महीने तक की गैस का उत्पादन होता है।

सच हुए मीठे सपने

‘हनी बी क्वीन ऑफ पंजाब’ के नाम से ख्याति प्राप्त स्व. संगीता द्योल की कर्मठता व सफलता के पीछे उनके पति इंद्रपाल सिंह दयोल का हाथ हमेशा रहा। शारीरिक चुनौतियों के बावजूद पंजाब में वैकल्पिक कृषि को संगीता दयोल ने नए आयाम दिए थे, जबकि इंद्रपाल सिंह ने वर्ष 1985 में शहद निकालने की मशीन तैयार कर संगीता के सपनों को उड़ान दी थी।

68 वर्षीय इंद्रपाल ने 14 साल की उम्र में ही सेना में काम करना शुरू किया और रुड़की में बंगाल इंजीनियरिंग में बतौर इंजन फिटरकाम करते रहे। उन्होंने कुछ ही साल बाद नौकरी छोड़ दी और जब देश में अकाल पड़ा तो वे खेती कर देशसेवा करने का जज्बा लिए पंजाब लौट आए थे। यहां संघा फार्म में कई साल तक तमाम मशीनों को मॉडिफाई किया।

पत्नी संगीता पोलियोग्रस्त होने के बावजूद मधुमक्खी पालन करने लगीं तो इंद्रपाल सिंह ने विदेशी मशीनों की तर्ज पर एक ड्रम में जुगाड़ से पहले चार फ्रेम वाली मशीन तैयार की, जिसे बाद में आठ फ्रेम लगाकर अपग्रेड किया। छत्ते से शहद निकल जाने के बाद इस मशीन को बाहर निकालकर शहद किसी पात्र में इकट्ठा करना होता था। इस मुश्किल काम से निजात पाने के लिए इंद्रपाल ने अंदर ही एक पंप लगा दिया, जिससे शहद आसानी से निकाला जा सकता था। फिर इसी तरह फिल्टर की कमी को भी पूरा किया।

कम लागत में तैयार हुए इस आविष्कार ने संगीता के फार्म के शहद वाले काम को आसान और बेहतर बना दिया। आज इंद्रपाल पत्नी की अंतिम ख्वाहिश पूरी करने के लिए यूपी के बहराइच स्थित नानपारा के खैरीघाट भहेड़ा गांव में जरूरतमंद लोगों को मधुमक्खी पालन तथा शहद बनाने की विधि सिखा रहे हैं।

साइकिल बनी मोटरबाइक

जीतेंद्र भार्गव मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के अंजड नगर के निवासी हैं। उनके जुगाड़ ने कम लागत में उन्हें मोटरबाइक का आनंद दिलाया और शोहरत भी। दरअसल, उन्होंने अपनी साइकिल में इंजन लगाकर उसे मोटरबाइक में तब्दील कर दिया। अंजड की सड़कों पर दौड़ती उनकी साइकिल देख लोग भौचक्के रह जाते हैं।

भार्गव बताते हैं, ‘मेरी मोटर साइकिल पुरानी हो चुकी थी जिसे ठीक करवाने में 7-8 हजार रुपये का खर्च होना तय था। इसी बीच एक किसान को पावर पंप से खेत में दवा का छिड़काव करते देखा। किसान से पंप में होने वाली ईंधन की खपत और इंजन की कैपेसिटी को समझा। उसके बाद साइकिल के कायाकल्प का काम शुरू किया।’

भार्गव ने उस इंजन को साइकिल में लगा दिया, साइकिल में एक ब्रेक को एक्सेलेटर और एक को अगले और पिछले टायर में ब्रेक लगाने के लिए एक साथ जोड़ दिया। यह साइकिल इकोफ्रेंडली वाहन है और 33 सीसी का इंजन इसकी खासियत है। इसे बनाने का कुल खर्च लगभग 10 से 15 हजार रुपये है, जबकि मेंटिनेंस पर लगभग कोई खर्च नहीं आता है। इससे एक लीटर पेट्रोल में 100 से 125 किलोमीटर तक जाया जा सकता है। यह 30 से 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सड़कों पर दौड़ सकती है। बहरहाल भार्गव इसे पेटेंट कराने की तैयारी में हैं।

बंबूकाट के रियल हीरो

कुछ साल पहले पंजाबी फिल्म ‘बंबूकाट’ (जैसा कि ठेठ पंजाबी में बाइक को कहते हैं) ने देश-विदेश में धूम मचाई थी। इस फिल्म में हीरो ऐमी विर्क को कबाड़ में से एक बंबूकाट यानी मोटरबाइक तैयार करके अपने हुनर का लोहा मनवाते दिखाया गया है। इस बंबूकाट के वास्तविक रचनाकार हैं चंडीगढ़ के पास स्थित खरड़ निवासी रंजीत रंधावा।

लंबे समय से कई तरह की बाइक्स व कारों को शौकिया मॉडिफाई करने वाले रंजीत बताते हैं कि ऐसी बाइक के लिए सामान इकट्ठा करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती रही। चंडीगढ़ से लेकर पटियाला तक कबाड़ की दुकानों के चक्कर लगाने पड़े और फिर दिन-रात एक करके इसे तैयार किया। इसमें तेल की टंकी के स्थान पर दूध का डोलू, मारुति 800 कार का इंजन, एक एग्जास्ट फैन, एक टायर जीप का तो दूसरा रेहड़े का, जीप का फुट रेस्ट और तसले से सीट बनाई।

बचपन से रचनात्मक प्रवृति वाले रंजीत बताते हैं, ‘जब छोटा था तो अपनी साधारण साइकिल में पुराना गियर लगा लिया था तो सभी ने सराहा था। तभी से कुछ न कुछ नया करने का पैशन अपना लिया था।’ भारत में होने वाले मुकाबले ‘राइडर मेनिया’ में दो बार विजेता रह चुके रंजीत द्वारा मॉडीफाइड बाइक्स यूके, आस्ट्रेलिया, यूएसए के कॉलेजों में सोसाइटी ऑफ ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स द्वारा आयोजित प्रतियोगिताएं जीत चुकी हैं।

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