तेल की कीमतों को लगी आग, आम जनता से लेकर पेट्रोल पंप डीलरों तक हैं परेशान

मोहाली के एक उम्रदराज पेट्रोल पंप डीलर ने पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी होने से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। प्रदेश के अलावा बाहरी राज्यों में भी इसे लेकर शोर मचा।

By Vikas_KumarEdited By: Publish:Thu, 30 Jul 2020 11:19 AM (IST) Updated:Thu, 30 Jul 2020 11:19 AM (IST)
तेल की कीमतों को लगी आग, आम जनता से लेकर पेट्रोल पंप डीलरों तक हैं परेशान
तेल की कीमतों को लगी आग, आम जनता से लेकर पेट्रोल पंप डीलरों तक हैं परेशान

जालंधर, मनुपाल शर्मा। राज्य के पेट्रोल पंप डीलर बीते लंबे अरसे से पड़ोसी राज्यों की तुलना में पेट्रोल-डीजल महंगा होने के कारण व्यापार में घाटा पड़ने को लेकर आवाज उठा रहे हैं। कई बार मसला सरकार के समक्ष भी उठा चुके हैं, लेकिन तेल की कीमतों को आग लगाकर अपना खजाना भरने में जुटी सरकार इसे नजर अंदाज करती रही है। इसी बीच मोहाली के एक उम्रदराज पेट्रोल पंप डीलर ने परेशान होकर आत्महत्या कर ली। प्रदेश के अलावा बाहरी राज्यों में भी इसे लेकर शोर मचा।

व्यवसाय को आर्थिक घाटे से बचाने के लिए पेट्रोल पंप डीलर एसोसिएशन पंजाब की तरफ से 29 जुलाई को हड़ताल कर दी गई। हालांकि हड़ताल के कारण पेट्रोल, डीजल नहीं बिका तो इसका नुकसान भी पेट्रोल पंप डीलर्स को ही उठाना पड़ा। हालांकि तर्क यह है कि अगर एक दिन का नुकसान करवा कर भविष्य का नुकसान बच जाए तो यह सौदा कतई बुरा नहीं है।

शायद अब सरकार मान जाए

लॉकडाउन खुलने के बाद से निजी बस ऑपरेटर सरकार से राहत देने की गुहार लगा रहे थे। निजी बस ऑपरेटर्स का तर्क था कि यात्रियों की किल्लत के चलते उनका खर्च भी पूरा नहीं हो रहा है। ऐसे में सरकार अड्डा फीस, टोल टैक्स में राहत दे। सरकार ने निजी ऑपरेटर को यह राहत देने की बजाय यात्री किराया ही बढ़ा दिया, जो निजी बस ऑपरेटर की तरफ से कभी मांगा ही नहीं गया था।

निजी ऑपरेटरों ने बस संचालन बंद ही रखा था कि अब सरकारी परिवहन भी यात्रियों की किल्लत से आर्थिक संकट में घिर गया है। स्टाफ को वेतन देने तक की चुनौती आ गई है और अब यात्रियों के मुताबिक ही बसें चलाने का फॉर्मूला भी तैयार किया जाने लगा है। निजी ऑपरेटर्स को संतोष है कि जो वे खुद बताना चाहते थे लेकिन सरकार नहीं मानी, वह अब सरकारी परिवहन बताएगा तो शायद मान जाए।

सरकारी ठेका! न बाबा न

कोई जमाना था जब सरकारी काम का ठेका लेने को हर कोई लालायित नजर आता था। ठेका चाहे शराब का हो या पार्किंग का। सरकारी काम की गंगा में हर कोई हाथ धोने को बेताब नजर आता था। लाखों-करोड़ों की बोलियां और सरकार तक के जैक चलाकर ठेके लिए जाते थे, लेकिन कोविड-19 ने ऐसा रंग दिखाया है कि अब ठेकेदार तो ठेका लेने से ही तौबा करने लगे हैं।

सरकारी कार्यालयों में लोग आना कम हो गए हैं। ऐसे में पार्किंग चलती नहीं। लोगों के पास पैसा कम है और शराब ठेके पहले जितनी कमाई नहीं दे रहे। सरकारी कार्यालयों में लोग कोरोना के डर से आते नहीं और कैंटीन सुनसान रहती है। लॉकडाउन खुलने के बावजूद निकट भविष्य में भी यहां पर पहले जैसी रौनक होने की संभावना नहीं है। ऐसे में बड़े-बड़े ठेकेदार कमाई न होने के चलते इन ठेकों से पीछा छुड़ाने की कवायद में लगे हैं।

थैंक्स किए, राहत फिर भी नहीं

कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए मार्च में लॉकडाउन लागू होते ही औद्योगिक संगठन अपनी मांगों को लेकर सक्रिय हो गए थे। हालात यह थे कि एक ही दिन में कई संगठन एक ही मांग को लेकर अपने-अपने ज्ञापन सरकार तक भेजते थे। सरकार भी रुक-रुक कर राहत दिए जाने का आश्वासन दे रही थी। जैसे ही कोई आश्वासन आता, तमाम संगठन अपने-अपने स्तर पर उसका क्रेडिट लेते। मंत्री व अधिकारियों को धन्यवाद करना भी नहीं भूलते।

आखिरकार लॉकडाउन भी खुल गया और धीरे-धीरे उद्योग एवं व्यापार भी पटरी पर लौटने लगा, लेकिन सरकार का औद्योगिक संगठनों से किया एक भी वादा पूरा नहीं हो सका। बीते सप्ताह एक झटका भी लगा, बिजली के फिक्स्ड चार्जेस की वसूली का। अब सरकार का धन्यवाद करने वाले संगठन यह तर्क दे रहे हैं कि सरकार ने तो चार्जेस न लेने का वादा किया था, लेकिन सरकार से लड़ तो नहीं सकते।

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