यह है जालंधरः शेख दरवेश को मानवता के रास्ते पर लाए गुरु हरगोबिंद जी Jalandhar News

करतारपुर से होते हुए गुरु जी जालंधर की बस्ती शेख में आकर ठहरे। बहुत से नागरिकों ने उन्हें नगर के भीतर आने के लिए कहा पर वे नहीं आए।

By Pankaj DwivediEdited By: Publish:Wed, 09 Oct 2019 03:36 PM (IST) Updated:Thu, 10 Oct 2019 08:49 AM (IST)
यह है जालंधरः शेख दरवेश को मानवता के रास्ते पर लाए गुरु हरगोबिंद जी Jalandhar News
यह है जालंधरः शेख दरवेश को मानवता के रास्ते पर लाए गुरु हरगोबिंद जी Jalandhar News

जालंधर, जेएनएन। जालंधर में मुस्लिम समाज का बहुत बोलबाला हो चुका था। मुस्लिम फकीर शेख दरवेश के चमत्कारों की धूम दूर-दूर तक फैल रही थी। जब छठे गुरु हरगोबिंद साहिब को एक अहंकारी पीर के बारे में पता चला, तब इन्होंने जालंधर में आकर कुछ देर ठहरने का निर्णय किया। रास्ते में पैंदे खान से युद्ध हुआ। पैंदे खान बड़ा जालिम और कट्टरवादी विचारों वाला सेनापति था। उसके अत्याचारों से हिंदू जगत में भय का वातावरण व्याप्त था। वह छोटी सी छोटी भूल पर भी मृत्यु दंड देता था। इस बात का पता मीरी पीरी के दाता गुरु हरगोबिंद साहिब को था। जब वे कीरतपुर की ओर जाते हुए करतारपुर पहुंचे तो वहीं पैंदे खान का उनसे सामना हो गया और वह युद्ध में मारा गया।

करतारपुर से होते हुए गुरु जी जालंधर की बस्ती शेख में आकर ठहरे। बहुत से नागरिकों ने उन्हें नगर के भीतर आकर ठहरने की प्रार्थना की थी परंतु गुरु जी ने एक अहंकारी मुस्लिम को मानवता के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देने के लिए नगर के बाहर ही ठहरना उचित समझा। देश पर मुगलों का राज था और ऐसे में मुस्लिम फकीर मनमानी कर रहे थे। सन 1635 में गुरु जी के आगमन पर शेख दरवेश को आने का निमंत्रण दिया गया। शेख दरवेश गुरु हरगोबिंद जी साहिब के बारे में सुन चुका था। उसने उनसे मिलने से पूर्व अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि वह उनके अलौकिक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अपनी शक्तियों से विहीन न हो जाए।

शेख दरवेश का हाथ पकड़ कर एक सिख ने उन्हें गुरु जी के सामने लाकर बिठाया तो गुरु जी ने कहा कि ईश्वर की रजा में रहना सीखो, यह चमत्कार मानव को सुख नहीं देते। अंधविश्वास ने तुम्हारी आंखों पर पट्टी बांध दी है। तुम आंखें रखते हुए भी अंधे हो। आंखों से पट्टी खोलो और ईश्वर अल्लाह, जिसे भी तुम मानते हो उस पर विश्वास रखो। यह जादू-टोना और ताबीज-टोटके कभी भी मानव का भला नहीं कर सकते। उसे याद करो, उसकी इच्छा के अनुसार चलते रहो। शेख दरवेश के हृदय को यह बात छू गई।

इतिहासकार कहते हैं कि उस दिन के बाद शेख दरवेश गुमसुम रहने लगा और इसी अवस्था में इस जहाने फानी को छोड़ गया। गुरु हरगोबिंद जी महाराज जालंधर में मात्र तीन दिन एक भोरा की सूरत के स्थान पर रहे। आजकल यह बहुत पवित्र गुरुद्वारा साहिब की शक्ल में मौजूद है। जालंधर नगर को छठी पातशाही के चरण छोह स्थान के प्राप्त होने पर गर्व अनुभव होता है। छठी पातशाही की कृपा से जालंधर का नाम सिख इतिहास में भी आ गया है।

(प्रस्तुतिः दीपक जालंधरी - लेखक शहर की जानी-मानी शख्सियत और जानकार हैं)

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