खून का मांग कम, फिर भी किल्लत

सिविल अस्पताल व निजी ब्लड बैंक में खून की मांग में कमी आई है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 03 Apr 2020 07:33 PM (IST) Updated:Sat, 04 Apr 2020 06:07 AM (IST)
खून का मांग कम, फिर भी किल्लत
खून का मांग कम, फिर भी किल्लत

जागरण संवाददाता, जालंधर : राज्य में लगे क‌र्फ्यू की वजह से सिविल अस्पताल व निजी ब्लड बैंक में खून की मांग 50 फीसद तक कम होने के बावजूद किल्लत है। अस्पताल में लोगों को जो ब्लड ग्रुप चाहिए उसी का डोनर लेकर आना पड़ रहा है।

सिविल अस्पताल के ब्लड बैंक में मार्च से पहले औसतन 550 से 600 यूनिट प्रति माह जारी किए जाते थे। पिछले करीब बीस दिन से मांग का ग्राफ कम होने से वर्तमान में 10 से 12 यूनिट प्रति जारी हो रहे हैं। इसके बावजूद ब्लड बैंक में एबी, ओ तथा ए,ओ और बी निगेटिव ब्लड ग्रुप का स्टॉक लगभग शून्य हो चुका है। अस्पताल में खून लेने के लिए आने वाले लोगों को जिस ग्रुप का ब्लड चाहिए उसका डोनर साथ लेकर आना पड़ रहा है। क‌र्फ्यू में डोनर मिलना भी काफी मुश्किल है और सिविल अस्पताल में कोरोना वायरस के आइसोलेशन वार्ड होने की वजह से यहां आने से लोग भी कन्नी कतरा रहे हैं। जच्चा बच्चा वार्ड में प्रसव के लिए दाखिल महिला के भाई राहुल का कहना है कि उनकी बहन का ऑपरेशन होना ता और डॉक्टरों ने खून लेकर आने की बात कही। एबी पॉजिटिव खून लेने के लिए ब्लड बैंक में पहुंचे तो वहां तैनात स्टाफ ने उक्त ब्लड ग्रुप का खून ना होने की बात कही। उन्होंने इसी ग्रुप का डोनर लेकर आने की बात कही। काफी मशक्कत के बाद क‌र्फ्यू में पुलिस वालों को हाथ जोड़कर उसे ब्लड बैंक में लेकर आया और खूनदान करवाकर खून लिया।

सिविल अस्पताल के ब्लड ट्रांसफ्यूजन आफिसर (बीटीओ) डॉ. गगनदीप सिंह का कहना है कि पिछले करीब 15-20 दिन से कोरोना वायरस की दहशत के चलते खून की मांग काफी कम हो गई है। इन दिनों केवल जच्चा बच्चा वार्ड और थैलेसीमिया के बच्चों को खून की जरूरत पड़ रही है। खूनदान कैंप भी नही लगे हैं। इसके बावजूद थैलेसीमिया के 72 बच्चों के लिए खूनदान करने वाली सोसायटियों के सहयोग से काम चल रहा है। रोजाना पांच डोनर और पांच थैलेसीमिया के बच्चों को बुलाया जाता है। इमरजेंसी के लिए बीस यूनिट नकोदर सिविल अस्पताल के ब्लड बैंक से भी मंगवाएं गए है। जरूरत पड़ने पर खूनदान करने वाली सोसायटियों से भी डोनर को बुलाया जाता है। डॉ. गगनदीप ने बताया कि स़ड़क हादसों में घायल मरीज तथा सर्जरी बंद होने से खून की मांग भी काफी कम हो गई है।

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