गल्लां दी गल : एक्टिवा गैंग ने लगाया चूना तो एक्टिव हुए अधिकारी, शहर की रोचक खबरों पर एक नजर
इस गैंग ने दूसरे राज्यों से जालंधर आकर मजदूरी करने वाले मजदूरों को ब्याज पर पैसे देने के साथ बैंकों से एक्टिवा लेने के लिए लोन दिलवाए। एक्टिवा खरीदी गईं और उन्हेंं उक्त मजदूरों को देने के बजाय बाजार में दूसरे लोगों को बेच दिया गया।
जालंधर, [मनोज त्रिपाठी]। मामला शहर के एक्टिवा गैंग से जुड़ा है। गैंग के आधा दर्जन सदस्य एक साल से अलग-अलग बैंकों को मोटा चूना लगा रहे हैं। अब गैंग की करतूत का पर्दाफाश होने का समय आ गया है, लेकिन गैंग में शामिल कुछ पुलिस व बैंक अधिकारी मामले को रफा-दफा करवाने में जुुटे हैं। गैंग ने दूसरे राज्यों से जालंधर आकर मजदूरी करने वाले तमाम मजदूरों को ब्याज पर पैसे देने के साथ बैंकों से एक्टिवा लेने के लिए लोन दिलवाए। एक्टिवा खरीदी गईं और उन्हेंं उक्त मजदूरों को देने के बजाय बाजार में दूसरे लोगों को बेच दिया गया। पूरे मामले में कुछ बैंक अधिकारियों के साथ दो पुलिस मुलाजिम भी शामिल बताए जा रहे हैं। कोरोना को लेकर कर्फ्यू के कारण बैंकों ने एक्टिवा के लोन की रिकवरी धीमी कर रखी थी। अब रिकवरी के नोटिस गए तो मामला खुला है, लेकिन अधिकारी दबाने में लगे हैं।
जनाब दी वीडियो दी टेंशन..
सोशल मीडिया पर जालंधर प्रशासन की पहुंच ज्यादा से ज्यादा लोगों तक करने के लिए शुरू किया गया वीडियो व फेसबुक लाइव प्रोग्राम अब शहर के तमाम अधिकारियों के लिए सिरदर्द बनने लगा है। व्यवस्था को पहले से ज्यादा बेहतर बनाने के प्रयास में जुटे जिले के मुखिया ने लाइव होकर संदेश देने के बजाय रिकार्डिंग करके संदेश डालना शुरू कर दिया है, लेकिन ऐसे संदेश को ज्यादा रिस्पांस नहीं मिल रहा है। इसका ठीकरा लोकसंपर्क विभाग पर फोड़ा जा रहा है कि सोशल मीडिया पर विभाग के अधिकारियों की कोई पकड़ नहीं है। महोदय की नाराजगी से बचने के लिए अब अधिकारी अपने-अपने सॢकल में सभी से उक्त रिकार्डिंग को लाइक करने के निवेदन में जुटे हैं। एक अधिकारी से बात हुई तो उसने कहा कि कोरोना ने त हुण कदम पीछे खिंचने शुरू कर दित्ता ए, लेकिन जनाब दी वीडियो दी टेंशन बढ़ती जा रई अ।
मजबूरी का नाम महात्मा गांधी
शहर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की एक ही प्रतिमा ऐसी है जिसके बारे में सभी जानते हैं। अंग्रेजों के समय में बनाए गए कंपनी बाग पार्क की देखरेख नगर निगम के हाथों में है। निगम ने तीन साल पहले 20 लाख रुपये खर्च करके पार्क का नए सिरे से सुंदरीकरण भी करवाया था, लेकिन गांधी जी के चेहरे पर लगी ऐनक चोरों ने चुरा ली थी। उसके बाद तीन साल बीत गए हैं। हर साल दो अक्टूबर को गांधी जी की प्रतिमा पर सांसद से लेकर विधायक और तमाम नेता फूल-माला अर्पित करने जाते हैं, लेकिन ऐनक नहीं बदलवाई जा सकी है। 400 करोड़ से ज्यादा के सालाना बजट वाले नगर निगम की हालत कितनी खस्ता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गांधी जी की पारंपरिक ऐनक के बजाय उन्हेंं रेबैन की ऐनक पहना दी गई है। शायद इसे ही मजबूरी का नाम महात्मा गांधी कहते हैं।
कमेटी का खेल, कई लुटे, कई फेल
कोरोना काल में अचानक से तमाम क्षेत्रों में आई मंदी की मार से जालंधर के लोग भी अछूते नहीं हैं। जालंधर में अलग-अलग प्रभावशाली लोगों द्वारा चलाई जा रही कमेटियों की मांग अचानक से काफी बढ़ गई है। शहर में 14 ऐसे केस सामने आ चुके हैं जब कमेटियों के संचालक लोगों के करोड़ों रुपये लेकर फरार हो चुके हैं। पुलिस अभी तक इनको पकड़ नहीं पाई है। इसके बाद भी मजबूरी में लोग हजारों रुपये घाटे में कमेटियां उठा रहे हैं। कई लोग लुटने व अपनी कमाई बचा पाने में फेल होने के बाद मौत को गले लगा चुके हैं। अब अलग-अलग कमेटियों के संचालकों ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए और पुलिसिया कार्रवाई से बचने के लिए पुलिस अधिकारियों के साथ हाथ मिला लिया है, जिससे उनके खिलाफ शिकायत होने के बाद उन्हेंं सूचना मिल जाए और वह आराम से चंपत हो लें।