पंजाब के चब्बेवाल में समृद्धि का साधन बना मटर, 100 गांवों के 5000 लोग बने आत्मनिर्भर

पंजाब के चब्बेवाल क्षेत्र के 100 गांवों के 5000 लोग मटर की खेती के बाद आत्मनिर्भर बन गए हैं। यहां के देश के कई राज्यों में मटर की सप्लाई होती है। इस मीठे मटर की सभी जगह खास डिमांड है।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Tue, 10 Nov 2020 12:58 PM (IST) Updated:Wed, 11 Nov 2020 10:50 AM (IST)
पंजाब के चब्बेवाल में समृद्धि का साधन बना मटर, 100 गांवों के 5000 लोग बने आत्मनिर्भर
चब्बेवाल के गांव मरूला में किसान हरिंदर सिंह सहोता के खेत में लगी फसल।

होशियारपुर [हजारी लाल]। पहाड़ियों की तलहटी पर बसा है होशियारपुर, पंजाब का कस्बा चब्बेवाल। दो दशक पहले तक आर्थिक तंगी से जूझने वाले यहां के हजारों किसान परिवारों के जीवन में मटर ने कैसे समृद्धि ला दी, यह यहां पहुंचकर देखा-समझा जा सकता है। क्षेत्र के 100 गांवों में मटर की खेती हो रही है और हजारों ग्रामीण परिवार आत्मनिर्भर बन चुके हैं।

अपने मीठे स्वाद के कारण देश के तमाम राज्यों में चब्बेवाल के मटर की मांग है। फसल भी सबसे पहले तैयार हो जाती है। इसी कारण एशिया की एकमात्र मटर मंडी भी यहां बनी है। इलाके की 2500 एकड़ भूमि पर किसान मटर उगाते हैं और महज चार महीने में प्रति एकड़ लाख रुपये तक मुनाफा कमा रहे हैं।

आज चब्बेवाल का मटर पंजाब, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, बंगाल, महाराष्ट्र और गुजरात की मंडियों की शान बना हुआ है। दो दशक पहले जिसे पिछड़े क्षेत्र के रूप में गिना जाता था, आज वही चब्बेवाल देश-दुनिया के लघु किसानों को सफलता का मंत्र दे रहा है।

मटर उत्पादक 1500 से अधिक लघु किसानों के अलावा मटर की तुड़ाई, मंडी और ट्रांसपोर्ट के काम से जुड़कर इलाके के 5000 से अधिक परिवारों ने समृद्धि पाई है। एक-दो एकड़ भूमि के मालिक ये लघु किसान पहले दूसरे जिलों और हिमाचल प्रदेश की फैक्टरियों में मजदूरी कर जीवनयापन करते थे, क्योंकि खेती इनके लिए मुनाफे का सौदा नहीं थी, लेकिन अब मटर के व्यापारी कहलाते हैं।

चब्बेवाल के गांव कालेवाल, भाम, बिहाला, नंगल कलां, सकरूली, पट्टी, राजपुर, लहलीकलां, जंडोली, रामपुर, मुगोवाल और सरहाला सहित करीब 100 गांवों में मटर की खेती होती है। सितंबर में बुआई शुरू होती है और 15 नवंबर तक शुरुआती फसल आ जाती है। इसका दाम 60 रुपये किलो तक आसानी से मिल जाता है। पूरे ब्लाक में मीलों तक सिर्फ मटर की फसल ही नजर आती है। इस साल तो रायपुर, नागपुर, अहमदाबाद, बड़ौदा, दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ, कानपुर, इंदौर, भोपाल, मुंबई, जोधपुर, जयपुर, पटना के व्यापारियों के आर्डर एडवांस में ही मिल गए थे।

कृषि विज्ञान केंद्र बाहोवाल के डिप्टी डायरेक्टर मनिंदर सिंह बोंस ने बताया कि मटर उत्पादन में होशियारपुर लाजवाब है। पूरे देश में मटर की फसल सबसे पहले यहीं तैयार होती है, साथ ही मटर के मीठे होने के कारण भी इसकी मांग अधिक है। इलाके की मिट्टी रेतीली है, इसलिए यह मटर की पैदावार के अनुकूल है। मटर को अधिक पानी नहीं चाहिए और यहां की मिट्टी में गीलापन देर तक नहीं टिकता है। बारिश भी अधिक नहीं होती है। वहीं, 27 से 30 डिग्री तापमान में फसल पकने के कारण पैदावार अच्छी होती है।

मक्खन सिंह कोठी, सतनाम सिंह और जसविंदर सिंह नंगल जैसे कुछ किसानों ने बताया कि इन सभी के पास पांच एकड़ से भी कम जमीन है। कुछ साल पहले तक वे फसली चक्र में उलङो रहते थे। जमीन बोझ बनती जा रही थी। न बिकती थी और न फसल से कमाई हो पाती थी। कुछ लोग तो खेती छोड़ मजदूरी करने लगे थे। आज वही जमीन भरपूर मुनाफा दे रही है। व्यापारी इनकी जमीन का मुंह मांगा दाम देने को तैयार हैं, लेकिन अब वह अपनी जमीन नहीं बेचेंगे। चार महीने मटर से मुनाफा कमाते हैं और बाकी आठ महीने गेहूं और मक्का लगाते हैं।

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