1.71 लाख की सरकारी बोली, आठ गुणा ज्यादा की कीमत के पेड़ कौड़ियों के दाम बेच दिए

सर्विस क्लब के साथ कम्यूनिटी हाल बनाने के लिए सरकारी बोली लगाने में बड़ा खेल खेला गया।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 03 Dec 2019 11:31 PM (IST) Updated:Tue, 03 Dec 2019 11:31 PM (IST)
1.71 लाख की सरकारी बोली, आठ गुणा ज्यादा की कीमत के पेड़ कौड़ियों के दाम बेच दिए
1.71 लाख की सरकारी बोली, आठ गुणा ज्यादा की कीमत के पेड़ कौड़ियों के दाम बेच दिए

जागरण संवाददाता, होशियारपुर : सर्विस क्लब के साथ कम्यूनिटी हाल बनाने के लिए सरकारी बोली लगाने में बड़ा खेल खेला गया। इस जगह नंबरिग किए गए पुराने 89 पेड़ों की कीमत कौड़ियों के भाव तय करते हुए 1.71 लाख रुपये सरकारी बोली लगाई गई थी, जबकि इन पेड़ों की कीमत इससे आठ गुणा ज्यादा तय होनी थी, मगर ऐसा नहीं किया गया। रास्ता साफ करने के लिए नीलामी की नोटिस अखबारों में देकर पेड़ों को नीलाम करा दिया गया। पेड़ों को खरीदने वाले ठेकेदार रंजीत सिंह के महज चार हजार रुपये ज्यादा बोली लगाने पर अधिकारियों ने पौने दो लाख रुपये में पेड़ों को बेचने की मोहर लगा दी थी। खास प्लानिग के तहत यह काम हो पाया है। खास बात यह रही है कि सभी एक-एक पेड़ कीमत लगाने की बजाय सभी पेड़ों इक्ट्ठी कीमत लगा दी गई।

पेड़ों पर चलाए गए आरे ने अफसरशाही का असली चेहरा बेनकाब कर दिया है। सूझबूझ से काम लेने पर कम्यूनिटी हाल भी बन जाता और पेड़ों को काटने की जरूरत ही नहीं पड़ती, लेकिन स्वार्थ के चक्कर में पेड़ों की कीमत कौड़ियों के भाव लगाकर उन पर आरा चलाया गया। बाकायदा तौर पर नंबरिग किए गए पेड़ों की कीमत विभागीय अधिकारियों ने महज 1.71 लाख रुपये तय की थी। यह सरकारी बोली की रकम थी।

कौड़ियों के भाव पेड़ों की कीमत तय करने में अधिकारियों की गहरी साजिश रही है। जानबूझ कर पेड़ों का सरकारी रेट कम रखा गया था। कुछ पेड़ ऐसे भी काट डाले गए हैं, जिनकी अभी नंबरिग भी नहीं हुई थी। अगर, ईमानदारी से पेड़ों की कीमत लगाई जाती तो पीडब्ल्यूडी को अच्छी खासी आमदन प्राप्त हो सकती थी। इसकी अगर निष्पक्षता से जांच हो तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। कम्यूनिटी सेंटर के साथ लगते इन पेड़ के बीच सैर के लिए अच्छा पार्क बनाया जा सकता था। वहीं पर्यावरणविदों का कहना है कि इन पेड़ों की भरपाई करने में 60 से 70 वर्ष लग जाएंगे।

..तो पेड़ काटने की न आती नौबत

कम्यूनिटी हाल बनाने के लिए तैयार की गए गए नक्शे में पेड़ काटने की नौबत ही नहीं आ रही है। पीडब्ल्यूडी की पुरानी बिल्डिग से थोड़ा आगे तक कम्यूनिटी हाल की बिल्डिग आ रही है। इसके लिए महज कुछ गिने-चुने ही पेड़ काटने की जरूरत पड़ती, लेकिन विभागीय अधिकारियों ने कम्यूनिटी हाल को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित करते हुए उन पेड़ों पर भी आरा चलाने की हरी झंडी दे दी, जिनका कम्यूनिटी हाल के निर्माण से दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं है। बंदरबांट के चक्कर में खेला गया खेल

बंदरबांट के चक्कर में सभी पेड़ों को कटाने की साजिश रच डाली गई। इन पेड़ों की सरकारी कीमत जानबूझ कर कम दिखाई गई है, जबकि अंदरखाते इन पेड़ों की कीमत रखी गई है। इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। अनायास पेड़ों के काटने का मामला गरमाने पर पीडब्ल्यूडी अधिकारियों ने फिलहाल पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी है। यहां तक कि काटे पेड़ों को भी उठाने पर रोक लगा दी गई। करीबन सात पेड़ वहां पर बचे हैं। लाइन पर नहीं आ रहे एक्सईएन

एक्सईएन रजिदर गोत्रा सोमवार को यह कह कर लाइन पर नहीं आए कि वह अभी फंक्शन में हैं, लेकिन असलियत है कि पेड़ों के काटने का मुद्दा गर्माने के बाद वह सवालों का जवाब देने से बचने के लिए लाइन पर नहीं आ रहे हैं। मंगलवार को भी कई बार उनका पक्ष जानने के लिए फोन किया गया, लेकिन उन्होंने मोबाइल फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा।

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बड़े स्तर पर हुई गड़बड़ी: प्रधान शर्मा

पीडब्ल्यूडी वर्कर्स यूनियन के प्रधान गोपाल शर्मा ने कहा कि इस इसमें बड़े स्तर पर गड़बड़ी हुई है। कम्यूनिटी हाल बनाने के लिए पेड़ों को काटने की जरूरत ही नहीं थी। दूसरे पेड़ों की कीमत भी कम लगाई गई है। वह शुरू से ही इसका विरोध करते आ रहे हैं, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। मगर, वह इंसाफ की लड़ाई लड़ेंगे। हमारा काम तो पेड़ काटना: ठेकेदार रंजीत

ठेकेदार रंजीत सिंह ने कहा कि उनका काम तो पेड़ काटना है। ड्राइंग देखना या न देखना, यह सब अधिकारियों काम है। उन्होंने पौने दो लाख में 89 पेड़ खरीदे थे। पंद्रह दिन का टाइम मिला था। पेड़ों की कटाई का काम चल रहा था। मगर, अब उन्होंने पेड़ काटने और काटे हुए पेड़ों को उठाने से रोक दिया गया गया है।

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