आकांक्षाओं के लोभ में की जाने वाली भक्ति अंध भक्ति

पूर्ण सतगुरु परमानंद का दाता होता है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 21 Jan 2019 06:05 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jan 2019 06:05 PM (IST)
आकांक्षाओं के लोभ में की जाने वाली भक्ति अंध भक्ति
आकांक्षाओं के लोभ में की जाने वाली भक्ति अंध भक्ति

संवाद सहयोगी, दीनानगर : पूर्ण सतगुरु परमानंद का दाता होता है। वह अपने भक्तों का मुख आकांक्षाओं, लोभ, काम, क्रोध, मोह व अहंकार आदि विकारों से मुक्त करके उनका नाता आनंद (परमात्मा) से जोड़ता है। जो श्रद्धालु आकांक्षाओं के लोभ में गुरु के साथ जुड़कर भक्ति करते हैं वे केवल अंध भक्ति है। उक्त विचार महात्मा ¨प्र. सुभाष चंद्र जी ने रविवार को दीनानगर के निरंकारी भवन में आयोजित हुए साप्ताहिक सत्संग के दौरान व्यक्त किए।

साप्ताहिक सत्संग ब्रांच के मुखी महात्मा अमरजीत ¨सह की अध्यक्षता में हुई। सुबह 10 बजे शुरू हुए सत्संग कार्यक्रम के दौरान सर्वप्रथम श्रद्धालुओं ने सतगुरु की शिक्षाओं के प्रति अपने भजन विचार एवं कविताएं प्रस्तुत की। उनके बाद स्टेज पर विराजमान महात्मा सुभाष चंद्र ने संगत को संबोधित करते हुए कहा कि पूर्ण सतगुरु केवल परमानंद का स्त्रोत है। उन्होंने कहा कि सतगुरु से केवल और केवल आनंद की प्राप्ति होती है। ऐसा नहीं कि वह सांसारिक सुखों का आनंद नहीं देता। जो इंसान गुरु वचनों को मानकर उन्हें अपने जीवन में डाल लेता है वह सांसारिक सुखों के साथ साथ आनंद रस की भी प्राप्ति करता है। लेकिन उन्होंने आज के समय का वर्णन करते हुए कहा कि आज मनुष्य केवल सत्संग में अपने दातों को पूरा करवाने य दुखों से छुटकारे के लिए जाता है।

उन्होंने कहा कि उसका लक्ष्य आनंद से दूर होकर सांसारिक वस्तुओं पर आधारित है। यह जीवन सीमित समय के लिए इंसान को आनंद प्राप्ति के लिए मिला हुआ है, लेकिन इंसान अपने इस सीमित समय को आनंद प्राप्ति की बजाए सारा जीवन मोह माया में लिप्त होकर गुजार देता है। सांसारिक वस्तुओं पर आधारित जीवन होने के चलते उसका नाता संसार से जुड़ा रहता है। ऐसे में वह प्रकृति एवं अध्यात्म से दूर ही रहता है। महात्मा सुभाष चंद्र ने कहा कि सतगुरु इंसान का नाता परमात्मा से जोड़ता है, इससे पहले वह प्रकृति एवं अध्यात्म की पूरी जानकारी देकर उसे नौ खंड माया एवं दसवां द्वार परमात्मा बताता है। इस अवस्था में पहुंचकर मनुष्य महात्मा बन जाता है, जिससे वह प्रकृति की नौ खंड माया का प्रयोग करने के साथ-साथ दसवें ब्रह्म यानि परमात्मा से जुड़ा रहता है। भक्त हमेशा अपनी सांसारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए परमानंद को प्राप्त करते हैं। अंत में उपस्थित संगत को सतगुरु माता सुदीक्षा स¨वदर हरदेव जी महाराज की शिक्षाओं पर चलने के लिए प्रेरित किया गया। इस मौके पर ¨प्रसिपल महात्मा विजय कुमार संचालक महात्मा मनोज कुमार, सह-संचालिका बहन शशि बाला, पंकज बबूल सहित भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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