डाकिया डाक लाया की नहीं, अब डाकिया डाक लाई की आती है आवाज

पुरुष प्रधान समाज में एक तरफ जहां लोग पुत्र मोह से बाहर नहीं आ पा रहे और मौजूदा समय में लड़की की अपेक्षा लड़के के पैदा होने को ज्यादा तवज्जो देते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 24 Oct 2019 10:37 PM (IST) Updated:Thu, 24 Oct 2019 10:37 PM (IST)
डाकिया डाक लाया की नहीं, अब डाकिया डाक लाई की आती है आवाज
डाकिया डाक लाया की नहीं, अब डाकिया डाक लाई की आती है आवाज

जतिन्द्र पिकल, फिरोजपुर

पुरुष प्रधान समाज में एक तरफ जहां लोग पुत्र मोह से बाहर नहीं आ पा रहे और मौजूदा समय में लड़की की अपेक्षा लड़के के पैदा होने को ज्यादा तवज्जो देते हैं। वहीं, पर ऐसी न जाने कितनी मिसाल हैं, जहां पर लड़कों की जगह मां-बाप को संभालने में लड़कियों ने अहम भूमिका निभाई है। इन्हीं की मिसाल फिरोजपुर के गांव लाधुके की रहनी वाली 23 वर्षीय शैफी गिरधर की है, जिसने घर-घर जाकर न केवल पुरुषों के काम को खुद किया, बल्कि मौजूदा समय में अपने परिवार की समस्त जिम्मेवारी को बखूबी निभा रही है। परिवार में माता और दादी हैं।

शैफी ने करीब डेढ़ साल पहले जीरा में डाक विभाग में बतौर महिला पोस्ट वूमेन अपनी ड्यूटी शुरू की थी। छह माह तक उसे दिए क्षेत्र में वह घर-घर जाकर डाक वितरित करती रहीं। उसके बाद अपने उच्चाधिकारियों से कहीं नजदीकी क्षेत्र में बदली के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया, क्योंकि मंडी लाधूके से जीरा आने-जाने में काफी समय लग जाता था, जिसके चलते अधिकारियों ने उसकी मुश्किल को समझते उसे फिरोजपुर के साथ लगते गांव खुशहाल सिंह वाला (रखड़ी) में बतौर ब्रांच पोस्ट मास्टर (बीपीएम) लगा दिया। सब कुछ जैसे ठीक चल रहा था, लेकिन जिदगी को जैसे कुछ और मंजूर था। करीब छह माह पहले शैफी के पिता का देहांत हो गया और सारे परिवार की जिम्मेदारी अकेली शैफी पर आ गई, क्योंकि घर में और कोई भी पुरुष नहीं था। अपनी हिम्मत व विभाग से मिले सहयोग के चलते उसने जिदगी के इस दुखांत को भी कबूल करते हुए अपनी जिदगी को आगे बढ़ाना उचित समझा। बतौर बीपीएम क्या है शैफी के कार्य

बीएससी नान मेडिकल तक हासिल की एजुकेशन के बावजूद जिदगी ने जैसे बहुत कुछ सीखा दिया। उसके बतौर बीपीएम के कार्यो में साथ लगते दो गावों, जिनमें खुशहाल सिंह वाला व आसला शामिल हैं, में जाकर शैफी डाक वितरित करती हैं, विभाग में कोई कैश का काम व विभाग के लिए खाते खोलना आदि भी उसे ही करना है। गांव में आफिस के नाम पर अस्थायी रूप से एक पानी टपकता कमरा है, जिसके किराए के तौर पर उसे अपनी जेब से 1000 रुपये अदा करने पड़ते हैं, जबकि विभाग की तरफ से उसे मात्र 500 रुपये ही दिए जा रहे हैं। जबकि कुछ दिन पहले ही गांव के इस पोस्ट आफिस में आने जाने वालों के लिए एक नया तीन सीट का सोफा आया है। घर की तरह मिल रहा सहयोग शैफी का अपनी ड्यूटी बारे कहना है कि एक तरफ जहां विभाग के अधिकारियों व स्टाफ की तरफ से उसे हर सहयोग मिला है। वहीं, पर अब उसे यह दोनों गांव अपने परिवार की तरह ही लगते हैं। जब भी वह किसी के घर डाक देने जाती है, तो उसे देखकर घर के पुरुष घर की किसी महिला को ही डाक लेने भेजते हैं, जबकि इसके साथ ही गांव के युवाओं व अन्य सभी से उसे घर का माहौल मिला है। इसलिए उसे इस काम में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं आ रही। उसका कहना है कि बहुत जल्द विभाग की तरफ से गांव के पंचायत घर या किसी अन्य जगह पर पोस्ट आफिस को स्थापित कर दिया जाएगा, जिसमें करीब सभी सुविधाएं होगी, ताकि उसके साथ ही विभाग के किसी कार्य के लिए किसी को कोई मुश्किल पेश न आ सके।

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