मरीजों के मसीहा लंगर बाबा को पद्मश्री पुरुस्कार, 'कंगाली' में भी नहीं सोने देते किसी को भूखा

लंगर बाबा के नाम से विख्यात जगदीश लाल आहूजा को पद्मश्री से नवाजा जाएगा। वर्ष 2000 से वह लगातार पीजाआइ के बाहर लंगर लगा रहे हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Sat, 25 Jan 2020 08:29 PM (IST) Updated:Sun, 26 Jan 2020 08:57 AM (IST)
मरीजों के मसीहा लंगर बाबा को पद्मश्री पुरुस्कार, 'कंगाली' में भी नहीं सोने देते किसी को भूखा
मरीजों के मसीहा लंगर बाबा को पद्मश्री पुरुस्कार, 'कंगाली' में भी नहीं सोने देते किसी को भूखा

चंडीगढ़ [कुलदीप शुक्ला]। लंगर बाबा के नाम से विख्यात जगदीश लाल आहूजा को पद्म श्री से नवाजा जाएगा। कैंसर से पीड़ित 84 वर्षीय आहूजा किसी समय करोड़पति थे। वर्षों से पीजीआइ के बाहर मरीजों के लिए लंगर लगा-लगाकर आज वह कंगाली के दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन किसी को भूखा नहीं सोने देते। लोग उन्हें लंगर बाबा कहते हैं, जबकि पत्नी को जय माता दी। 

जगदीश लाल आहूजा का लंगर का सिलसिला लगभग 37 वर्ष पहले उनके बेटे के जन्मदिन पर शुरू हुआ था। उन्होंने सेक्टर-26 मंडी में लंगर लगाया था। उसके बाद से मंडी में लंगर लगने लगा। वर्ष 2000 में जब उनके पेट का ऑपरेशन हुआ तो पीजीआइ के बाहर लोगों की मदद करने का फैसला लिया और तब से उनका पीजीआइ के बाहर लंगर लगाने का सिलसिला जारी है। आहूजा प्रतिदिन पांच से छह सौ व्यक्तियों के लिए लंगर तैयार करते हैं। यही नहीं, इस दौरान आने वाले बच्चों को वह बिस्कुट और खिलौने भी बांटते हैं। आहूजा कई जरूरतमंद मरीजों को आर्थिक सहायता भी मुहैया कराते हैं। 

आहूजा की देखादेखी अब पीजीआइ के बाहर और लोग भी लंगर लाने लगे हैं, लेकिन उन्हें यह प्रेरणा आहूजा से ही मिली। सर्दी हो, गर्मी या फिर बारिश, उनका लंगर कभी बंद नहीं हुआ। मरीज व उनके तीमारदार भी उनके लंगर का हर रोज इंतजार करते हैं। आहूजा खुद पेेेट के कैंसर से पीड़ित हैं। वह ज्यादा चल फिर नहींं सकते हैं, लेकिन सेवा करने का उनका जज्बा आज भी कायम है। उनका कहना है कि जब तक वह हैं तब तक लंगर बंद नहीं होगा।

जगदीश आहूजा ने कहा सरकार से उनकी मांग है कि उनकी इनकम टैक्स माफ किया जाए, ताकि उनके बाद भी उनका यह लंगर जारी रहेे। उन्होंने कहा उन्हें खुशी है कि सरकार ने एक रेहड़ी लगाने वाले को भी इतना बड़ा सम्मान दिया है। कैंसर के बावजूद एक दिन भी पीजीआइ के बाहर लंगर बंद नहीं हुआ।

जगदीश लाल आहूजा को जानने वाले लोगों का कहना है कि वह इस पुरुस्कार के असली हकदार हैं, जो खुद विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वर्षों से जनसेवा में जुटे हुए हैं। उन्हें यह सम्मान बहुत पहले मिल जाना चाहिए था। 

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