चंडीगढ़ नगर निगम में सुबह नहीं बुलाई जाती है सदन की बैठक, जानें दिलचस्प कारण

चंडीगढ़ नगर निगम की हर माह होने वाले सदन की बैठक दोपहर दो बजे के बाद ही आयोजित की जाती है। इस पर कुछ पार्षदों ने आपत्ति जताई और मेयर और कमिश्नर से सुबह बैठक बुलाने का बात कही।

By Ankesh KumarEdited By: Publish:Mon, 30 Nov 2020 03:32 PM (IST) Updated:Mon, 30 Nov 2020 03:32 PM (IST)
चंडीगढ़ नगर निगम में सुबह नहीं बुलाई जाती है सदन की बैठक, जानें दिलचस्प कारण
चंडीगढ़ नगर निगम कार्यालय की फाइल फोटो। (जागरण)

चंडीगढ़, जेएनएन। आठ माह बाद काफी लंबे समय बाद पार्षद फिजिकल सदन की बैठक करवाने में कामयाब रहे लेकिन अब पार्षदों को इस बात का गम है कि बैठक का समय दोपहर दो बजे क्यों है। पार्षद चाहते हैं कि पहले की तरह सुबह 11 बजे ही बैठक हो।

यह मांग कई पार्षदों ने मेयर राजबाला मलिक और कमिश्नर से की। लेकिन हर किसी को यह जवाब मिला कि सुबह बैठक बुलाने पर दोपहर का लंच भी आयोजित करना होगा और कोरोना काल में ऐसा करने पर संक्रमण बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन असल में लंच बचाने के अलावा बात कुछ और भी है। अधिकारी भी ऐसा नहीं चाहते हैं क्योंकि अधिकारियों का मानना है कि अगर सुबह 11 बजे बैठक हो गई तो पार्षदों को सदन में बोलने का ज्यादा समय मिल जाएगा और राजनीति भी ज्यादा बढ़ जाएगी। जबकि दोपहर बाद बैठक होने से पार्षद घर से खाना खाकर आने के बाद ठंडे और थक भी के होते हैं ऐसे में कई पार्षद जिन्होंने अधिकारियों को घेरना होता है। उन्हें घेरने का समय भी नहीं मिल पाता।

नेता जी ने किया हैरान

कांग्रेस नेता सुभाष चावला पहली बार खुलकर अपनी ही पार्टी की स्थानीय कारगुजारी पर सवाल उठाते हुए सामने आए हैं। नेता जी के इस कदम से पार्टी के अन्य नेता और कार्यकर्ता भी हैरान है क्योंकि चावला हमेशा भाजपा के खिलाफ तो समय समय पर मोर्चा खोलते रहते हैं। लेकिन इस तरह से पहली बार अपनी पार्टी में चल रहे सिस्टम पर नाराजगी जाहिर की है। इसका कारण जानने के लिए अब पार्टी के अन्य नेता भी उत्सुक है। लेकिन चावला पते खोलने के लिए तैयार नहीं है। पार्टी के अंदर क्या चल रहा है इसकी भी सुबगहाट भी वह चावला से जानने के लिए पहुंच रहे हैं क्याेंकि जो इस समय पार्टी के नए प्रभारी हरीश रावत नियुक्त हुए हैं वह चावला के करीबी हैं। इसलिए कई नेताओं का मानना है कि कुछ चल रहा है जिसकी जानकारी चावला को है इसलिए उन्होंने ऐसा किया है। गपशप करते हुए कई यह भी बोल रहे हैं कि चावला को चंडीगढ़ की राजनीति का लंबा अनुभव है ऐसे में क्या चल रहा है इसका खुलासा वह इतनी आसानी से करने वाले नहीं है।

वेंडर्स पर आ गया साहब को गुस्सा

नगर निगम के रोड विंग के एक इंजीनियर ऐसे हैं जो हर काम में अपने जूनियर पर रौब झाड़ते हैं। कई बार उनके जूनियर भी हैरान हो जाते हैं कि साहब को गुस्सा क्यों आ जाता है। लेकिन अपने से सीनियर अधिकारियों के साहब काफी करीबी हैं। हाल ही में उन्होंने फिल्ड में एक चाय की दुकान लगाने वाले वेंडर्स पर भी रौब मार दिया। जहां यह वेंडर बैठा था उसके पास ही पेवर ब्लाक बदलने का काम चल रहा था लेकिन पता नहीं इंजीनियर साहब को क्या हुआ एक एक दम से गुस्सा आ गया और चाय वाले वेंडर्स को हटवाने की धमकी दे डाली हालांकि वेंडर्स को हटाने का काम अतिक्रमण हटाओ दस्ते का है। यह वेंडर्स नगर निगम से लाइसेंस लेकर अपनी दुकान चला रहा है। इंजीनियर साहब यहां नहीं हटे उन्होंने अतिक्रमण हटाओ दस्ते के अधिकारियों को फोन कर दिया कि सड़क किनारे से चाय की दुकान तुरंत हटा दी जाए लेकिन वेंडर्स नियम के तहत सही बैठा है तो फिर किस तरह से हट सकता था।  

सपने में भी शिविर के आते हैं सपने

अस्पतालों में रक्त की कमी होने पर इतनी टेंशन डाक्टरों को नहीं होती जितनी की शिव कांवड़ महासंघ चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष राकेश सांगर को। सांगर का पूरा दिन रक्तदान शिविर आयोजित करने और रक्तदाताओं को प्रेरित करने पर लगता है। रात को भी कई बार उन्हें रक्तदान शिविर के ही सपने आते हैं। पीजीआइ से रिटायर्ड होने के बाद घर वालों को लगता था कि अब वह परिवार को समय मिलेगा लेकिन सांगर अभी भी सुबह सवेरे घर से रक्तदान शिविर आयोजित करने के लिए लग जाते हैं। इस कोरोना काल में भी अस्पतालों की अपील पर वह शहर में किसी न किसी जगह हर दो दिन बार रक्तदान शिविर लगाते हैं। लेकिन इसका क्रेडिट भी वह दूसरे आयोजकों को दे देते हैं। अगर किसी जरूरतमंद मरीज के लिए उन्हें रक्त की कॉल आ जाती है तो वह तब तक रक्तदाताओं को फोन करते रहते हैं जब तक मरीज को रक्त न मिल जाए।

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