फिल्म निर्माता इम्तियाज बोले- 'जब वी मेट' रही करियर का टर्निग प्वाइंट

इम्तियाज ने कहा कि जब वी मेट, उनके करियर का टर्निग प्वाइंट रहा। यही वो फिल्म थी, जिसमें मैंने पंजाब को करीब से देखा। पंजाबी किरदार कितना जीवंत होता है ये देखा।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Tue, 04 Sep 2018 06:12 PM (IST) Updated:Tue, 04 Sep 2018 06:36 PM (IST)
फिल्म निर्माता इम्तियाज बोले- 'जब वी मेट' रही करियर का टर्निग प्वाइंट
फिल्म निर्माता इम्तियाज बोले- 'जब वी मेट' रही करियर का टर्निग प्वाइंट

चंडीगढ़ [शंकर सिंह]। पता नहीं क्यों, मगर पंजाब से मेरा नाता है। कॉलेज के दिनों में यहां आता रहा। खेत, लोग, भंगड़ा- गिद्दा ये सब आकर्षित करते रहे। फिल्म बनाई, तो इसमें भी कहीं न कहीं से पंजाब नजर आ ही जाता था। ऐसे में मुझे लगता है कि पंजाब ने मुझ पर मेहर की है। पंजाब और पंजाबियत दोनों को ही अपनी फिल्म में खास जगह देने वाले इम्तियाज अली कुछ इन्हीं शब्दों में इसके प्रति अपना प्यार प्रकट करते हैं। वह यहां अपनी फिल्म लैला मजनू के प्रमोशन के लिए पहुंचे थे। इसमें वे निर्माता हैं और निर्देशक उनके भाई।

इम्तियाज ने कहा कि जब वी मेट, उनके करियर का टर्निग प्वाइंट रहा। यही वो फिल्म थी, जिसमें मैंने पंजाब को करीब से देखा। पंजाबी किरदार कितना जीवंत होता है, ये देखा। ये सब पंजाब की तो मेहर है। इसके बाद तो लव आजकल, हाईवे इन सबमें पंजाब को किसी न किसी रूप में दिखाता रहा। पंजाब की एक खासियत बताना चाहता हूं वो ये कि यहां हमेशा हमले होते रहे। इसके मकान, किले सब टूटते रहे, मगर फिर भी इसकी संस्कृति में एक अलग खिंचाव है, जो मुझे भी अपनी और खींचते हैं। इसके अलावा मेरे साथ इरशाद कामिल का भी सहारा है, जो हमेशा मुझे पंजाब की तरफ ले जाते हैं। पंजाबी की धरती एक कविता की तरह है, जिसे सूफी में भी लिया जा सकता है, साथ ही इसमें कुछ डिस्को की बीट्स जोड़ दी जाए, तो ये जबरदस्त हो जाता है।

पंजाब की ये जगह मुङो आज भी याद है

इम्तियाज ने कहा कि उन्होंने सबसे ज्यादा जालंधर में काम किया है। नूरमहल में हैरी मेट सेजल की शूटिंग की। इस दौरान गुम्ताली में गए। वहां की शांति और आर्किटेक्ट ने मुझे काफी प्रभावित किया था। इसके अलावा हाईवे के दौरान फिरोजपुर और सदीक गांव में भी शूटिंग करने का मौका मिला। ये वो जगह है जो मुझे आज भी याद है। जब वी मेट के समय हम चंडीगढ़ आए और नाभा में गए। ऐसे में मैंने पंजाब के विभिन्न गांव और शहरों को फिल्म के जरिये ज्यादा से ज्यादा एक्सप्लोर किया।

हीर-रांझा के दौरान आया लैला मजनू का विचार

लैला मजनू को बनाने का ख्याल कैसे आया? इस पर इम्तियाज बोले कि रॉकस्टार, जो कि एक तरह से हीर रांझा की कहानी थी, के दौरान मैं पंजाब की प्रख्यात लोक कहानी पढ़ रहा था। उसी दौरान लैला मजनू की बात आई। मैंने पढ़ा और मैं आकर्षित हुआ। वैसे भी लव स्टोरी के लिए मेरे दिल में एक अलग जगह है। पहले इसे लिख के रख लिया। समय मिला, तो सोचा कि इसे बनाऊंगा, लेकिन खुद नहीं। क्योंकि सबको मेरे निर्देशन का आइडिया है। ऐसे में मैंने अपने भाई साजिद अली को इसकी बागडोर दी। पहले मुश्किल था, मगर फिर साजिद ने इसे बेहतरीन तरीके से पूरा किया।

तमाशा फिल्म को बॉक्स ऑफिस में कामयाबी नहीं मिली, कितना बुरा लगा?

हां, वो कहानी अच्छी थी। मुझे अफसोस है कि लोग किसी से सुनकर ही फिल्म का आइडिया बना लेते हैं। उन्हें पहले फिल्म देखनी चाहिए, फिर उसका आइडिया बनाना चाहिए। मैं फिल्म पसंद करता हूं, इसलिए बना रहा हूं। फिल्में सदा के लिए है, उसे बनाकर आप अमर हो जाते हो, जैसे यश जौहर साहिब की फिल्म में आज भी देखता हूं। हां, निर्माता को मैं ये यकीन दिलाता हूं कि उनका जितना पैसा लगा है कम से कम उतना तो वापस करवा ही दूंगा।

मैं अपने भाई को प्रमोट कर रहा हूं, इसमें गलत क्या है...

इम्तियाज ने नेपोटिज्म पर कहा कि ये कॉन्सेप्ट मुङो समझ में नहीं आया। मैं अपने भाई की फिल्म को प्रोड्यूस कर रहा हूं, इसमें मुङो कुछ गलत नहीं लगता। मैं उसे मौका नहीं दूंगा, तो कौन देगा। मेरा अनुभव उसे एक नई दिशा देगा, जो उसके करियर के लिए गलत नहीं होगा।

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