टोक्यो ओलंपिक में पूरा होगा उड़न सिख का सपना!

जो खेल ओलंपिक में शामिल हैं उनसे जुड़े खिलाड़ियों का ओलंपिक में मेडल जीतना सपना होता है। लेकिन मेडल के बिल्कुल करीब आकर चूक जाने की टीस दिल में पूरी उम्र रहती है। ऐसे ही खिलाड़ी थे फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 18 Jul 2021 06:40 AM (IST) Updated:Sun, 18 Jul 2021 06:40 AM (IST)
टोक्यो ओलंपिक में पूरा होगा उड़न सिख का सपना!
टोक्यो ओलंपिक में पूरा होगा उड़न सिख का सपना!

वैभव शर्मा, चंडीगढ़

जो खेल ओलंपिक में शामिल हैं, उनसे जुड़े खिलाड़ियों का ओलंपिक में मेडल जीतना सपना होता है। लेकिन मेडल के बिल्कुल करीब आकर चूक जाने की टीस दिल में पूरी उम्र रहती है। ऐसे ही खिलाड़ी थे फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह। साल 1960 में रोम ओलंपिक में वह केवल सेकेंड के दसवें हिस्से से पदक से चूक गए थे, लेकिन इस बात का दुख उन्हें अपने अंतिम क्षणों तक रहा। अंतिम क्षणों तक उनकी आंखों में सिर्फ यही ख्वाब था कि उनके जिदा रहते कोई एथलीट ओलंपिक में मेडल जीते। मिल्खा सिंह तो अब हमारे बीच में नहीं रहे, लेकिन उनकी यह बातें देश के हर एथलीट के कानों में गूंज रही होंगी। क्योंकि मिल्खा सिंह हर मंच से अपने इस सपने को सबसे सामने रखते थे। इस बार मिल्खा सिंह के सपने को साकार करने के जज्बे के साथ भारतीय एथलीट टोक्यो पहुंचेंगे। उनसे पूरी उम्मीद है कि वह अधूरे सपने को सच कर दिखाएंगे। - एथलीट नीरज चोपड़ा से जेवलिन थ्रो में है पदक की उम्मीद

- 15 एथलीट टोक्यो ओलंपिक में देश का करेंगे प्रतिनिधित्व साल 1958 में जीता था एशियन गेम्स में गोल्ड

रोम ओलंपिक से ठीक दो साल पहले 1958 में टोक्यो में एशियन गेम्स का आयोजन हुआ था। इस टूर्नामेंट में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। जब मिल्खा रोम ओलंपिक में दौड़ने उतरे थे तो उम्मीद यही थी कि गोल्ड उनके पास ही आएगा, लेकिन किस्मत को कुछ ओर ही मंजूर था। इस बात का स्वंय मिल्खा सिंह भी जिक्र करते थे। वह कहते थे कि मेडल जीतने से नहीं चूका, बल्कि मैं इस देश को रोल मॉडल और सपने देने से चूक गया। इस ओलंपिक के बाद 1962 में एक बार फिर एशियन गेम्स में उन्होंने पीला तमगा हासिल किया। श्रीराम सिंह भी चूके थे मेडल से

साल 1984 में एक बार फिर से मिल्खा सिंह के सपने को पर मिलने लगे थे, इसका कारण था कि इस ओलंपिक में महिलाओं की प्रतिस्पर्धा में 400 मीटर रेस में पीटी ऊषा भाग ले रही थी। उस समय पीटी को देखकर लगता था कि वह देश को एथलीट में मेडल दिलवा सकती है, लेकिन ऊषा भी सेकेंड के सौवें हिस्से से कांस्य पदक जीतने से चुक गई। यहां एक बार फिर मिल्खा सिंह का सपना टूटा था। ओलंपिक के इतिहास में आज तक कोई भारतीय धावक नहीं जीत पाया है इकलौता मेडल

ओलंपिक मुकाबलों के इतिहास में अभी तक कोई भी भारतीय धावक इकलौता मेडल नहीं जीत सका है। इस बार हो रहे ओलंपिक में शहर से नीरज चोपड़ा जेवलिन थ्रो में हिस्सा ले रहे हैं और देश को उनसे काफी उम्मीद है। इस युवा एथलीट ने पिछली कुछ प्रतिस्पर्धाओं में अपने प्रदर्शन से सबको आकर्षित किया है। इस बार मिल्खा सिंह का प्रोफाइल-

नाम - मिल्खा सिंह

जन्म - 20 नवंबर 1929, गोविदपुरा पंजाब

पत्नी का नाम - स्वर्गीय निर्मल सैणी

निधन - 18 जून 2021 मिल्खा सिंह की उपलब्धियां

- ब्रिटिश साम्राज्य और राष्ट्रमंडल खेल-1958 कार्डिफ में 440 यार्ड में गोल्ड

- एशियन गेम्स- 1958 टोक्यो में 200 मीटर में गोल्ड, 1958 टोक्यो में 400 मीटर में गोल्ड, 1962 में जकारता में 400 मीटर में गोल्ड, 4*400 मीटर रिले में गोल्ड

- नेशनल गेम्स-1958 कटक में 200 मीटर में गोल्ड, 1958 कटक में 400 मीटर में गोल्ड, 1964 कोलकाता में 400 मीटर में सिल्वर - अन्य सेवाएं-

भारतीय सेना में कैप्टन रैंक अवॉर्ड-

साल 1959 में पद्मश्री, नई दिल्ली स्थित मैडम तुसाद म्यूजियम में मिल्खा सिंह का मोम का पुतला

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